सोनिया कांग्रेस के गुप्त एजेंडा की खुल रही परतें

डॉ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

अन्ततः सोनिया कांग्रेस सरकार ने यह निर्णय कर ही लिया कि मुसलमानों को उनके मजहब के आधार पर नौकरियों में साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। वैसे सोनिया कांग्रेस इसके लिए पिछले कुछ सालों से कोशिश कर ही रही थी। इस पार्र्टी की आन्ध्र प्रदेश सरकार ने ऐसे आरक्षण की अधिसूचना भी जारी कर दी थी। लेकिन प्रदेश के उच्च न्यायालय ने इसे संविधान विरोधी बताते हुए निरस्त कर दिया। परन्तु सोनिया कांग्रेस को किसी भी ढंग से अपने गुप्त एजेंडे को क्रियान्वित करना था। उसके लिए संविधान के विपरीत या संविधान के अनुसार इत्यादि अवधारणाओं का कोई अर्थ नहीं है। मुसलमानों को मजहब के आधार पर आरक्षण देते समय सोनिया कांग्रेस के भीतर यह झगडा लंबे अरसे से चल रहा था कि आखिर यह आरक्ष्ण किसके कोटे को काट कर दिया जाए। पहले यह चर्चा थी कि मुसलमानों को आरक्षण अनुसूचित जातियों के आरक्षित कोटे में से दिया जाएगा। लेकिन उसमें एक खतरा भी छिपा हुआ था। बाबा साहब अंबेडकर, ज्योतिबाफूले, कांशीराम, इत्यादि के प्रयासों से अनुसूचित जातियों में इतनी चेतना तो आ ही चुकी है कि वे अपने अधिकारों में मुसलमानों द्वारा सेंध लगाने के प्रयासों का सामाजिक स्तर और राजनीतिक स्तर पर भी डंट कर विरोध कर सकें। वैसे भी इस सोनिया कांग्रेस को वोट की राजनीति में नुकसान होने की संभावना ज्यादा थी। इसलिए अंततः यह गाज अन्य पिछडी जातियों के कोटे पर गिरी है। उन्हीं के 27 प्रतिशत आरक्षित कोटे में से मुसलमानों को यह मजहबी आरक्षण दिया जाएगा। सोनिया कांग्रेस जानती है कि अन्य पिछडा वर्ग इस प्रकार की अवधारणा है जिससे फिलहाल किसी प्रकार की राजनीतिक हानि की संभाावना कम है। वैसे एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए कि सोनिया कांग्रेस के लिए जब अपना लंबी दूरी का एजेंडा कार्यान्वित करने का प्रश्न आता है, तो उसके लिए राजनैतिक हानि लाभ दोयम दर्जे की प्राथमिकता होती है, अव्वल दर्जे की प्राथमिकता भारत की सामाजिक समरसता को किसी भी प्रकार से खंडित करना है। सोनिया कांग्रेस की इस रणनीति को लेकर मुख्य प्रश्न यह है कि आखिर उसका यह एजेंडा अन्ततः भारत को किस ओर लेकर जाएगा। भारत के बहुवादी समाज में मजहबी पहचान कभी भी प्रमुख नहीं रही। विरादरी, भाषा, क्षेत्र इत्यादि ऐसे कारक हैं जिनके आधार पर भारत के सामाजिक पहचान उभरती है। मोहम्मद अली जिन्ना शायद राजनैतिक स्तर पर ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह घोषणा की कि भारत के समस्त मुसलमान चाहे किसी भी भाषायी समूह अथवा क्षेत्र समूह में हो, मजहब के आधार पर अपनी एक समान अलग पहचान रखते हैं। जिन्ना जानते थे कि एक बार मुसलमानाें की पैन इंडियन मजहबी पहचान स्थापित हो गयी तो इस देश में एक आलग इस्लामी देश स्थापित हो सकता है। अंग्रेज भी इस बात को अच्छी तरह जानते थे। अपने सामा्रज्यवादी हितों की रक्षा के लिए वे इस मसले पर जिन्ना के साथ खडे हो गये। महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस अच्छी तरह जानती थी कि यह रास्ता अन्ततः देश के विभाजन की ओर जाता है। इसलिए उसने मुसलमानाें की अवधाारणा के थीसिस का डंटकर विरोध किया। लेकिन अंग्रेज और जिन्ना इसको स्थापित करने पर तुले हुए थे इसलिए ब्रिटिश सरकार ने चुनावों में मुसलमानंो के लिए मजहब के आधार पर सीटों का आरक्षण किया। अन्ततः इस पहचान का जो परिणाम होना था वही हुआ, और देश का विभाजन हो गया। शायद यही कारण था कि भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान में अनुसूचित जाति के आधार पर तो आरक्षण की व्यवस्था की परन्तु मजहबी आधार पर आरक्षण देने से साफ इनकार कर दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की समाप्ति के बाद जब सोनिया कांग्रेस ने इस दल की संरचना पर कब्जा जमा लिया तो उसने खंडित भारत में भी एक बार फिर से उसी नीति का पालन करना शुरु कर दिया है जिसका 1947 से पहले यहां के गोरे शासक किया करते थे। जाहिर है सोनिया कांग्रेस की यह नीति भारत को उसी रास्ते पर ले जा रही है जिस रास्ते से पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। यह प्रश्न राजनैतिक प्रश्न नहीं है। इसलिए इसको राजनैतिक लाभ हानि से सोचना भी नहीं चाहिए। जिस प्रकार ब्रिटिश काल में, शासनकर्ताओं की नीतियाें को लेकर भारतीयों को स्पष्ट था, कि यह नीतियां ब्रिटीश हितों की पूर्ति करती हैं, भारतीय हितों की नहीं। लेकिन इस मामले में गोरे शासकों को दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि उनको अन्ततः अपने देशों के हितों की रक्षा ही करनी थी। इसी प्रकार सोनिया कांग्रेस को भी दोष नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह भी अन्ततः व्यापक दूरगामी परिणामों वाले एजेंडा की पूर्ति में ही आगे बढ रही है। इस मसले पर तो सभी भारतीयों को अपने राजनैतिक मतभेद भुलाकर, एक साथ मिलकर लडाई लडनी होगी, जिस प्रकार गोरे शासकों के खिलाफ सारे देश ने एकजुट होकर लडाई लडी थी। एक बात अत्यंत स्पष्ट है कि पूरा मीडिया इस पूरे प्रश्न को वोटों की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में ही उछालता रहेगा और इसका विश्लेषण करता रहेगा। यह एक प्रकार से सोनिया कंाग्रेस की इस नीति के असली उद्देश्य को छिपाने की चतुराई पूर्ण कवायद ही मानी जाएगी। दरअसल देश को सोनिया कांग्रेस के उस असली एजेंडे को पहचानना होगा जो मुसलमानों को मजहब के आधिार पर आरक्षण देकर देश के विभाजन की दिशा पर पहला पत्थर रख रहा है। इस कदम से सोनिया कांग्रेस को कितनी सीटों का लाभ होगा और कितने की हानि होगी, जो इस प्रकार की बहस चला रहे हैं वे जानबूझकर या अनजाने में गरदोगुबार उडा रहे हैं ताकि उसके पीछे सोनिया कांग्रेस अपने असली एजेंडे को अमलीजामा पहना सके।

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  1. “पहले यह चर्चा थी कि मुसलमानों को आरक्षण अनुसूचित जातियों के आरक्षित कोटे में से दिया जाएगा। लेकिन उसमें एक खतरा भी छिपा हुआ था। बाबा साहब अंबेडकर, ज्योतिबाफूले, कांशीराम, इत्यादि के प्रयासों से अनुसूचित जातियों में इतनी चेतना तो आ ही चुकी है कि वे अपने अधिकारों में मुसलमानों द्वारा सेंध लगाने के प्रयासों का सामाजिक स्तर और राजनीतिक स्तर पर भी डंट कर विरोध कर सकें।”

    ये कथन दलितों को उकसाने और देश के माहौल को ख़राब करने के दुराशय से लिखा गया प्रतीत होता है, जिसका न तो कोई पुख्ता आधार प्रस्तुत किया गया है और ना ही इसमें तनिक भी सच्चाई है! एससी के कोटे को ओबीसी में शामिल अल्पसंख्यकों को देने पर विचार किये जाने का सवाल ही नहीं उठता, लेकिन धूर्त लोगों का काम ही अंग्रेजों की भांति देश के कमजोर, दमित और पिछड़े लोगों को विभाजित करके राज करना है! जिसके लिए अनेक मोर्चों पर षड़यंत्र रचे जा रहे हैं! झूंठ को गढ़ा और बेचा जाना भी इसी का एक हिस्सा है!

  2. देश का दुर्भाग्य है की आज भी ८५% हिन्दुओं पर अँगरेज़ और मुसलमान राज कर रहे हैं .. मधुसूदन जी से भी सहमत हूँ .. झंडा कांग्रेस का होना चाहिए , न की राष्ट्र ध्वज ..उतिष्ठकौन्तेय

  3. डा. अग्निहोत्री जी आपकी दूरदृष्टी कमाल की है. सोनिया कांग्रेस की प्राथमिकता भारत को टुकड़ों में बांटना है, कम-अधिक सीटों का गणित बाद की बात है. अर्थात भारत को तोड़ने के अंतरराष्ट्रीय अजेंडे हो लागू करने के लिए श्रीमती सोनिया गाँधी प्रतिबद्ध हैं. इसके लिए कांग्रेस का इस्तेमाल वे कर रही हैं. ज़रूरत पड़ने पर इस गुप्त अजेंडे की पूर्ति के लिए वे इस कांग्रेस की बलि भी दे देंगी.

  4. सच्चाई यही है की सोनिया गाँधी भारत को समर्थ देखना ही नहीं चाहती यहाँ की भुखमरी से उन्हें प्यार है .
    यह सब तभी संभव है जब समाज को टुकड़ो में बाट दिया जाय.धर्म के आधार पर जाती के आधार पर .

    देश का कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है सभी को लगता है की आरक्षण देना चाहिए तो यह जाती धर्म के नाम पर क्यों इससे तो उन गरीब लोगो का ही नुक्सान होता है क्योकि उनके हिस्से का आरक्षण (कोटा ) भी वाही लोग इस्तेमाल करते है जो सर्वसक्षम है .

  5. मुसलमानों ने लम्बे समय तक इस देश पर राज किया है. फिर भी उनकी हालत ऐसी क्यों है की आरक्षण की बैसाखियों की जरूरत पड़े??
    मुस्लिमो को सबल बनाने के लिए उनकी सोच बदलनी होगी, उन्हें कट्टर पंथी मुल्लो और धंधेबाज सेकुलरो के चुंगुल से बाहर निकालना होगा और मुख्यधारा में शामिल करना होगा.
    आरक्षण के कारण मुस्लिम और भी हाशिये में चले जायेंगे, आम भारतीय उनसे नाक-भौं सिकोड़ेंगे. और कोंग्रेस यही चाहती है, ताकि उसका वोट बैंक बना रहे.

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