कविता

मां शारदे मुझे सिखाती

दौर नया है युग नया है

हानि-लाभ की जुगत में

चारों ओर मची है आपाधापी

मां शारदे मुझे सिखाती

तर्जनी पर गिनती का स्‍वर न काफी

भारत की थाती का ज्ञान न काफी

सिर्फ अपना गुणगान न काफी

मां शारदे मुझे सिखाती

नवसृजन की भाषा सीखो

मानव मुक्ति का ककहरा सीखो

भव बंधन के बीच चलना सीखो

मां शारदे मुझे सिखाती

हर घर में ज्ञान का दीप जलाओ

गरीबी से मुक्ति का पाठ पढाओ

नवसृजन का संकल्‍प घर-घर पहुंचाओ

मां शारदे मुझे सिखाती

– स्मिता