दिखती है जिसमें
मां की प्रतिच्छवि
वह कोई और नहीं
होती है बान्धवि
जानती है पढ़ना
भ्राता का अंतर्मन
अंतर्यामी होती है
ममतामयी बहन
है जीवन धरा पर
जब तक है वेगिनी
उत्सवों में उल्लास
भर देती है भगिनी
आलोक कौशिक
दिखती है जिसमें
मां की प्रतिच्छवि
वह कोई और नहीं
होती है बान्धवि
जानती है पढ़ना
भ्राता का अंतर्मन
अंतर्यामी होती है
ममतामयी बहन
है जीवन धरा पर
जब तक है वेगिनी
उत्सवों में उल्लास
भर देती है भगिनी
आलोक कौशिक
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।