कहानी राजनीति

लघुकथा : गदहा मारे कुछ न दोष / आर. सिंह

भ्रष्टाचार के मामले में प्रधान मंत्री का नाम आने पर जिस तरह से लोग उनके बचाव में खड़े हो गए हैं, यह देखकर मुझे बचपन में सुनी हुई एक कहानी याद आ रही है.

कहानी भारत वर्ष के किसी कोने की है. बहुत पहले की बात है. भारत में एक गाँव था.जाहिर है कि गाँव में विभिन्न जातियों के लोग रहते थे .अन्य जातियों के साथ एक ब्राहमण परिवार भी रहता था उस गाँव में. लोग ब्राहमण देवता की बात को ब्रह्म वाक्य की तरह मानते थे. ब्राह्मण देवता इसका नाजायज लाभ भी उठाते थे.सब कुछ समझते हुए भी कोई उनके विरुद्ध बोल नहीं पाता था. शाप का भय जो था.

एक बार वे गाँव के बाहर से आ रहे थे कि उनकी नजर तुरत मरे हुए एक गदहे पर पडी,जिसके पास गाँव के बच्चों की झुण्ड खड़ा था . उन्होंने तुरत पूछा, “यह गदहा कैसे मरा ?किसने इस मारा?”

सब बच्चे तो चुप रहे ,पर एक छोटा बच्चा बोल पडा,’हमलोगों ने इसे मारा.”

पंडित जी को यह स्वर्ण अवसर दिखाई दिया.वे जाल्दी घर आये और पंडितानी को कुछ हिदायत देकर तुरत चौपाल पहुंचे.वहां पंडित जी के आदेश पर पंचायत जुट गयी.पंडित जी ने बताया कि गाँव के बच्चों से भयानक पाप हो गया है. उनलोगों ने अकारण एक गदहे की जान ले ली है. गाँव के लड़कों को भी पंचायत में बुलाया गया. उन लोगों ने डरते डरते अपना जुर्म स्वीकार किया. फिर प्रायश्चित का विधान होने लगा.पंडित जी ने अनुष्ठान में इतना खर्च बताया कि लोग हिल गए. उन्हीं पंचों में से कुछ लोग अपने बच्चों पर भी पिल पड़े. यह सब शोर गुल मच ही रहा था कि एक बच्चा बोल पड़ा.,”संतोष भी हमलोगों के साथ था और उसने भी गदहे को मारा है.”

अब तो पंडित जी की सारी पंडिताई हवा हो गयी.वे भक रह गए.

वे वहां से यह कहते हुए निकल गए कि,

दस पांच लड़के, एक संतोष.

गदहा मारे कुछ न दोष.

पंडित जी ने आगे कोई कारर्वाई नहीं की, क्योंकि संतोष उनका ही बेटा था.

क्या आज प्रधान मंत्री उसी संतोष का जगह नहीं ले रहे हैं?

क्षमा याचना: इसमे पंडित जी का जो उदाहरण दिया गया है,उसे मेरी मजबूरी समझिये. मैं नहीं समझता कि इससे किसी के भावनाओं को ठेस पहुंचा होगा . अगर ऐसा हुआ है तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ.