आतंकवाद की समस्या का समाधान

आतंकवाद से सारी दुनिया जुझ रही है| आतंकवाद एक विश्व व्यापी समस्या बन गयी है और इसकी जड़े सारे ससार में फैलती जा रही हैं| दरअसल आतंकवाद प्राचीन काल से ही इस संसार में एक बड़ी समस्या के रूप में विद्यमान रहा है| इस समस्या के निदान के लिए भगवान राम का चरित्र याद आता है| भगवान राम को उनके सुख-समृद्धि पूर्ण व सदाचार युक्‍त शासन के लिए याद किया जाता है। उन्‍हें भगवान विष्‍णु का अवतार माना जाता है| जो पृथ्‍वी पर मनुष्‍य रूप में असुर राजा, आसुरी आतंकवादी रावण से युद्ध लड़ने के लिए आए। उनका राम राज्‍य अर्थात राम का शासन शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है।भगवान राम जिस युग में जन्मे उस युग में भी आसुरी आतंकवाद फैला हुआ था| पड़ोसी देश के शक्तिशाली अधिपति रावण ने सपूर्ण भारत में अपने आसुरी आतंकी ठिकाने बना रखे थे| विभिन्न आसुरी आतंकवादी सगठनों का वह प्रायोजक था| देश का कोना कोना उसके दहशत भरे कारनामों से थर्राया हुआ था| सूर्पनखा,ताड़का,खर,दूषण,त्रिशरा,सुबाहु,मारीच इत्यादि उसके आसुरी आतंकवादी सहयोगी थे| जो देश के विभिन्न भागों में आसुरी आतंकवादी गतिविधियां संचालित करते थे| कमजोर और निर्बल जनता भयभीत हो कर अपनी इच्छाओं का दमन करके रावण की आसुरी संस्कृति का अनुसरण करने लगी और कायर शासकों ने बिना विरोध के रावण की पराधीनता स्वीकार कर ली| देश की ऐसी दुर्दशा देख कर आतंकवाद के चक्रव्युह को ध्वस्त करने के लिए भगवान श्री राम ने अपने बल, पराक्रम तथा बुध्दि का प्रयोग करना शुरू किया तो उस समय का सम्पूर्ण आसुरी आतंकवाद श्री राम के विरुद्ध संगठित हो गया| जिसमें उस समाज के कुटिल,बुद्दिजीवी, विचारक भी आसुरी आतंकवाद की मदद कर रहे थे| समाज में हमेशा ही अच्छी और बुरी दो विचार धाराए रहती आयी हैं| स्वाभाविक है की उस काल के समाज में अच्छे बुद्दिजीवी, महात्मा, विचारक भी थे जो आतंकवाद से समाज को बचाना चाहते थे| समाज का यही विचारक, बुद्दिजीवी वर्ग जनमानस को जीवन बल देने का काम करता था| जो उस काल में ऋषि कहलाते थे| श्री राम ने इस बात को समझ लिया था कि यदि ऋषि जीवित है तो समाज जीवित रहेगा| इसलिए श्री राम ने आतंकवाद के विरुद्ध देश के ऋषियों को संगठित कर उनका मार्ग दर्शन लिया| महर्षि विश्वामित्र के मार्गदर्शन में उन्होंने आसुरी आतंक के ठिकानों को नष्ट करना शुरू किया| मारीच भाग गया, सुबाहु और ताड़का मारे गए, परन्तु यह आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध का केवल प्रारम्भ था| इसको और अधिक गति देने के लिए सत्ता और सिहासन का लोभ त्याग कर श्री राम बनवासी बने| जनता बनकर जनता के बीच जाकर उनके सुख दुःख को समझा और भाई भरत द्वारा राज्य का अधिकार ग्रहण करने की प्रार्थना और आग्रह को प्रेमपूर्वक अपने भाई को अपना उद्देश्य समझाते हुए वापस लौटने के लिए मना लिया| भाई भरत को भी श्री राम के उद्देश्य की महानता और पवित्रता समझ आयी| एक ओर भरत ने शासन तंत्र संभाला दूसरी ओर राम जन जन के बीच में गए बन बन भटके| बनवासी, अरण्यवासी जनता तथा ऋषियों की पीड़ा और कष्टों को समझा और आतंकवाद जनित पीड़ा देख कर उन्होंने शत्रुओं के गढ़ में घुस कर आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त करने का संकल्प लिया, बड़े साहस की बात थी उन्होंने भुजा उठा कर प्रण लिया “आतंकवादी असुरता को दुनिया से मिटा दूँगा” | यह प्रण करने के साथ ही वे ऋषियों से जा जा कर मिले और उनको आश्वस्त किया| लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं था उनकी आतंकवाद विरोधी नीति का तीसरा बिंदु था— अच्छी विचारधाराओं वालों और आम जनता को संगठित करके एक व्यापक जन अभियान को जन्म देना| तेजस्वी , विचारक महर्षि अगस्त्य जहां एक ओर उनके इस अभियान के प्राण थे , वहीं सामान्य बनवासियों ,कोल-किरातों और वानरों तक का उनको सहयोग प्राप्त हो रहा था| आतंकवाद से संघर्ष यह किसी शासक का नहीं बल्कि आम जनता का नारा बन गया था| इस व्यापक जन अभियान का प्रभाव रावण के गढ़ में भी पड़ने लगा और उसकी जनता तथा उसके भाइयों यहाँ तक की उसकी पत्नी मन्दोदरी भी रावण की आतंकवादी नीतिओं का विरोध करने लगे| जिस कारण वह श्री राम से भयभीत होगया|इस व्यापक जन अभियान से जननायक श्री राम ने एक के बाद एक आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना आरम्भ कर दिया| दण्डकारण्य में अपना ठिकाना बनाये हुए खर –दूषण और त्रिशरा अपने हजारों साथियों सहित मारे गए| आतंकवाद की इस हार से उनका शासक रावण बौखला उठा| उसने छद्मवेश बना कर सीता का अपहरण कर लिया| यह अकेले श्री राम की नहीं बल्कि देश की जनता की भावनावों पर चोट थी| दरअसल आतंकवाद का लक्ष्य एक ही होता है- आम जनता के भाईचारे तथा अच्छे विचारों को ध्वस्त करना, और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह किसी भी सीमा तक जा सकता है|आतंकवादी देश के अधिपति को समझाने के सारे प्रयास विफल हो जाने के पश्चात अन्तिम समाधान के रूप में राम ने रावण पर आक्रमण किया| सम्भवतः यह मानव इतिहास का सबसे भीषण युद्ध था| परन्तु समाज के हित की जनभावनाओं को सफलता अवश्य मिलती है, इसलिए अन्त में आतंकवाद का खात्मा हो गया| श्री राम ने आतंकवाद को जड़ मूल से मिटा दिया| यदि हमारे देश के नागरिक,शासक और अच्छे विचारक नियमबद्ध प्रणाली, मानसिक परिपक्कवता और ईमानदारीपूर्वक अपना उद्देश्य निर्धारित कर आतंकवाद को समाप्त के बारे में भगवान श्री राम की नीतियों का पालन करने हेतु जनआन्दोलन करेंतो आतंकवाद की समस्याओं का अन्त अवश्य हो सकता है| जय जय श्री राम !

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