कविता

बहन

दिखती है जिसमें
मां की प्रतिच्छवि
वह कोई और नहीं
होती है बान्धवि

जानती है पढ़ना
भ्राता का अंतर्मन
अंतर्यामी होती है
ममतामयी बहन

है जीवन धरा पर
जब तक है वेगिनी
उत्सवों में उल्लास
भर देती है भगिनी

आलोक कौशिक