परिचर्चा

अभिनंदन स्मृति ईरानी का

-अतुल तारे-
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यह वास्तव में देश का दुर्भाग्य ही है और इसीलिए संभवत: भारत ही विश्व के उन अपवाद स्वरूप देशों में से एक है, जहां देश की शिक्षा प्रणाली क्या हो, हमें पढ़ाना क्या है, यही आज तक नहीं हो पाया है। शिक्षा के प्रति इस घोर उदासीनता एवं पश्चिमी नजरिए से भारत को देखने का ही परिणाम है कि आज स्वाधीनता के पश्चात आई तीन पीढ़ी क्रमश: राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान का भाव खोती जा रही हैं। प्रशंसा करनी होगी मानव संसाधन मंत्री समृति ईरानी की जिन्होंने कामकाज संभालते ही देश की रुग्ण शिक्षा पद्धति की नस पर हाथ रख कर निर्देश दे दिए हैं कि भारतीय शिक्षा प्रणाली वेदों के आधार पर किस प्रकार विकसित की जा सकती है इस संभावना पर विचार किया जाए। हम जानते हैं कि पश्चिम की चिंतन धारा प्लेटो एवं अरस्तू से प्रभावित है, कारण उसका उद्गम ही इनका दर्शन है। ठीक इसी प्रकार भारतीय चिंतन की गंगोत्री वेद है।

साहित्य, विज्ञान, कला, संस्कृति, अर्थ, लोकाचार, राजनीति सहित जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसका समावेश वेदों में न हो। परन्तु लॉर्ड मैकाले के मानस पुत्रों ने आजादी के बाद देश की शिक्षा पद्धति की रचना ही ऐसी की कि हम कालिदास का अभिज्ञान शकुंतलम तो भूल गए, पर शेक्सपियर का ‘मर्चेन्ट ऑफ वेनिसÓ याद रहा। कौटिल्य का अर्थशा हमारे लिए पोथी हो गया और जार्ज बर्नाड शा में हम विकास के सूत्र तलाशने लगे। आयुर्वेद के जनक धनवंतरी हमारे लिए अप्रासंगिक हो गए और उसका स्थान आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने ले लिया, जिसने रोग का इलाज तो किया पर शरीर को दवा पर अवलम्बित कर दिया। तात्पर्य यह कदापि नहीं कि पश्चिमी शिक्षा पद्धति अनुचित है। उसमें सभी त्याज्य है। परन्तु वह अपूर्ण है, एकांगी है, यह पश्चिम भी मानने लगा है। अत: वह भी संस्कृत में दर्शन के ज्ञान, के सूत्र तलाश रहा है। निश्चित रूप से इस परिप्रेक्ष्य में श्रीमती स्मृति ईरानी की पहल सराहनीय है। उन पर शिक्षा के भगवाकरण के आरोप लगेंगे पर केन्द्र में आज सरकार है उसमें आरोपों का सामना कर परिणाम देने का साहस है अत: इस पहल के सकारात्मक परिणामों की प्रतीक्षा करनी होगी।

परन्तु इस बीच स्मृति ईरानी की शैक्षणिक योग्यता पर उठा सवाल अज्ञानतावश है, हताशावश है या इसके पीछे कोई षड्यंत्र यह भी समझना होगा। कारण स्वयं स्मृति ईरानी ने संकेत दिए हैं कि यह मूल काम से मुझे भटकाने का प्रयास है। मानव संसाधन मंत्री ही नहीं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शिक्षित होना आवश्यक है। कबीर किस विश्व विद्यालय से पीएचडी थे, तुलसीदास क्या हार्वर्ड रिटर्न थे, पर आज वे जो रच गए हैं उस पर विद्वान मंथन कर रहे हैं। आशय स्मृति ईरानी की इनसे तुलना करने का नहीं है कारण वे व्यक्तित्व तो अतुलनीय हैं। कहने का आशय यह कि पढ़ाना क्या है, उससे अधिक महत्वपूर्ण यह भी होता है कि पढ़ाते किस तरह हैं, इसलिए शिक्षा में स्नातक (बी.एड.) या स्नातकोत्तर (एम.एड.) की आवश्यकता हुई। यह समय आरोप-प्रत्यारोप या सतही राजनीति का नहीं है। मानव संसाधन यह शब्द ही अपने आप में व्यापक है अपार संभावनाएं लिए हुए है। यह मंत्रालय मनुष्य के सर्वांगीण विकास के रास्ते तलाशता है और मनुष्य का सर्वांगीण विकास सिर्फ अक्षर ज्ञान या बड़ी-बड़ी डिग्री लेने से नहीं होता। अत: स्मृति ईरानी की योग्यता की कसौटी उनके काम का प्रदर्शन होगा। एक राज्यसभा सांसद के नाते, भाजपा की वरिष्ठ नेत्री के नाते वे स्वयं को प्रमाणित कर चुकी हैं। आज इस युवा नेत्री को एक असाधारण जवाबदारी मिली है, तो यह समय है कि उनके निर्णयों की प्रतीक्षा की जाए न कि अनावश्यक विवाद खड़ा करके स्वयं के शिक्षित (?) होने का प्रदर्शन करने की।