’’प्रवक्ता’’ पर लिखने का मकसद प्रशंसा पाना नहीं है-इक़बाल हिंदुस्तानी

iqbal hindustaniपहले मेरे 179 लेखों का अध्ययन करें फिर मेरे बारे में कोई राय बनायें! 

 

प्रवक्ता पर हाल ही में प्रकाशित मेरे एक लेख ’वाजपेयी उदार और आडवाणी कट्टर क्यों माने जाते हैं?’ पर कई लोगों ने प्रतिक्रिया लिखी है। उनमें से कुछ लोगों ने सहमति जताई है तो अधिकांश ने असहमति। ऐसा करना उनका अधिकार है। मुझे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई एतराज़ भी नहीं है लेकिन एक साथी ने मुझ पर साम्प्रदायिक होने और भाजपा विरोधी होने का व्यक्तिगत आक्षेप लगाते हुए कटाक्ष किया है कि आपके प्रशंसकों को पता चलना चाहिये कि आप कैसे हैं? मुझे अपने इस मित्र की बुध्दि पर तरस आ रहा है कि जिस लेखक के प्रवक्ता पर 179 लेख मौजूद हैं जिनमें हर वर्ग, पार्टी, धर्म और जाति आदि की कमियों, बुराइयों और कमज़ोरियों पर कलम निष्पक्ष रूप से बार बार चलाई गयी है उसपर यह आरोप कैसे लगाया जा सकता है?

स्वस्थ और सकारात्मक आलोचना करना बुरा नहीं है लेकिन जहां तक प्रशंसा पाने का सवाल है तो मैं स्पष्ट कर दूं कि हालांकि प्रशंसा पाना मानव स्वभाव होता है लेकिन जब आप सच, हकीकत और समाजहित में लिखेंगे या जनहित में कुछ भी करेंगे तो ज़रूरी नहीं आपको प्रशंसा मिलेगी या किसी तरह का प्रत्यक्ष लाभ ही मिलेगा। मैं वो लिखता हूं जो मुझे ठीक लगता है। आप वो पढ़ना चाहते हैं जो आपको अच्छा लगता है।

उसूलों पर जो आंच आये तो टकराना ज़रूरी है

 जो ज़िंदा हो तो फिर जिं़दा नज़र आना ज़रूरी है।

 

मुझे हैरत हुयी यह पढ़कर कि फेसबुक की तरह प्रवक्ता पर भी पाठकों को यह पता लगे कि मेरी सोच क्या है? अरे भाई प्रवक्ता की स्थापना के कुछ समय बाद से ही मैं भाई संजीव सिन्हा और भारत भूषण जी से अपने लेखन के माध्यम से जुड़ा हुआ हूं। जो कुछ लिखता हूं वह पाठकों के पढ़ने के लिये ही लिखता हूं। यह भी जानता हंू कि इससे उनकी नज़र में मेरी क्या छवि बनती होगी। मुझे इसकी तनिक भी ना तो चिंता है और ना ही डर। मेरे विचार सेकुलर और समाजवादी सोच से प्रभावित होते हैं यह कोई छिपाने की बात नहीं है, मुझे इस पर गर्व है। जब मेरे विरोधी मेरी प्रशंसा करने लगते हैं तो मैं एलर्ट हो जाता हूं कि कहीं मैं अपनी सोच से भटक तो नहीं रहा हूं। मुझे कोई चुनाव नहीं लड़ना है। जिससे मैं लोगों के नाराज़ होने की चिंता करूं।

रहा सवाल भाजपा और मोदी के विरोध का, मेरा आज भी यही मानना है कि ये साम्प्रदायिक हैं। इस सोच को भारत की अधिकांश जनता स्वीकार भी करती है, यह कई बार साबित हो चुका है।

 हर जु़बां ख़ामोश है अब हर नज़र खामोश है,

  क्या बतायें आदमी क्या सोचकर ख़ामोश है।

सपा बसपा जैसे दल जातिवादी और अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता को कभी कभी बढ़ावा देते हैं यह भी सच है। कांग्रेस बहुत भ्रष्ट और धर्म व जाति के आधार कई बार राजनीतिक फैसले लेती है, यह भी एक वास्तविकता है। हमारा काम पार्टी बनना या पूर्वाग्रह रखकर किसी व्यक्ति या दल विशेष के पक्ष या विपक्ष में कलम चलाना नहीं है। हम गुण दोष के आधार पर समय समय पर विश्लेषण करते रहते हैं, यह अधिकार हमें संविधान ने दिया है।  ब्रिटेन के कुछ शोधकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर आंकड़ों और जानकारियों पर रिसर्च करके बताया है कि कट्टरपंथी चाहे किसी भी वर्ग के हांे वे कमअक़्ल होते हैं। उन्होंने शोध में पाया कि बचपन में कम बुध्दिमत्ता वाले लोग बड़े होकर अकसर नस्लवादी, जातिवादी और साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी सोच के हो जाते हैं।

ऐसे लोग ही अहंकारी, तानाशाही और संकीर्णतावादी सोच के कारण पूर्वाग्रह, हिंसा और पक्षपात में विश्वास करते हैं जिससे मौका मिलते ही कोई घटना हो ना हो मात्र अफवाह से ये अपने विरोधियों को सबक सिखाने पर उतर आते हैं। दंगे, सामूहिक नरसंहार और अपने दुश्मनों के साथ अन्याय अत्याचार करके कट्टरवादी देश और दुनिया को अपनी सोच के हिसाब से चलाने का सपना दिन में ही देखते रहते हैं लेकिन सच यह है कि इनकी इन तालिबानी हरकतों से इनके दुश्मन और मज़बूत होते हैं और दूसरे वर्ग की आतंकी और बदले की कार्यवाही बढ़ती है। सबसे बड़ा पागलपन ऐसे कट्टरपंथियों का खुद को श्रेष्ठ मानना है।

मज़ा देखा मियां सच बोलने का ,

 जिधर तुम हो उधर कोई नहीं है।

प्रवक्ता डॉटकॉम पर मैंने कुछ दिन पहले मुसलमानों के आज के हालात पर एक लेख लिखा था। इसमें यह बात ख़ास तौर पर उठाई गयी थी कि मुसलमानों को सरकार द्वारा आरक्षण देने का लाभ तब तक नहीं होगा जब तक कि वे कट्टरता और मदरसों की परंपरागत शिक्षा  छोड़कर उच्च शिक्षा में आगे नहीं आयेंगे। इसी कारण वे दलितों से भी अधिक गरीब और पिछड़ चुके हैं। उनका धर्म के नाम पर परिवार नियोजन से परहेज़ करना भी आज के हालात की एक बड़ी वजह है। यह अलग बात है कि खुद भारत सरकार के आंकड़ें इस बात की गवाही दे रहे हैं कि जो मुसलमान आधुनिक, वैज्ञानिक और प्रगतिशील शिक्षा लेकर सम्पन्न हो गये वे गैर मुस्लिमों की तरह ही परिवार छोटा रखने लगे हैं।

इस लेख को जहां अनेक लोगों ने सराहा वहीं मेरे कुछ शुभचिंतकों ने मुझे आगाह किया कि ऐसी कड़वी सच्चाई मत लिखा करो जिससे मुसलमानों का कट्टरपंथी सोच वाला वर्ग आप से नाराज़ हो जाये।

यूं तो ज़बां थी सभी पर मगर,

 चुप हमीं से मगर रहा गया।

उन्होंने यह भी पूछा कि आपको ऐसा लिखने में डर नहीं लगता? मेरा कहना है कि सच वह फुटबाल होती है कि जिसको दर्जनों खिलाड़ी सुबह से शाम तक मैदान लातें मारते हैं लेकिन उस बॉल का कुछ भी तो नहीं बिगड़ता अगर कुछ समय के लिये पंक्चर हो भी जाये या हवा निकल जाये तो थोड़ी देर में फिर से ठीक होकर पहले की तरह मज़बूत और फौलादी होकर चुनौती देती नज़र आती है। जबकि झूठ पानी का बुलबुला होता है जिसकी ज़िंदगी भी क्षणिक होती है। सच एक पहाड़ है तो झूठ एक राई की तरह होता है। वैसे तो मैं अपने चाहने वालों का आभारी हूं कि उनको मेरी इतनी चिंता है कि वे मुझे किसी ख़तरे में नहीं डालना चाहते लेकिन एक बात अपने दोस्तों को स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह अपना अपना मिज़ाज होता है कि एक आदमी खुद पर भी जुल्म और नाइंसाफी चुपचाप सहता रहता है जबकि दूसरा आदमी किसी दूसरे, पराये कहे जाने वाले या विदेशी आदमी तक पर ज्यादती बर्दाश्त नहीं करता।

मैं एक क़तरा ही सही मेरा अलग वजूद तो है,

  हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है।

ऐसे ही नजीबाबाद में गंगा जमुनी तहज़ीब को जिं़दा रखने के लिये 1992 में अयोध्या में विवादित इमारत के ध्वंस के बाद जब होली मिलन कराने के लिये कोई मुस्लिम सामने आने को तैयार नहीं था उस समय इन पंक्तियों के लेखक ने संयोजक बनकर इस एकता और भाईचारे की परंपरा को जारी रखने का बीड़ा उठाया और इस चुनौती को कट्टरपंथियों की तमाम धमकियों के बावजूद अंजाम तक पहंुचाने में मेरे परम मित्र और कवि प्रदीप डेज़ी, छोटे भाई शादाब ज़फर शादाब जी हां प्रवक्ता पर लेख लिखने वाले, और आफताब नौमानी ने भरपूर सहयोग किया। लेख और ख़बरों पर धमकी भरे फोन और चिट्ठी आना तो आम बात रही है लेकिन हम जानते हैं कि ऐसे लोग कायर और ढोंगी होते हैं इसलिये कई बार पुलिस को बताना तो दूर हमने परिवार और मित्रों में भी धमकी की चर्चा करना ज़रूरी नहीं समझा।

जिस तरह से डायबिटीज़ के एक मरीज़ को वह डॉक्टर अच्छा लगता है जो यह कहे कि मीठा खूब खाओ और किसी तरह की दवाई या परहेज़ की भी ज़रूरत आपको नहीं है उसी तरह से कलमकार का मामला होता है कि अगर वह अपने पाठक को यह कहे कि वे जो कुछ कर रहे हैं वह बिल्कुल ठीक है। सच कहने का साहस इसलिये न करे कि इससे उसका पाठक नाराज़ और ख़फ़ा हो सकता है तो मेरा मानना है कि वह कड़क और सख़्त डाक्टर पहले डॉक्टर से कहीं अधिक बेहतर है जो यह कहता है कि आपको डायबिटीज़ है और अब आपको ज़िंदगीभर मीठे से परहेज़ रखना है यानी लिमिट में शुगर लेनी है और अगर आप मेरी सलाह नहीं मानेंगे तो आपको इंसुलिन इंजैक्शन से देनी होगी। इतने पर भी काम नहीं चलेगा तो अस्पताल में भर्ती कर लूंगा।

कहने का मतलब यह है कि हमें यह नहीं देखना कि सामने वाले को क्या अच्छा लगेगा बल्कि यह देखना चाहिये कि उसके लिये वास्तव में अच्छा है क्या? यह बात तो क्षणिक बुरी लगेगी लेकिन जो लोग चापलूसी और चाटुकारिता से लोगों को यह अहसास नहीं होने देते कि कमी और गल्ती कहां है उनसे बड़ा दुश्मन कौन हो सकता है? जब किसी बंदे को यही नहीं पता चलेगा कि रोग क्या है और उसकी जड़ कहां है तो उसका इलाज कैसे होगा? मुसलमानों की और समस्याओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यही है कि उनको असलियत का आईना दिखाने की हिम्मत कोई नहीं करता? वे जज़्बाती और भावुक होते हैं जिससे उनकी संवेदनशीलता को कैश करने के लिये अकसर ऐसे बयान दिये जाते हैं जिनसे मुसलमानों को फायदा तो दूर उल्टे नुकसान अधिक होता है।

यह सच तो टूटकर कब का बिखर गया होता,

अगर मैं झूठ की ताक़त से डर गया होता।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

20 COMMENTS

  1. साहित्यकार श्री श्री इकबाल भाई आईये कृपया प्रवक्ता पर “रजनी कान्त बर्खास्त : रजनी कान्त का कार्यभार नरेंद्र को सौंपा गया” लेख कि प्रतिक्रियाओं का भी मज़ा लीजिए …और अपने विचार रखिये

  2. क्योंकि कलयुग में समय की ऐसी ही मांग है ….हिन्दू अपनी अति सहिशुनता की भावना की वजह से आज वहां है जयं उसे होना चाहिए ….

    ये समय ही ऐसा है मेरे दोस्त सब झूठा है तो भी झूंठ चमक दिखलायेगा, क्योंकि,
    राम चन्द्र कह गए हैं सिया से हंस चुगेगा दाना दुनका कौया मोती खायेगा

  3. सभी आदरणीयों को नमस्कार,

    मेरा सभी प्रवक्ता के माननीय पाठकों और लेखकों से सादर अनुरोध है की वे इस लेख को इकबाल भाई द्वारा लिखने की मजबूरी जानने के लिए इसकी तह तक जाएँ और इसके लिए फेसबुक पर इकबाल भाई को फ्रेंड्स लिस्ट में एड करें| यहाँ यह लेख यह अभी तक एक तरफ़ा मामला प्रतीत हो रहा है…और किसी बच्चे के दोनों हाथों में से एक हाथ से खिलौना लेने पर जब वो रोता है.. ऐसा ही है… पर जब आप इकबाल भाई के फेसबुक पर इनके विचार जानेगे तो पता चलेगा..क्योंकि इनके पिछले ६ माह में फेसबुक पर पोस्ट किये पोस्टों से मैंने जाना कि न तो इनका भारतीय हिंदू समर्थक नेताओं में, न भारतीय न्याय व्यवस्था में (इनके अनुसार भारत में कोर्ट में फैसले हिंदू और मुसलमान देख कर होते हैं जैसे की संजय दत्त को फिल्म पूरी करने के लिए मोहलत पर किसी मुस्लिम मुजरिम को कोई मोहलत नहीं, वन्देमातरम गान इत्यादि इत्यादि, ) शासन व्यवस्था में कोई आस्था नहीं है| इन्हें लगता है की यहाँ सब व्यवस्थाएं मुस्लिम विरोधी हैं| और जो भी मोदी या बीजेपी का समर्थक है वो साम्प्रदायिक है (इसका मतलब क्या है?)| तभी मैंने बार-बार कहा जैसी जनता वैसा मनोरंजन …जैसे कि यहाँ प्रवक्ता पर हिंदू वादियों कि अधिकता देख इक्का दुक्का मुस्लिम सुधार, सपा विरोधी लेख….और फेसबुक पर इनके लोकल मुस्लिम भाइयों कि प्रशंसा बटोरने के लिए हिंदू नेता, और केवल बीजेपी विरोधी लेख ..तो ये केवल प्रसंशा के लिए नहीं तो किसके लिए है?? इनके पास साम्प्रदायिकता की कोई परिभाषा भी नहीं है, जो बीजेपी का समर्थक है वो साम्प्रदायिक?? आर एस एस सिर्फ हिंदू कट्टरता फैलाती है…और हिंदू आतंकवाद को फैला रही है ??….(आपको आर एस एस द्वारा चलाये देश, समाज और संस्कृति के हित में कार्यों का पता ही नहीं तो क्या करें) … मैंने आपके दोनों माध्यमों पर अलग-अलग व दोहरी विचारधारा को रखने को ही रेखांकित किया था आपके लेख की प्रतिक्रिया में जिसको आप हजम नहीं कर पा रहे… और ऐसा लगता है आप खुद कन्फ्यूज्ड हैं कि आप किस विचारधारा का समर्थन करते हैं.|

    मेरा इकबाल भाई से कहना है …आप सपा विरोधी या मुस्लिम-सुधार पर अपने विचार अपने फेसबुक पेज पर डालिए और प्रतिक्रियों की प्रतीक्षा कीजिये … जैसा प्रयोग आपने मेरे फेसबुक पर कहने के बाद अपने लेख ’वाजपेयी उदार और आडवाणी कट्टर क्यों माने जाते हैं?” पर करके किया|

    मैं तो पीर की मजार, गुरुद्वारा और चर्च उसी तरह जाता हूँ जिस तरह मंदिर और सभी का सम्मान करता हूँ. हमारे घर में आज भी कोई मुस्लिम आ कर “मीरा की कढाई” पर फातिया पढता है… और कई मुस्लिम परिवार आज भी दिवाली और ईद पर मिठाई उसी तरह एक दूसरे के घर आदर सम्मान के साथ भिजवाते हैं| “जियो और जीने दो” और एक दूसरे की परंपराओं और संस्कृति का सम्मान करते हुए देश के हित में काम करते रहना चाहिए ये ही सही मायने में सेकुलर है… हर चीज़ को संदेह से देखना, एक हिंदू पक्ष का समर्थन करने और “मैं हिंदू हूँ” कहने को सांप्रदायिकता कहना अनुचित है

    इकबाल भाई, आपसे एक विनम्र अनुरोध है… की अगर आपने अपने फेसबुक के पोस्ट्स डिलीट नहीं किये है.. तो प्रवक्ता के पाठकों और माननीय लेखकों को फ्रेंड्स लिस्ट में एड कर उन्हें भी इन्हें पढ़ने का मौका दें.| इस विषय के अतिरिक्त आपने अन्य लेख में एन्जॉय (अध्ययन नहीं) करता हूँ… हमारे विचारों में मतभेद हो सकता है.. पर गलत बात गलत ही रहेगी …सही बात पर तो हम एक हो ही सकते हैं… वो हैं सुविचार, देश भक्ति और परस्पर सहयोग!!

    समय है उत्तराखंड के विषय में कुछ कर दिखाने का जो की इस विपदा की घडी में उत्तराखंड के वासीयों की मदद कर सके…हमारे समाज सेवी भाई कुछ करें…हमारा अवश्यसंभावी सहयोंग साथ है.!

    भवदीय..
    आर त्यागी

    • Jo kuchh pravkta पर लिखता हूँ उस का सार पहे se फेसबुक पर औमौजूद है. Viroh के लिए विरोध se aapko kuchh bhi haasil nhi hoga और naa hi meri lekhni पर asr pga. Khoob cheekho, chillao और छाती पीटकर आत्म करो, ye आपका अधिकार है.हा हा ha Ha ha ….

      • यहाँ किसी की मौत नहीं हुई.. जो चीखना चिल्लाना और मातम मनाया जा रहा है… लेखनी तो आप ऐसे कह रहे है जैसे कोई प्रेमचंद का उपन्यास लिखा हो ..कलम तो एक KG क्लास का बच्चा भी चलता है… पर उसकी सार्थकता.. उसके विचारों से होती है जिसे कोई समझ नहीं बस जिद होती है…वाही यहाँ है… दो सब्जेक्ट की नोट बुक्स में दो तरह का काम …. और टीचर एक ?

        वैसे अगर आपको किसी तरह की प्रोब्लम नहीं है तो आपने मुझे फेसबुक पर क्यों ब्लाक किया है और आपके वो पोस्ट्स क्यों गायब हो गए…. समझने वाले समझ चुके हैं… आप क्या हैं…और हाओं वैसे आप आपके “अडवाणी और मोदी” वाले लेख पर प्रतिर्कियाओं पर आप मातम क्यों मना रहे हैं?

    • श्री त्यागी,आपने लिखा है”मैं तो पीर की मजार, गुरुद्वारा और चर्च उसी तरह जाता हूँ जिस तरह मंदिर और सभी का सम्मान करता हूँ. हमारे घर में आज भी कोई मुस्लिम आ कर “मीरा की कढाई” पर फातिया पढता है… और कई मुस्लिम परिवार आज भी दिवाली और ईद पर मिठाई उसी तरह एक दूसरे के घर आदर सम्मान के साथ भिजवाते हैं| “जियो और जीने दो” और एक दूसरे की परंपराओं और संस्कृति का सम्मान करते हुए देश के हित में काम करते रहना चाहिए ये ही सही मायने में सेकुलर है”
      त्यागी जी, काश, हर हिंदू और मुसलमान सेक्युलरिजम यानि धर्म निरपेक्षता की इस परिभाषा को आत्मसात कर लेता और उसके अनुसार व्यवहार करता.

      • जी, आर सिंह जी,

        बिलकुल सही कहा आपने….. येही तो मेरा मुद्दा है.. ,

        इकबाल भाई, फेसबुक पर कुछ और (जैसे सभी व्यवस्थाएं हिंदू पक्ष में तथा मुस्लिम विरोधी हैं. इत्यादि इत्यादि, वहां इनके मुस्लिम फ्रेंड्स ज्यादा हैं) कह रहे है… और प्रवक्ता पर कुछ और..!! मतलब वाह-वाही दोनों जगह से लूटी जा रही है.. और ढोंग किया जा रहा है… उल्टा मुझे फेसबुक पर कहा की आप मोदी और बीजेपी के समर्थक है.. और मोदी समर्थक धर्मनिरपेक्ष नहीं है…

        जय श्री राम

  4. AAP aap bebaak hokar likhte rahen – jalne walon kaa dil jalate rhen. aap kaa naam Iqbaal hai aur is iqbaal ko banaye rakhe -dhanyavaad

  5. मान्यताएँ, श्रद्धाएँ, प्रमाण, तर्क इत्यादि अलग अलग इकाइयाँ मानी जाती है।
    (१)मान्यताएँ वैयक्तिक होती है। व्यक्तिको मान्यता के, विषय में “वैयक्तिक स्वतंत्रता” होती है।पर मान्यताएं प्रमाण नहीं मानी जाती।
    (२) श्रद्धाएँ सामूहिक होती है। समूह के सदस्य को यह भी “सामूहिक स्वतंत्रता” ही देती है।कुछ तर्क पूर्ण श्रद्धाएँ सार्वजनिक तर्क का आधार भी होती है।
    (३) प्रमाण —प्रत्यक्ष, तर्काधारित, और ठोस इकाइयों पर मापा तोला जाता है। कुछ आंकडों पर भी निर्भर करता है।
    (४) आप अपना मत भी स्वतंत्र रूपसे रख सकते हैं। पर तर्काधारित प्रमाण दिए बिना कुछ लिख कर फिर कहना कि, प्रशंसा के लिए लिखता नहीं हूँ, यह भी कोई प्रमाण तो नहीं है।
    (५) आप तर्काधारित आलेख लिखिए,फिर देखिए, और अवश्य कुछ पढनेवाले आपकी प्रशंसा भी करेंगे।
    आज इस्लाम का सुधारक भी जाग गया है, कुछ आंदोलन भी चल निकले हैं। बदलते समय की माँग भी है, कि इस पर आप “सौम्यता” से लेखनी चलाइए। इस्लाम के लिए, वैचारिक क्रांति का समय है।
    लगता है, कि, इस्लाम में सुधार आएगा, आ रहा है।
    शेर भी सुनाते रहिए। पर शेर भी, दोनों पक्षों के मिल जाएंगे। वे साहित्यिक मनोरंजन तो कर ही सकते हैं।

  6. मैंने आपके पहलेवाले लेख पर कमेंट किया था थोडा कड़वा था इसलिये हटा दिया गया. क्यों हटा दिया गया आप समझ सकते है और हटाने की मजबूरी भी समझा जा सकता है.

  7. जल में पत्थर फेंकने पर विक्षोभ तो हो गा ही इकबाल साहब, सबक विक्षोभों से लिया जाता है ना की पत्थरों से. आपके लेखों का इन्तजार रहेगा.

  8. तूं न इधर उधर की बात कर यह बता काफिला क्यों लुटा,
    मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है ।।

    • अब पैंसठ वर्षों बाद

      तूं न इधर उधर की बात कर यह बता काफिला क्यों लुटा,
      मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का मलाल है ।।

      लगभग सभी क्षेत्रों में कुशल नेतृत्व के अभाव के कारण भारत की स्थिति इतनी शोचनीय है कि मैं समझता हूँ कि वर्तमान राजनैतिक अराजकता को सार्थक विकल्प देते किसी व्यक्ति विशेष व संस्था पर ऊँगली उठाना केवल अराजकतावादी को कंधा देने समान है| संगठित लोंगों के बीच वाद-विवाद लोक-मत को बढावा देते शासक को राज्य-धर्म निभाने में सहायक है| अनुपम भारतीय संस्कृति व आधुनिक भारतीय सोच केवल “मैं” को महत्व देते हुए सशक्त एक अरब इक्कीस करोड भारतीयों को अकेला किये हुए हैं| ऐसी स्थिति में अव्यवस्थित वाद-विवाद अथवा आपके १७९ लेख शासक को कभी प्रभावित नहीं कर पाएंगे| चाटुकारों में घिरा धूर्त शासक निर्भय देश को लूटने में लगा रहेगा|

      • “इंसान” जी

        मुझे खीज इसी बात पर हो रही है… की क्यों सारी कोशिशें हम ही करते रहे और उसके बाद भी …आरोप और पक्षरोप लगते रहे…यह एक तरफ़ा प्यार है… जिसमे हिंदू अति सहिशुनता के शिकार हो गए हैं और अतीत से भी सबक लेने को तैयार नहीं…ऐसा मेरा विचार होने लगा है |

  9. Aar सिंह जी आपका हार्दिक धन्येवाद. मेरा लिखना a आपकी बात से सार्थक हो गया क्योंकि आप अ महत्वक मेरी नजर में निष्पक्ष होनेऔर मुझ से कई बार कई मुद्दों पर सहमत ना होने के बाद भी हजारों लोगो से zyada hai.

  10. आप लिखते रहें और हम पढ़ते रहें
    हम लिखते रहें और आप पढ़ते रहें
    कभी तो वह सुबह आयेगी
    जब रात की कालिमा
    लालिमा में बदल जायेगी

  11. सच कड़वा होता है, जिसे पचाना आसान नहीं! लेकिन इस डर से कि लोगों को सच पचेगा नहीं, सच को लिखने से डरना या परहेज करना भी कट्टरवादियों को ही बढ़ावा देता है!
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  12. इकबाल जी,यह आपका अपने विचार बेबाक और बेलाग सामने लाने का ढंग ही है,जो मेरे जैसों को आपका प्रशंसक बना देता है.ऐसे बहुत जगह आपसे असहमत होते हुए भी आपके विचारों से आमतौर पर सहमत होना पड़ता है,क्योंकि उसमे सत्य की एक झलक दिखती है. मैं स्वयं इस विचार धारा का पोषक हूँ कि विचारों के आदान प्रदान में जन्म कुंडली का कोई महत्त्व नहीं होता और न समाज के गलती को इसलिए मान लेना कि उससे लोग नाराज हो जायेंगे. रही बात आज के उन लोगों की जो अपने को गलती से किसी वर्ग का सर्वेसर्वा और एकमात्र प्रतिनिधि समझ लेते हैं तो उनसे मेरा यही अनुरोध है कि ऐसे लोग अपने प्रभाव की सीमा को समझे और अपने को किसी वर्ग विशेष का सर्व सम्मत प्रवक्ता न मान बैठे. लोग जब तक दूसरे के अधिकारों में हस्तक्षेप न करे और न व्यक्तिगत गाली पर उतरे तब तक किसी को भी अपनी बात कहने और अपने विचार प्रकट करने में रोक नहीं लगना चाहिए. ऐसे मैं प्रवक्ता प्रवन्धक को शुक्रिया अदा करता हूँ ,कि उन्होंने हर व्यक्ति को ,जो प्रवक्ता से जुडा है, अपने विचार रखने की पूर्ण स्वतंत्रता दे रखी है,

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