बात की बात में से बात

पंडित सुरेश नीरव

बातों की महिमा न्यारी है। बात की बात में से बात निकल आती है। असली बात पर कोई पते की बात नहीं करता मगर बात निकलती है तो बिना बात ही बहुत दूर तक चली जाती है। और बिना रुके चलती ही चली जाती है। कश्मीर के मुद्दे पर पिछले साठ साल से हमारी सरकार पाकिस्तान सरकार से लगातार बात कर रही है। कुछ भी नया नहीं हुआ। सरकारें बोर होने लगीं। थोड़ा मूड बदलने के लिए अब बातों के गुलदस्ते में उन्होंने आतंकवाद को भी जोड़ लिया है। पर असली बात तो वही है और वहीं-की-वहीं है। दोनों देशों के बात बनाने में माहिर नेशनल लेबल के बतोड़ खिलाड़ी बात करने जाते हैं। और बात करके चले आते हैं। कुछ दिनों बाद सरकारी चबूतरे बदल जाते हैं। दिल्ली की जगह बात इस्लामाबाद में होने लगती है। शायद चबूतरे बदलने से ही बात बन जाए मगर बात फिर भी नहीं बनती। लेकिन क्या करें। समस्या का समाधान भी तो बातों से ही निकलेगा। बात बंद हुई तो युद्ध शुरू। कभी-कभी शांति की बातें और युद्ध दोनों ही साथ-साथ चलते हैं। कारगिल में यह प्रयोग भी किया गया। लेकिन बात वहीं-की–वहीं रही। भ्रष्टाचार और मंहगाई के मुद्दे पर भी सरकार और प्रतिपक्ष में बातचीत करने की हमारी प्राचीन और सनातन सरकारी परंपरा है। जो भी पार्टी प्रतिपक्ष में होती है वो सरकार से इस मुद्दे पर खुलकर बात करती है। फिर दोनों ही पक्ष जनता और मीडिया से बात करते हैं। चैनलवाले स्टूडियों में दोनों नस्ल के नेताओं को बुलाकर बात कराते हैं। खुलकर बातें होती हैं। बातें हमारी राष्ट्रीय पहचान हैं। बातें हमारे प्रजातंत्र की जान हैँ। सरकार बातचीत को तैयार हो जाए ये क्या कम है। बाबा रामदेल से सरकार बात करना चाहती थी। पहले सरकार ने तीन मंत्री भेजे। बाबा के बात समझ में नहीं आई। तो फिर सरकार ने पुलिसवालों को भेज दिया। बाबा के समझ में आ गया कि सरकार क्या होती है। कैसी होती है। जो बात मंत्री नहीं समझा सके वो पुलिशवालों ने समझा दी। माओवादियों से, नक्सलियों से, कश्मीर के अलगाववादियों से जब सरकार रूठ जाती है तो बात बंद कर देती है। घबड़ाकर वे लोग बिना शर्त बात करने को तैयार हो जाते हैं। वाह बात की भी क्या बात है। बातचीत के रास्ते कभी बंद नहीं होते। अभी मुंबई में पाकिस्तान ने फिर आतंकी हमला करा दिया। और बिना समय गंवाए वहां की सरकार ने इस घटना पर अफसोस भी जता दिया। पाकिस्तान की सरकार का अफसोस जताना जायज है। इतनी लंबी तैयारियों के बाद भी उसके गुर्गे महज़ 21 निहत्थे लोगों को ही मार पाए। इससे ज्यादा लोग तो भारतीय रेल के सौजन्य से इंडियन सरकार ने खुद ही दो दिन पहले मार लिए। कौन-सा तीर मार लिया पाकिस्तान ने। आतंकी अभी तक एक दिन में सीरियल ब्लास्ट करके अपनी पीठ खुद थपथपा लेते थे। एक दिन में दो सीरियल रेल एक्सीडेंट के जरिए आतंकवादियों की यहां भी हमारी दूरदर्शी सरकार ने अपनी अदभुत कार्यकुशलता से सरेआम नाक काट दी। आतंकी संगठन वारदात करके हादसे का जिम्मा ले लेते हैं। जाहिल लोग हैं। हमारी सरकार ऐसी मूर्खता कभी नहीं करती। तय है कि सरकार कभी किसी हादसे की जिम्मेदार नहीं होती। सरकार सरकार है कोई आतंकी संगठन नहीं कि लपक कर हादसे की जिम्मेदारी ले ले। वो सलीके से जांच बैठाती है। और फिर साक्ष्यों के आधार पर तोलमोल के बोलकर अपना फरमान सुनाती है कि अमुक रेल दुर्घटना के लिए रेल,रेल की पटरी और रेल के यात्री ही जिम्मेदार हैं। सरकार की जिम्मेदारी तो यात्री को टिकट बेचने,किराया बढ़ाने और दुर्घटना के बाद घायल और मृतकों को मुआवजे की घोषणा करने भर की होती है। सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से न कभी हटी है और न भविष्य में हटेगी। सरकार हमेशा मुसाफिर को आगाह करती है कि अपने जान-माल की यात्री स्वयं रक्षा करें। मगर सवारी है कि सरकार के भरोसे सफर करने चल पड़ती है। सरकार की सुनती ही नहीं है। सिर्फ बातें करना,कोरी बातें करना प्रतिपक्ष का काम है। सरकार कभी फालतू बात नहीं करती। सरकार हमेशा पते की बात करती है। अब सरकार अखबारों में मोबाइल नंबर देकर गर्मागरम बातों के लिए,रंगीन बातों के लिए और हंसीन बातों के लिए विज्ञापन तो देने से रही। यह काम सरकार ने निजी संस्थानों को सौप रखा है। प्राइवेट संस्थाएं.प्राइवेट बातें। प्राइवेट बातें कभी सरकारी होना भी नहीं चाहिए. वरना अच्छा-खासा आदमी एन.डी.तिवारी हो जाता है। आपके पास टॉकटाइम से लवरेज मोबाइल है। अपनी दिलवर सरकार से खूब चैटिंग करिए। सरकार जानती है कि कसमें,वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या। इसलिए सरकार सिर्फ सरकार को बचाने के लिए और सरकार बनाने के लिए ही जनता से बात करती है। सरकार जनता से बात करती है यह क्या कम है। मगर कुछ लोग कहते है कि बात करना और बातें बनाना ही सरकार का काम है। बातें अधिक काम कम।

2 COMMENTS

  1. नीरव जी धन्यवाद

    बहुत अरसे बाद

    पं प्रताप नारायण की यद् तजा हो गयी.

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