एक सच्चे आर्यवीर स्टेशन-मास्टर लाला गंगाराम के जीवन की कुछ प्रेरक घटनायें

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इतिहास मर्मज्ञ स्वामी स्वतन्त्रानन्द द्वारा लिखित प्रेरक प्रसंग

लेखक-स्वामी स्वतन्त्रानन्द, प्रस्तुतिः मनमोहन कुमार आर्य

               आचार की दृष्टि से तथा अपने स्वभाव में कट्टरपन की दृष्टि सहित अपने नियमों पर अटल रहने से लाला गंगाराम जी विशेष व्यक्ति थे। उनके जीवन की कुछ घटनाएं लिखता हूं। सम्भव है कि कोई सज्जन इनसे लाभ प्राप्त करे।

       घटना संख्या 1: लाला गंगाराम जी सहायक स्टेशनमास्टर थे। स्टेशन मास्टर अंग्रेज था। लाला जी जिला गुजरांवाला के कानेवाली ग्राम के निवासी थे। उस समय की यह घटना है जब उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था। वह स्टेशन मास्टर से पूछकर अपने ग्राम चले गये। दैवयोग से उसी दिन एक रेलवे अफसर आ गया। उसने और बातों के साथ-साथ यह भी पूछा कि लाला गंगाराम जी कहां हैं? स्टेशन मास्टर ने उस दिन उनकी हाजरी लगा दी थी, इसलिये कहा–यहां ही हैं। कहीं इधर-उधर होंगे। बात समाप्त हो गई। गंगारामजी दूसरे दिन अपने ग्राम से आ गये। तब उस अफसर ने इनसे पूछ लिया, कल आप नहीं मिले, कहां गये थे? इन्होंने उत्तर दिया, मेरी माता का स्वर्गवास हो गया था, इसलिए मैं ग्राम गया हुआ था, यहां नहीं था। उसने कहा, स्टेशन मास्टरजी तो कहते थे कि आप यहां ही हैं। इन्होंने उत्तर दिया कि उन्होंने मेरे बचाव के लिए ऐसा कह दिया था। वास्तव में मैं अपने ग्राम गया हुआ था।

       घटना संख्या 2: एक बार लाला गंगाराम जी से लाइन क्लियर देने की विशेष भूल हो गई। जब उसका पता लगा, तो लाला जी से वक्तव्य मांगा गया। स्टेशन मास्टर ने इनको उत्तर लिखने को कहा। इन्होंने चार दिन पीछे लिखकर दिया मुझसे भूल हो गई थी। इस भूल के कारण दुर्घटना हो सकती थी। यदि नहीं हुई तो रेलयात्रियों के सौभाग्य के कारण नहीं हुई। अतः इस भूल का मुझे जो दण्ड दिया जाए, मैं प्रसन्नता से स्वीकार करूंगा।

               जब स्टेशन मास्टर ने उसे पढ़ा तो इनसे कहा कि क्या नौकरी छोड़ने की अभिलाषा है? इन्होंने उत्तर दिया नहीं। तब उसने समझाया और कहा-कुछ और लिखकर लाओ।

               वह कागज ले गये। तीन दिन पश्चात् पुनः वही उत्तर लाकर दे दिया। स्टोशन मास्टर ने कहा कि यह उत्तर तो पूर्ववाला ही है। लालाजी ने कहा, सत्य यही है, अतः यही उत्तर ठीक है। झूठ कैसे लिखूं?

               स्टेशन मास्टर ने वह उत्तर ऊपर भेज दिया। ऊपर से आज्ञा मिली गंगाराम को सावधान कर दो आगे से ऐसी भूल न करे। स्टेशन मास्टर तथा अन्य रेल-कर्मचारी आश्चर्यान्वित थे कि यह क्या हुआ। अपराध स्वीकार करने पर केवल सावधान ही किया गया। उस अधिकारी से किसी ने पूछा कि आप छोटे-छोटे अपराधों पर अधिक दण्ड दे देते हैं परन्तु लाला गंगाराम ने अपराध किया और इन्होंने स्वीकार भी कर लिया तब भी आपने वार्निंग मात्र देकर छोड़ दिया। स्टेशन मास्टर ने उत्तर दियामुझे ऐसा व्यक्ति कभी मिला ही नहीं। उसने अपराध स्वीकार किया। उसका कारण अपनी भूल बताई और उसका दण्ड लेने के लिए तैयार हो गया। लोग अपराध करते हैं तथा उसे मानकर पुनः झूठ बोलते हैं। गंगाराम ने सत्य कहा, अतः उसे कोई विशेष दण्ड दिया गया। भूल सबसे हो सकती है, उससे भी हुई।

       घटना संख्या 3: लाला गंगाराम जी की बदली किला अबदुल्लापुर (बिलोचिस्तान) में हो गई। वहां से फलों के टोकरे बाहर भेजे जाते थे। दस्तूरी का चलन वहां भी था। फलों वाले जब दस्तूरी देते थे तो ये लेते नहीं थे। प्रथम तो उनको सन्देह हुआ कि यह अधिक लेना चाहते हैं परन्तु जब इन्होंने कहा कि मुझे रेलवे से वेतन मिलता है। उसी वेतन से मुझे यह काम करना होता है। आप जिसे दस्तूरी कहते हैं, वह रिश्वत है। तब वे चुप हो गये।

               एक समय स्वर्गीय पण्डित विश्वम्भरनाथ आदि वहां गये तथा इनके पास ठहरे। एक दिन वे एक ग्राम में फल खाने चले गये। बागवान से फल लेकर खाते रहे। उस बिलोच ने इनसे पूछा कि आप यहां कैसे आये हैं? इन्होंने उत्तर दिया–लाला गंगाराम जी स्टेशन मास्टर के पास आये हुए हैं। जब फलों से पेट भरकर यह उसे फलों का दाम देने लगे तो उसने दाम लेने से इन्कार कर दिया और बलपूर्वक कहा, जब स्टेशन मास्टर दस्तूरी तक भी नहीं लेता है तो मैं उसके मित्रों से फलों का दाम लूं, यह उचित बात नहीं है। आप प्रतिदिन इस बाग से जो फल चाहें आकर खाया करें। आपसे कुछ दाम न लिया जाएगा। आप जैसे गंगाराम के मित्र हैं, वैसे ही हमारे भी मित्र हैं।

       घटना संख्या 4: उसी स्टेशन पर एक बार एक अंग्रेज रेलवे अफसर आया हुआ था और वह प्रतीक्षागृह में ठहरा हुआ था। दैवयोग से उस समय एक पुरुष, एक स्त्री अर्थात् पतिपत्नी जो बिलोच थे स्टेशन पर आये और उन्होंने सैकेण्ड क्लास का टिकट लिया। जब वह प्रतीक्षा गृह में गये तो अंग्रेज ने उन्हें वहां घुसने दिया। गंगाराम ने उस अंग्रेज से कहा कि यह प्रतीक्षागृह है और प्रथम दूसरे दर्जे के यात्रियों के लिये है। आप इसे खाली कर दें। उसने माना। इन्होंने पुलिस द्वारा उसका सामान बाहर रखवाकर उस दम्पती को ठहराया।

               उसके पश्चात एक बार इनको सूचना मिली कि इधर डाकू आये हुए हैं, आप सावधान रहें। उस दिन किला अबदुल्लापुर में कुछ न हुआ। एक और स्टेशन को डाकुओं ने लूटा। तदन्तर गाजियों का एक नेता पकड़ा गया। जब उसे रेल में ले जा रहे थे, उसने इच्छा प्रगट की कि मैं किला अबदुल्लापुर के स्टेशन मास्टर को मिलना चाहता हूं। पुलिसवालों ने स्टेशन आने पर लालाजी को कहा, वे आ गये। वह पठान बड़ी श्रद्धा से मिला और कहा, लालाजी आप निश्चिन्त भाव से रहें। जहां आप होंगे वहां कोई गाजी या डाकू जो पठान हैं, आपको कुछ न कहेगा। उस दिन हम आपके पास अमुक स्थान पर बैठे रहे। पुलिसवालों ने पूछा, खानसाहिब, लालाजी में क्या बात है? उसने कहा यह देवता है। इन्होंने सैकण्ड क्लास टिकटवाले पठान को स्थान दिलाया। यह गरीबों के सहायक हैं। इसलिये हमने निश्चय कर लिया है कि जहां ये होंगे इनकी रक्षा की जाएगी। सब पठान इनके दोस्त हैं।

दृढ़ता

       घटना संख्या 5: () जब वे पठानकोट स्टेशन पर थे, उस समय आर्यसमाज-मन्दिर बनवाया। उस स्थान के जो थानेदार थे, वे बिना टिकट रेल पर आये। लालाजी ने उनसे टिकट के पैसे प्राप्त किये जब कि वे जानते थे कि यह थानेदार है।

               (ख) एक बार एक रेलवे-अफसर अंग्रेज आया। उसके पास एक कुत्ता था। गंगाराम जी ने पूछा कुत्ते का पास या टिकट दो। उसने कहा मैं रेलवे में ही काम करता हूं। लालाजी ने कहा–मैं जानता हूं कि आपके पास, पास है, किन्तु मैं कुत्ते का किराया मांगता हूं। आपका नहीं। अन्त में उसे कुत्ते का किराया देना ही पड़ा। पहले थानेदार ने शिकायत कर दी कि यह आर्यसमाजी है। लाला लाजपतराय जी का साथी है। इन सब कारणों से वह बिलोचिस्तान बदल दिये गये।  

               (ग) किला अबदुल्लापुर में एक बार सीनियर सुपरिण्टेण्डण्ट की धर्मपत्नी अपनी सहेलियों सहित आ गई। इन्होंने निकट मांगा। उसने कहा जाते समय दे जाऊंगी। वह सायंकाल बिना टिकट दिये चली गई। इन्होंने रिपोर्ट कर दी। उस समय श्री ज्ञानचन्द मेहता, श्री गणेशदास जी विज वहां पुलिस में थे। इन्होंने गंगाराम से कहा, आपको बदलकर यहां भेजा। यहां भी आप वैसे ही काम करते हैं। इन्होंने उत्तर दिया-आप लिखकर दिला दें कि इनसे टिकट न लिया जाये, मैं न मानूंगा। यह धन मेरी जेब में तो जाता नहीं। रेलवे कोश में जाता है।

               (इनके एक परिचित अंग्रेज ने (जो किसी काम पर आगे जा रहा था) इनको समाचारपत्र चिन्हित करके दिया जहां आर्यसमाज के विरुद्ध लेख था। इन्होंने उसे पढ़ा और जब वह लौटकर आया तो अंग्रेज को आर्यपत्रिका के कुछ अंक चिन्ह लगाकर दिये जो आर्यसमाज की सत्यता प्रकट करते थे। इनको पढ़कर वह लालाजी का भक्त बन गया। इनके असली रूप को समझ गया।

               (ङ) एक स्पेशल ट्रेन में रेलवे-अफसर उधर गये। जब किला अबदुल्ला ट्रेन ठहरी तो एजेण्ट साहिब ने पूछा, गंगाराम क्या हाल है? इन्होंने उत्तर दिया ठीक है। उसने कहा, कहां जाना चाहते हो? इन्होंने कहा कि कंधार में लाइन बना दो, वहां जाऊंगा। उसने कहा हम तुम्हें पंजाब भेजना चाहते हैं। गंगाराम जी बोले कि आर्यसमाजी होने से मुझे पंजाब से यहां भेजा था। अब तो मैं पहले से भी अधिक आर्यसमाजी हूं। पर आप सोच लें, उसने कहा- Yes, we want an Aryasamajist for that place. हां, हम उस स्थान के लिए आर्यसमाजी ही चाहते हैं। तब वह अमृतसर स्टेशन पर बदल दिये गये। इनके काम से प्रसन्न होकर अमृतसर का माल उतारने और चढ़ाने का ठेका भी इनको ही दिया गया था।

       घटना संख्या 6: एक बार लाहौर के आर्यसमाजी जिनमें इनके सुपुत्र लाला फकीरचन्द जी, स्वर्गीय पं. भूमानन्दजी, पं. परमानन्दजी आदि अनेक सज्जन थे, ये सब गुरुकुल कांगड़ी जा रहे थे। अमृतसर स्टेशन पर एक अंग्रेज रेल अफसर उस डिब्बे में और आदमी बिठाने लगा। वहां प्रथम ही भीड़ थी। भूमानन्द जी ने विरोध किया। उसने भूमानन्द जी को उतार लिया। लालाजी को सूचना दी गई, वह आ गये। यह गाड़ी तो चली गई, इन्होंने भूमानन्दजी की जमानत करवाकर फ्रंटियर मेल से उसे भेज दिया। वह सहारनपुर अपने साथियों को जा मिले। दोनों पक्षों ने अभियोग किया। जिस समय उस अफसर को पता लगा कि इस अभियोग में लाला गंगारामजी साक्षी होंगे तो वह इनके पास आया और बोला कि मेरी उनसे सन्धि करवा दें क्योंकि अमृतसर में सब आपको सत्यवक्ता जानते हैं। आपकी साक्षी से यह दोषी सिद्ध न होकर मैं ही दोषी बनूंगा। गंगाराम जी ने दोनों मे सन्धि करवा दी।

               देशवासियों को स्वर्गीय लाला गंगाराम जी के जीवन की घटनाएं पढ़कर उन पर विचार करना चाहिए। जैसे वे थे, वैसे ही दृढ़ आर्य और सत्यवक्ता तथा कर्तव्य-पालक बनने का यत्न करना चाहिये।

प्रस्तुतिः मनमोहन कुमार आर्य

               (स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी लिखित पुस्तकइतिहासदर्पण से साभार)

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