आए रहे थे कोई यहाँ !

(मधुगीति १८०७०३ स)

आए रहे थे कोई यहाँ, पथिक अजाने;

गाए रहे थे वे ही जहान, अजब तराने !

बूझे थे कुछ न समझे, भाव उनके जो रहे;

त्रैलोक्य की तरज़ के, नज़ारे थे वे रहे !

हर हिय को हूक दिए हुए, प्राय वे रहे;

थे खुले चक्र जिनके रहे, वे ही पर सुने !

टेरे वे हेरे सबको रहे, बुलाना चहे;

सब आन पाए मिल न पाए, परेखे रहे !

जो भाए पाए भव्य हुए, भव को वे जाने;

‘मधु’ उनसे मिल के जाने रहे, कैसे अजाने !

रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’

2 COMMENTS

    • ??
      पसन्द करने व सुझाव देने के लिये हृदय से नमन !

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