
-डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
जम्मू कंश्मीर राज्य की कश्मीर घाटी में मुस्लिम कट्टरपंथियों का पहला शिकार कश्मीरी हिन्दु हुये थे , जिन्हें अपना घरबार छोड़कर घाटी से कूच करना पड़ा था । पाँच लाख के लगभग कश्मीरी हिन्दु अभी भी देश में इधर उधर भटक रहे हैं और उनके घाटी में वापिस जाने की परिस्थितियाँ निर्मित नहीं हो रहीं । मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उनके सामने दो ही विकल्प रखे थे , या तो घाटी छोड़ दो या फिर इस्लाम स्वीकार कर लो । कट्टरपंथी कश्मीर घाटी में निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा स्थापित करना चाहते हैं और निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा की पहली शर्त ही यह है कि वहाँ किसी दूसरे सम्प्रदाय का व्यक्ति नहीं रह सकता । घाटी में निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा फाजिल होता देख कर कश्मीरी हिन्दुओं ने वहाँ से चले जाना ही श्रेयस्कर समझा , क्योंकि दूसरा विकल्प मौत ही था । दुर्भाग्य से सरकार भी शायद ,'हिजबे फकत हिज़्बुल्लाह' वालों के साथ हो गई थी ।
लगता था मुसलमानों का यह अभियान घाटी से हिन्दुओं को निकाल कर समाप्त हो जायेगा । लेकिन अब घाटी का शिया समाज भी मुसलमानों के निशाने पर आ गया है । वैसे तो कश्मीर घाटी में मुसलमानों के मुक़ाबले शिया समाज अल्पमत में है , लेकिन अनेक स्थानों पर उनकी संख्या पर्याप्त है । घाटी का बडगाम ज़िला ऐसा ही है । श्रीनगर में भी शिया समाज की बस्तियाँ हैं । पिछले दिनों बडगाम में दो युवकों में किसी मामूली बात को लेकर आपस में कहा सुनी हो गई । दुर्भाग्य से इनमें से एक युवक शिया समाज का था । इसका ख़ामियाज़ा अनेक गाँवों में शिया समाज के लोगों को सामूहिक रुप से भुगतना पड़ा । जगह जगह मुसलमानों ने शिया समाज के घरों और दुकानों पर हमले शुरु कर दिये । अनेकों लोग घायल हुये और करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई । सबसे बढ़ कर शिया समाज घाटी में अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगा है ।
शिया समाज और मुसलमानों का यह झगड़ा आज का नहीं बल्कि बहुत पुराना है । इसकी शुरुआत सातवीं शताब्दी में हो गई थी जब मुसलमानों ने कर्बला के स्थान पर हुसैन को उनके तमाम सम्बंधियों सहित , अत्यन्त क्रूरता से मार दिया था । इतना ही नहीं दुधमुँहे बच्चों को भी नहीं बख़्शा था । उस लड़ाई में हुसैन की ओर से मोहियाल ब्राह्मण भी मुसलमानों के खिलाफ लड़े थे । शिया समाज का भारत के प्रति लगाव तभी से बना हुआ है । मोहियाल ब्राह्मणों का उदगम पेशावर के आसपास माना जाता है और ब्राह्मणों में मोहियाल मार्शल रेस माने जाते हैं । जम्मू कश्मीर के पुँछ में आज भी मोहियाल ब्राह्मणों के घर हैं । इरान और इराक़ दोनों ही शिया बहुसंख्यक राज्य हैं । दरअसल इरान पर भी मुसलमानों ने सातवीं शताब्दी में ही आक्रमण करके उसे ग़ुलाम बनाया था और जल्दी ही उसे मतान्तरित कर दिया । शारीरिक रुप से तो इरानी पराजित हो गये परन्तु मानसिक रुप से उन्होंने पराजय स्वीकार नहीं की । बाद में मुसलमानों द्वारा हुसैन का परिवार समेत बध कर देने की घटना के बाद इरानियों को अपने अपमान का बदला लेने का अवसर मिल गया और वे अरबों के खिलाफ शिया समाज के रुप में संगठित होने लगे । उन्होंने अपने इस्लाम पूर्व इतिहास को छोड़ने से इन्कार कर दिया और नवरोज़ इत्यादि इरानी उत्सव मनाने प्रारम्भ कर दिये और कुरुष महान के गीत गाने शुरु कर दिये । तब से चला हुआ इरानियों और अरबों का युद्ध अब भी किसी रुप में चलता ही रहता है और दुनिया भर में शिया समाज कट्टर मुसलमानों के ग़ुस्से का शिकार होता रहता है । शिया समाज हुसैन की शहादत के दिन को याद करते हुये , उस दिन मुसलमानों ने जो अत्याचार किये थे , उसकी निन्दा करते हैं तो मुसलमान समाज आज भी उत्तेजित होता है और आम तौर पर इस दिन शिया समाज एक बार फिर मुसलमानों के हमले का शिकार होता है ।
पाकिस्तान ने जब से अपने आप को इस्लामी गणतंत्र घोषित किया है , तभी से वहाँ का शिया समाज इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर है । शिया समाज के पूजा स्थानों पर आक्रमण वहाँ आम बात हो गई है और इन आक्रमणों में अब तक हज़ारों शिया मारे जा चुके हैं । जम्मू कश्मीर का गिलगित और बल्तीस्तान तो है ही शिया बहुसंख्यक इलाक़ा । वहाँ पिछले दो दशकों से पंजाब व खैबर पख्तूनखवा से मुसलमानों को लाकर बसाया जा रहा है ताकि शिया समाज अल्पसंख्यक हो जाये । वहाँ शिया समाज के लोगों की हत्याओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है । भारत सरकार ने अपने इन नागरिकों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में पाकिस्तान के पास कभी विरोध प्रकट नहीं किया । अब कट्टरपंथी मुसलमानों ने यही खेल कश्मीर घाटी में भी शुरु कर दिया है । शिया समाज का दोष इतना ही है कि वह कश्मीर घाटी में पाकिस्तान द्वारा की जा रही भारत विरोधी गतिविधियों का समर्थक नहीं है ।
बडगाम में जो शिया समाज पर आक्रमण हुआ है , उसे इसी व्यापक पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिये । बेमिना गाँव के ख़ुमैनी चौक पर हुआ झगड़ा रातों रात गाँव गाँव में फैल गया और शिया इवादतगाह भी इसके शिकार हुये । इससे पहले २०११ में भी एक लड़की की आपत्तिजनक तस्वीरें सैल फ़ोन पर डाले जाने से बडगाम का शिया समाज मुसलमानों के ग़ुस्से का शिकार हुआ था । दरअसल बडगाम में पिछले कुछ अरसे से हिज़्बुल मुजाहिदीन , तबलीगी जमात और बहावी संगठनों का काम तेज़ी से बढ़ा है । इन संगठनों के प्रचार से मुसलमानों में कट्टरपंथ का विस्तार हुआ है । कश्मीर में इस्लाम के अरबीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है , जिसके परिणामस्वरूप मुसलमानों में शिया समाज के प्रति ग़ुस्सा बढ़ रहा है । स्पष्ट है कि जिस तेज़ी से शिया समाज पर बडगाम के दर्जनों गाँवों में हमले हुये , उसमें ज़रुर मुसलमानों के संगठित गिरोहों का हाथ रहा होगा । कश्मीर के शिया समाज को पाकिस्तान का विरोध करने की जो सजा मिल रही है , वह निश्चय ही निंदनीय है । लेकिन सबसे ज़्यादा ताज्जुब तो इस बात का है कि मानवाधिकारों की माला जपने वाले जो संगठन बाटला हाउस कांड में शहज़ाद को उम्र क़ैद दिये जाने पर हलकान हो रहे हैं वे बडगाम में फ़ातिमा बीबी की हत्या पर मौन साध गये हैं । क्या केवल इसलिये की वह अल्पसंख्यक शिया समाज की थी ? उस बेचारी का तो कोई दोष भी नहीं था । वह अपने घर का समान बचाने में लगी थी कि मुसलमानों ने उस के सिर पर लोहे की छड़ें मारीं । अब दिग्विजय सिंह चुप क्यों हैं ? क्या केवल इसलिये कि फ़ातिमा की मौत पर मर्सिया पढ़ने से मुसलमानों की वोटें चले जाने का डर है ?
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घाटी से पहले हिन्दुओं को बाहर किया गया और अब शिया मुस्लिमों को खदेड़ने की बारी है.वस्तुतः इस समय सब स्थानों पर शियाओं को शिकार बनाया जा रहा है.पिछले तीन दिन से लखनऊ में शियाओं के विरुद्ध हमले और दंगे हो रहे हैं.पाकिस्तान में भी ज्यादातर घटनाओं में शिया ही शिकार हो रहे हैं.इराक,तुर्की और अन्य मुस्लिम देशों में भी चुनचुन कर शिया मुसलमानों को शिकार बनाया जा रहा है.अतः जो कुछ कल तक केवल हिन्दुओं अथवा गैर मुसलमानों को झेलना पड़ता था वही सब कुछ आज शियाओं को झेलना पड रहा है.पूर्व में अहमदिया मुसलमान भी इस प्रवृत्ति का शिकार हो चुके हैं और आज भी उन्हें मुसलमान नहीं माना जाता है.ऐसे में एक बड़ा सवाल ये है कि शिया क्या करें.मेरे विचार में शियाओं की सुरक्षा की गारंटी उनका भाजपा के पक्ष में खड़े होना होगा.हिन्दू समाज वैसे तो सारे मुस्लिम भारतियों का भला चाहता है क्योंकि हिन्दू ये मानते हैं की भारत के ९९.९% मुसलमान पूर्व में हिन्दू ही थे जो ऐतिहासिक परिस्थितिवश मुसलमान हो गए थे.अगर शिया भाई/बहनें हिन्दुओं के साथ खड़े होंगे तो उनपर हमला करने का दुस्साहस कोई नहीं कर पायेगा.अब फैसला तो शिया भाईयों को करना है.