विविधा

स्वतंत्रता दिवस पर मोदी की ललकार

modi1-300x182 मनमोहन की सोनिया भक्ति,

मोदी की भारत भक्ति।

कर रही है बैचेन सबको,

करना फैसला अब हम सबको।।

 

वर्षों बाद इस वर्ष 15 अगस्त पर स्वतन्त्रता की वास्तविक दहाड मोदी जी के

भाषण में सुनी। प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी श्री मनमोहन सिंह ने एक

रिपोर्ट कार्ड पढ़कर और जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी व राजीव गांधी

अर्थात् एक परिवार के लोगों का ही नाम लिया प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण

में लौह पुरुष सरदार पटेल व श्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम न लेकर अपनी

एक परिवार के प्रति भक्ति को और अधिक प्रमाणित कर दिया। राष्ट्र जब

स्वतंत्रता दिवस मना रहा हो तो लाल किले से ललकार निकलनी चाहिए थी, ऐसे

अवसरों पर बच्चों में, जनता मंे और सैनिकों में दुश्मन के प्रति जोश

जगाने वाली भावनाओं का संचार किया जाता हैं। समाज के प्रत्येक वर्ग में

राष्ट्रभक्ति का संदेश देने के स्थान पर अपने तथाकथित आकाओं का बखान करना

केवल चापलूसी व चाटुकारिता को ही बढ़ावा देता है। आजादी की राह पर मर

मिटने वाले शहीदों के बलिदानों को स्मरण करके आज भी एक सच्चा देशभक्त

उनपर गर्व करके राष्ट्र के प्रति जीवन न्यौछावर करने को तत्पर रहता है।

श्रीमान नरेन्द्र मोदी ने जिस प्रकार अपने भाषण में स्वतंत्रता दिवस पर

लालन कालेज (कच्छ, गुजरात) से प्रधानमंत्री जी के प्रगति पत्र को तर्क

पूर्वक नकारते हुए राष्ट्र के सामने सच्चाई उजागर करके जन-जन में राष्ट्र

के प्रति प्रेम जगाने का सराहनीय प्रयास किया है। आज वास्तव में दशको बाद

ऐसा लगा कि भारत का कोई लाल देश की जनता को ‘उठो, जागो और आगे बढ़ो’ के

लिए ललकार रहा है। समस्त देशवासियों के अन्दर जो नेतृत्व की कालिमा छा गई

थी और जिस काजल की कोठरी में अंधेरा ही अंधेरा भर रहा था उसे आज दीपक

जलाकर प्रकाश फैलाने वाला मिल गया है।

आज ऐसा प्रतीत हो रहा है की सम्पूर्ण भारत में बच्चे, युवा, महिलाएं व

बुजुर्ग सभी में आशा की नई किरण के रूप में श्रीमान नरेन्द्र मोदी मानो

भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के साथ अवतरित हो रहे हो और कह रहे हो:

‘‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।’’

अर्थात्

‘‘जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब

मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं। सज्जनों की रक्षा

एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों

(कालों) में अवतरित होता हूं।’’…..

 

विनोद कुमार सर्वोदय