
एआईआईबी की घोषित नीति एशिया के पिछड़े और गरीब देशों में सड़क, यातायात, बिजली, टेलीकम्युनिकेशन और अन्य आधारभूत ढांचे के निर्माण की परियोजनाओं के लिये आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराना है, जिसका अघोषित लक्ष्य एशिया में चीन के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार भी है। ‘एशियन डवलपमेंट बैंक’ इस क्षेत्र मे पहले से काम कर रहा है और वह प्रमुख कर्ज देनेवाली वित्तीय इकाई है, जिसमें अमेरिका के साथ जापान इसके सबसे बड़े शेयर होल्डर हैं। एआईआईबी इस रूप में पश्चिमी देशों की वित्तीय इकाईयों का विकल्प है। बैंक के माध्यम से भी चीन अपने इसी लक्ष्य को पाने के लिये प्रयत्नशील है। मध्य एशिया के साथ अपने संबंधों को विस्तार देते हुए उस क्षेत्र में वित्तीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये चीन ने 40 बिलियन डॉलर के सहयोग से ‘सिल्क रोड फंड’ की स्थापना भी की है।
चीन की नीतियों का विरोध करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने सभी सहयोगी देशों से कहा था कि वो एआईआईबी से दूर रहे। ऑस्ट्रेलियन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वाशिंगटन ने एआईआईबी में साझेदारी नहीं करने के लिये कैनबा पर दबाव बनाया था। लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिकी दबाव के विरुद्ध निर्णय लिया। ब्रिटेन की तरह ही फ्रांस, जर्मनी और इटली ने इस बात की घोषणा की है कि वो चीन के एआईआईबी के साझेदार बनेंगे। जर्मनी के विदेश मंत्री वोल्फगैंग शॉयुब्ल ने कहा कि हम अपन लंबे अनुभवों का लाभ बैंक की साख को मजबूत करने के लिये देंगे। उन्होंने यह बात चीन के उप प्रधानमंत्री मा-काई के साथ संयुक्त प्रेस वक्तव्य में कही। उन्होंने कहा कि तीनों देश एशिया के आर्थिक विकास में अपना सकारात्मक सहयोग देना चाहते हैं, जिसमें जर्मनी की कंपनियां सक्रीय रूप से भाग ले रही हैं।
इस तरह 30 देशों की हिस्सेदारी तय हो गई है। अधिकृत रूप से चीन ने 27 देशों की सदस्यता (आवेदन पत्र) की घोषणा की है। अक्टूबर 2014 में एआईआईबी की स्थापना के समय 21 देशों ने उसके घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये थे, 9 फरवरी 2015 को 6 अन्य देश, जिसमें इण्डोनेशिया और सऊदी अरब भी शामिल है, ने बैंक की सदस्यता के लिये आवेदन दिया। 25 मार्च 2015 को 9 देशों ने सदस्यता ग्रहण की, जो ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, लक्जमबर्ग, स्विटजरलैण्ड, तुर्की, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया हैं। 28 मार्च को डेनमार्क और नीदरलैंड ने आवेदन दिया और 28 मार्च को ही रूस ने बैंक में शामिल होने के निर्णय की घोषणा की। 29 मार्च को ऑस्ट्रेलिया ने सदस्यता के लिये आवेदन दिया।
अमेरिका ने कहा है कि वाशिंगटन को इस बात की आशंका है, कि चीन के नेतृत्व में बन रहा बैंक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मापदण्डों पर दृढ़ रह पायेगा। उन्होंने कई सवाल खड़े किये कि क्या वह कामगरों के अधिकारों की रक्षा कर पायेगा? क्या वह पर्यावरण को संरक्षण दे पायेगा? क्या वह करप्शन जैसे मुद्दों को सही तरीके से हल करने की स्थिति में होगा? मगर चीन के वित्त मंत्री ने आश्वासन दिया कि एआईआईबी मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से प्रतिस्पर्धा नहीं करेगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के अलावा विश्व बैंक और एशियन डवलपमेंट बैंक ने एआईआईबी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया हैं।
यह अमेरिकी सरकार और राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिये गहरा आघात है। उनकी आर्थिक नीति एवं कूटनीतिक समझ की बड़ी असफलता, जो इस बात का खुला प्रमाण है, कि अमेरिकी वर्चस्व का अंत हो रहा है और विश्व का वित्तीय संतुलन तेजी से बदल रहा है।
–अंकुर विजयवर्गीय
अमेरिका ने कामगारों के अधिकार, पर्यावरण और अंतर राष्ट्रिय मापदंडों का ऐसा हल्ला खड़ा किया है की कई देश अपनी परंपरागत कार्य शैली को अपना नहीं सकते. एक और शिगूफा है ”बाल मज़दूर” किसान का पुत्र जो ७-८ साल का है पिता के साथ खेत पर जाता है और मामूली कामो में उसकी मदद करता है तो यह बलमज़दूरी कहाँ हुई?यदि गेरेज का कार्य करने वाले कारीगर को उसका लड़का टिफ़िन देने जाता है और कारीगर के खाना खाते वक्त वह कोई कार्य स्वयं अपनी रूचि या पिता को आराम देने की दृष्टि से करता है तो यह बाल श्रम कहाँ हुआ?पर्यावरण का सबसे अहित करने वाला देश स्वयं अमेरिका है.प्रति व्यक्ति कितनी कारें हैं वहां?प्रति परिवार फ्रीज़,वाशिंग मशीने और अन्य ढेर सारी सुविधाएँ किस गैस का उत्सरजन करती हैं?सबसे अधिक हथियारों के कारखाने कहाँ हैं?पुरे एशिया को युद्ध की हालत में झोंकने वाला सक्रीय देश कौनसा है?अंतर राष्ट्रीय मापदंड क्या हैं/अमेरिकी मापदंड या दक्षिण की जरूरतों के मुताबिक मापदण्ड ?यह एशियाई बैंक सफल होगी. तभी तो सऊदी अरब सरीखे समपप्न राष्ट्र इसके सदस्य बने हैं.