शिव बनने लगे हैं ‘राज’ – लिमटी खरे

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Shivraj_singh_chauhanमध्य प्रदेश के सूबेदार शिवराज सिंह चौहान अब राज ठाकरे और शीला दीक्षित के नक्शे कदम पर चलते दिख रहे हैं। सूबाई हुकूमत को बरकरार रखने की गरज से राजनेताओं द्वारा असंयमित भाषा का प्रयोग कोई नया नहीं है। इसके पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के खिलाफ जहर उगला था।

मध्य प्रदेश के सतना में आयोजित एक कार्यक्रम में कथित तौर पर कहा कि मध्य प्रदेश में नौकरियों के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के निवासियों का स्वागत नहीं किया जाएगा। खबरों के अनुसार चौहान ने कहा है कि कारखाने सतना में लगें और उसमें नौकरी यूपी बिहार के लोग करें यह नहीं चलेगा।

इसके पहले दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने वाली मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने बदरपुर में एक कार्यक्रम में भी कुछ वक्तव्य देकर विवाद खडा कर दिया था। बकौल शीला दीक्षित -”दशकों से दिल्ली का अव्यवस्थित विकास हुआ है। बाहर से लोग आते हैं, और जहां मन होता है बैठ जाते हैं।” शीला दीक्षित का यह बयान पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना था। देखा जाए तो वे भी उत्तर प्रदेश से ही आईं हैं और दिल्ली पर एक दशक से हुकूमत कर रहीं हैं।

अपना इस तरह का बचकाना बयान देने के पहले शीला दीक्षित शायद भूल गईं कि आजादी के बाद के छ: दशकों में से एक दशक से अधिक समय तक तो दिल्ली उन्हीं के कब्जे में है, और बीच का कुछ अरसा अगर छोड़ दिया जाए तो शेष समय तो दिल्ली की गद्दी पर कांग्रेस का ही शासन रहा है। शीला से बयान से लगता है मानो वे कह रहीं हों कि दिल्ली पर काबिज रही कांग्रेस की सरकारों ने यहां की बसाहट पर ध्यान नहीं दिया है।

मुंबई में महराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) सुप्रीमो एवं शिवसेना चीफ बाला साहेब ठाकरे के भतीजे ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ जमकर जहर उगला है। मनसे द्वारा लगातार उत्तर भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए तरह तरह की बयानबाजी और हथकंडे अपनाए जाते रहे हैं।

क्षेत्रीयता को बढावा देने वाले राजनेताओं की फेहरिस्त में अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम भी जुड गया है, जिन्होंने देश के हृदय प्रदेश में यूपी बिहार के लोगों की आमद नौकरियों के लिए बंद कराने की हुंकार भरकर नए विवाद को जन्म दे दिया है।

भारत गणराज्य में हर कोई नागरिक स्वतंत्र है। देश में जम्मू एवं काश्मीर के लोगों को छोड दिया जाए जिन्हें दोहरी नागरिकता प्राप्त है, के अलावा देश में हर कोई हर प्रांत में जाकर व्यापार, नौकरी कर सकता है। सामंतशाही के अवसान के उपरांत जम्मू एवं काश्मीर के निवासियों को दोहरी सुविधा प्रदाय की गई थी।

सवाल यह उठता है कि जब एक सूबे के निवासी द्वारा दूसरे सूबे में जाकर विवाह जैसा महात्वपूर्ण संस्कार को अंजाम दिया जाता है तो फिर नौकरियों में उनके साथ भेदभाव किस आधार पर किया करने की हुंकार या कल्पना की जाती है, यह बात समझ से परे ही है।

‘शिवराज’ जो अब ‘राज ठाकरे’ की राह पर चलने का प्रयास कर रहे हैं, के बचाव में उतरे भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर का कहना कि शिवराज की तुलना राज ठाकरे से की जानी ठीक नहीं है, हर राज्य को अपने हितों को देखना पडता है, भी कम हास्यास्पद नहीं माना जाएगा। राज्य के निजामों को अपने अपने राज्यों के हितों का संवर्धन अवश्य करना चाहिए पर इसके लिए वे अपने संविधान में आवश्यक संशोधन करें। इस तरह की भडकाउ बयानबाजी से तो स्थितियां विस्फोटक ही होंगी।

जब इस मामले ने तूल पकडा तब शिवराज सिंह चौहान ने यू टर्न लेते हुए बात को संभालने का प्रयास भी किया है। अब वे कहने लगे हैं कि उन्होंने एसा कुछ नहीं कहा। मध्य प्रदेश में हर राज्य के लोगों का स्वागत करते हुए उन्होंने अपने पूर्व बयान का एक तरह से खण्डन ही किया है।

देखा जाए तो राजनेता अति उत्साह में कुछ इस तरह के वक्तव्य दे जाते हैं, जो उनके साथ ही साथ सारे राज्य के लिए उचित नहीं कहे जा सकते हैं। राजनेता हो या अभिनेता वह समाज के हर वर्ग के किसी न किसी का अगुआ होता है। उसके द्वारा कही गई बात को उनके समर्थक आत्मसात भी करते हैं, इस बात को राजनेताओं को भूलना नहीं चाहिए।

अपने वोट बैंक को बढाने और समर्थकों में इजाफे के लिए राजनेताओं को हर जतन करने चाहिए किन्तु इस तरह की घटिया बयानबाजी से बचना चाहिए जिसमें एक ही देश में दो राज्यों के निवासियों के बीच बैर बढे। आज मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ राज ठाकरे किस कदर ताल ठोक रहे हैं, और वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ कांग्रेस, प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के साथ ही साथ अन्य दल किस कदर खामोशी ओढे हुए हैं।

कहीं एसा न हो कि इन नेताआें के इस घिनौने तरीके से जनाधार बढाने के चक्कर में देश के समस्त राज्यों के निवासी एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं। नेताओं को इस तरह के संवेदनशील मुद्दे पर एक सर्वदलीन नीति बनाने की आवश्यक्ता है, वरना आने वाला कल रक्त रंजित क्रांति से भरा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

19 COMMENTS

  1. हर बात के कई पहलू होते हैं और सबको अपनी बात कहने का हक है। किसी बात को कौन किस तरह स्वीकार करता है, यह भी महत्वपूर्ण है। मीडिया द्वारा इस बात की व्याख्या सही तरीके से नहीं की गई। अगर हम इसे समग्र रुप में देखें तो यह बात पिछड़े राज्यों से हो रहे पलायन के चलते उपजा विचार भी हो सकता है। क्योंकि कुछ राज्य अपनी जनता के विकास के लिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, और जबकि कुछ राज्यों में वांछित विकास नहीं हो पाने के कारण वहाँ के लोग पलायन को मजबूर हैं। इससे उन राज्यों के मूल लोगों को कई अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। यह एक बिडंबना ही है कि पिछड़े राज्यों कि सरकारें ऐसे में बयानबाजी करने लग जाती हैं। जबकि उन्हें अपने यहाँ से हो रहे पलायन को रोकने एवं रोजगार के अवसर बे उन पर गर्व है। मेरे मित्रों में अधिकतर अन्य पिछड़े राज्यों से आए हुए लोग हैं, वे भी शिवराज को एक आदर्श मुख्यमंत्री के रुप में देखते हैं।

  2. shivraj jee kuch log aapko digbhramit kar rahe hain, kripya apne aas pas ke safai jalde kar len aapka apna janadhar bahut aacha hai but ye jaychand aapko khokla kar rahe hain. is lekh se aapke liye ik aacha sandehs bhi hai, ise jaroor padhiyega

  3. शिवराज जी आप “शिवराज“ बने रहें “राज“ ठाकरे न बनें। आपकी छवि बहुत अच्छी है।

  4. ये म‌ध्य‌ प्र‌देश् है शिव्र‌ज् जी और् ये म् पी जॊ है वॊ अख‌न्द् भार‌त् का अभिन्न‌ अङ है इस् मै प्रजातन्त्रा है ना की हीतलर शाही

  5. देश में कोई भी कहीं भी जाकर नौकरी करने के लिए स्वतंत्र है। राज ठाकरे और शीला दीक्षित के बयानों के बाद केंद्र सरकार द्वारा कोई कदम न उठाए जाने से अब और राजनैतिक दलों के मातहतों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं।

  6. महाराष्ट्र में हम सभी राज ठाकरे के दंश को झेल रहे हैं, मध्य प्रदेश शांति का टापू कहा जाता है, वहां तो कम से कम इस तरह का काम न किया जाए

  7. हम से हमारा नैतिक अधिकार मत छीनिये शिवराज सिह चौहान जी, आप चाहें तो मध्य प्रदेश के लोगों को प्राथमिकता दें किन्तु राज ठाकरे जैसा जुल्म तो कम से कम न ही करें तो बेहतर होगा

  8. राज ठाकरे तो जहर उगल रहे हैं, शिवराज सिंह चौहान की छवि उदारवादी है, पर अब लगता है कि वे भी कुंठा से ग्रस्त हो गए हैं

  9. मेरा मायका उत्तर प्रदेश का है, मेरा परिवार बहुत गरीब है, अगर शिवराज चौहान कहें तो मैं अपने भाई को जिसे मैने नौकरी के लिए इंदौर बुलाया है उसे मैं वापस इंदौर भिजवा दूं

  10. IS DESH MAIN IK HE BALA SAHEB, IK HE RAJ THAKRE KAFEE NAHE HAI KYA SHIV RAJ JEE JO AB AAPNE MORCHA SAMBHAL LIYA HAI

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