आ केहू खराब नइखे, सबे ठीक बा…

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संजय स्वदेश

जब भी किसी राज्य की सरकार बदलती है, समाज की आबो-हवा करवट लेती है। भले ही इस करवट से कांटे चुभे या मखमली गद्दे सा अहसास हो, परिर्वतन स्वाभाविक है। बिहार में नीतीश से पहले राजद का शासन था। जब लालू प्रसाद का शायन काल आया था तब भी कमोबेश वैसे ही सकारात्मक बदलाव की सुगबुगाहट थी, जैसे जैसे नीतीश कुमार की सत्ता में आने पर हुई। लालू के पहले चरण के शासनकाल में दबी कुचली पिछड़ी जाति का आत्मविश्वास बढ़ा। उन्हें एहसास हुआ कि वे भी शासकों की जमात में शामिल हो सकते हैं। लेकिन धीरे-धीरे लालू के शासन से लोग बोर होने लगे। प्रदेश की विकास की रफ्तार जड़ हो गई। लोग ऊबने लगे। नई तकनीक से देश दुनिया में बदलावा का दौर चला। बिहार की जड़ मनोदशा में भी बदलने की सुगबुगाहट हुई। जनता ने रंग दिखाया। राजद की सत्ता उखाड़ कर नीतीश को कमान दी। नीतीश के पहले दौर के शासन और अब के माहौल में खासा अंतर है। विकास की तेज रफ्तार पकड़ कर देश दुनिया में नया कीर्तिमान रचने वाले राज्य की वर्तमान हालात जानने के लिए अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में घटित कुछ घटनाओं को देखिये।

गोपालगंज जिले के जादोपुर थाना क्षेत्र के बगहां गांव में पूर्व से चल रहे भूमि विवाद को लेकर कुछ लोगों ने एक अधेड़ की पीटकर हत्या कर दी। एक अन्य घटना में गोपालगंज जिले के ही हथुआ थाना क्षेत्र के जुड़ौनी नाम के जगह पर एक छात्र को रौंदने वाले जीप चालक को भीड़ ने मार-मार कर अधमरा कर दिया। जीप में आग लगा दी। अधमरे जीप चालक के हाथ-पांव बांध कर जलती जीप में फेंक दिया। तड़पते चालक ने आग से निकल कर भगने की कोशिश की तो भीड़ ने फिर उसे दुबारा आग में फेंक दिया। एक तीसरी घटना देखिये-गोपालगंज के ही प्रसिद्ध थावे दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित पारिवारिक कार्यक्रम में भाग लेने आई एक महिला का उसके दो मासूम बच्चों के साथ अपहरण कर लिया गया।

जिस तरह चावल के एक दाने से पूरे भारत के पकने का अनुमान लगाया जा सकता है, उसी तरह से बिहार के एक जिले की इन घटनाओं से सुशासन में प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोलती है। बिहार पर केंद्रीय अपना बिहार नामक समाचार वेबसाइट पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार 25 अप्रैल को विभिन्न समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचार पत्रों के अनुसार अलग-अलग घटनाओं में कुल 19 हत्या, 29 लूट और चोरी और दो बलात्कार की घटनाएं हुर्इं। जरा गौर करें, जिस समाज में एक ही दिन में 19 हत्या हो, भीड़ कानून को हाथ में लेकर एक व्यक्ति का हाथ-पांव बांध कर जिंदा आगे के हवाले कर दें। संपत्ति के लिए अधेड़ को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दें, क्या में मजबूत होते सुशासन के लक्षण हैं।

सुनियोजित और संगठित अपराधिक कांडों के आंकड़े भले ही बिहार में कम हुए हैं। लेकिन अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाली कू्ररता जनमानस से निकली नहीं है। इन दिनों सबसे ज्यादा पचड़े किसी न किसी तरह से संपत्ति मामले को लेकर हैं।

लालू राज में बिहार की बदतर सड़कें कुशासन की गवाह होती थीं। अब यही सड़कें नीतीश के विकास की गाधा गाती हैं। इन सड़कों को रौंदने के लिए ढेरों नये वाहन उतर आएं। आटो इंडस्ट्री को चोखा मुनाफा हुआ। सरकार की झोली में राजस्व भी आया। लेकिन सड़कों पर रौंदने वाले वाहनों के अनुशासन पर नियंत्रण कहां हैं। जितनी तेजी से सड़कें बनी हैं, नीतीश के शासन में, उतनी ही तेजी से सड़क दुर्घटनाएं बढ़ीं हैं।

बिजली की समस्या बिहार के लिए सदाबहार रही। नीतीश के सुशासन में टुकड़ों-टुकड़ों में 6-8 घंटे जल्दी बल्ब राहत तो देती है, लेकिन अभी यह बिजली किसी उद्योग को शुरू करने का भरोसे लायक विश्वास नहीं जगाती। विज्ञापन और सत्ता से अन्य लाभ के लालच में भले ही बिहार का मीडिया नीतीश के यशोगान में लगा है। लेकिन गांव के बुजुर्ग अनुभवी अनपढ़ से नीतीश और लालू के राज की तुलना में कौन अच्छा है, पूछने पर चतुराई भरा जवाब मिलता है- …आ केहू खराब नइखे, सबे ठीक बा…।

 

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संजय स्‍वदेश
बिहार के गोपालगंज में हथुआ के मूल निवासी। किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातकोत्तर। केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र से पत्रकारिता एवं अनुवाद में डिप्लोमा। अध्ययन काल से ही स्वतंत्र लेखन के साथ कैरियर की शुरूआत। आकाशवाणी के रिसर्च केंद्र में स्वतंत्र कार्य। अमर उजाला में प्रशिक्षु पत्रकार। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक महामेधा से नौकरी। सहारा समय, हिन्दुस्तान, नवभारत टाईम्स के साथ कार्यअनुभव। 2006 में दैनिक भास्कर नागपुर से जुड़े। इन दिनों नागपुर से सच भी और साहस के साथ एक आंदोलन, बौद्धिक आजादी का दावा करने वाले सामाचार पत्र दैनिक १८५७ के मुख्य संवाददाता की भूमिका निभाने के साथ स्थानीय जनअभियानों से जुड़ाव। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के साथ लेखन कार्य।

1 COMMENT

  1. नितीश के शासन काल में जो बदलाव आया है ,वह सर्वत्र दृष्टि गोचर है.बिहार के लोग कम से कम अब गर्व से अपने को बिहारी कहने लगे हैं.सड़कें आने से दुर्घटनाएं बढी है, तो इसमे सड़कों का क्या दोष?
    कानून व्यवस्था पहले से अच्छी हुई यह यह सर्व विदित है.,पर अभी भी इसमे सुधार की गुंजायश और आवश्यकता है.
    बिजली के बारे में मेरे जैसे लोगों का यह मानना है की अगर इस दिशा में २०१५ के पहले सुधार नहीं हुआ तो नितीश कठिनाई में पड़ सकते हैं.

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