व्यंग्य/ अथ नेता उवाच

डॉ. अरुण कुमार दवे

सावधान…..होशियार….. ख़बरदार…..! मैं हूँ रंगा सियार …भ्रष्टाचार का यार….. नेता दुमदार | वक्त पड़ने पर दमदार से दुमदार बन जाता हूँ इसीलिए कभी गुर्राता हूँ तो कभी घिघियाता हूँ | आज वक्त की मार का मारा हूँ ; पहली बार इस कदर हारा हूँ | जनलोकपाल आन्दोलन के दौरान अन्ना और देश की जनता ने मेरी दुम को कुछ ज्यादा ही मरोड़ा है ; मुझे मेरी औकात दिखाई है और मेरा गरूर तोड़ा है | जनता के दबाव में मुझे अनचाहे मुद्दों पर सोचना पड़ा है और खिसियानी बिल्ली बनकर खम्भा नोंचना पड़ा है | अन्ना के संग सुर में सुर मिलाकर जनता बजाती रही आन्दोलन की चंग और मैं बदलता रहा गिरगिट की तरह बार-बार रंग | मेरी सारी अदाएं बदरंग हो गई ; जनता की ताकत एक ७४ वर्षीय बुजुर्ग के संग हो गई | किसे सुनाऊ अपना दुखड़ा ; बेनकाब हो गया मेरा ढोंगी मुखड़ा |

कल तक मैं जनता को फुसलाता था , बहलाता था | नारों का मरहम लगाकर उसके जख्मों को सहलाता था | बेचारी भोलीभाली जनता मेरे झांसे में आती रही है ; मगरमच्छी आंसुओं पर पसीजकर मुझे जिताती रही है | मैं जब जब भी चुनाव की जंग में जीता हूँ तब तब सुख-वैभव के जाम पीता हूँ |

मुझे उपदेश देना खूब भाता है भले ही उन पर अमल करना बिलकुल भी नहीं आता है | मेरी नाकामियों और धूर्तता पर जब कोई सवाल उठाता है तब मेरा खून खौल-खौल जाता है | ऐसे मौके पर मैं बार बार गरिमा के प्रश्न उठाऊंगा , मेरे कारनामों को कोई नंगा करे तो मैं कैसे सह पाऊंगा ? हालांकि यह सच है कि मेरी करतूतों से देश और संसद की गरिमा बार बार लहुलुहान होती है ;| इसीलिए राजघाट पर चिरनिद्रा में सोई बापू की आत्मा फूट-फूटकर रोती है | हंगामों से मुझे बेतहाशा प्यार है | संसद में माइक और कुर्सियां उछालना , एक-दूसरे के गिरेबान और कमीज खींचकर फाड़ना , लात-घूंसे चलाना और चीखना-चिल्लाना मेरा अधिकार है | ऊधम और अव्यवस्था पर थपथपाता हूँ मेज ; बजाता हूँ ताली | शिष्टाचार व्यक्त करता हूँ देकर गाली |

वैसे तो मैं भी शिष्ट और शालीन हूँ ; हाईकमान के चरणों में बिछी हुई कालीन हूँ | आका को रिझाने के लिए चापलूसी के रिकार्ड कायम करता हूँ ; सुबहोशाम आका का हुक्का भरता हूँ | हाईकमान और उनकी पुश्तों के हाथों में है मेरी बाजी, इसीलिए उनकी फालतू बातों पर भी करता हूँ हां जी..हां जी.. हां जी | मेरा मानना है कि कभी न कभी तो मेरे अरमानों की कली खिलेगी ; चापलूसी की पराकाष्ठा पर प्रसन्न हाईकमान से छोटी-मोटी खैरात मिलेगी |मेरा तो बस एक ही आलाप है ; आका मेरे माई-बाप है |

झूठ और फरेब से सनी है मेरी एकएक रग , इसीलिए देशभक्तों को कहता हूँ मैं ठग | अन्ना सरीखे त्यागी और सदाचारी को भ्रष्टाचारी बताता हूँ फिर भी बेशर्मी की हद लांघते हुए लाज और शर्म से गड़ नहीं जाता हूँ | राष्ट्रभक्तों के लिए ओछे शब्दों का प्रयोग मुझे सुहाता है मगर लादेन के लिए इस नापाक जुबान पर ओसामाजी शब्द ही आता है |

वैसे मैं बहुत उदारमना हूँ ; जरूरत पर झुका हूँ ,जरूरत पर तना हूँ | मौका आने पर सांप-नेवले-सी दुश्मनी भी भुला देता हूँ ; गरज पड़े तो गधे को भी गले लगा लेता हूँ | चुनावों में दर-दर पर दंड पेलता हूँ , कुर्सी के खातिर सारे खेल खेलता हूँ | कल बजाता था जिसके लिए ताली , आज देता हूँ उसको गाली : कल जिसे जी भरकर कोसा , आज बनाना पड़ा उसे मौसा | मैं राजनीति में करता हूँ दिखावे की सेवा ; उड़ाता हूँ माल, खाता हूँ मेवा ही मेवा|

मेरा दिल आजकल घबराया हुआ है ; मुझ पर भारी संकट आया हुआ है| भारत की जनता जाग रही है, गफलत को त्याग रही है| देश में पैदा हो रहे है फिर से गाँधी ; उड़ा रही है मेरे सपनों को अन्ना की आंधी | डर लगता है कहीं जनता न उमेठे मेरे कान; ठप्प न पड़ जाय कहीं सियासत की दुकान| काश यह जागरण का शंख बंद हो जाय, देश की जनता फिर सो जाय | अन्ना की आंधी ने मेरे सब सुख-चैन चुरा लिए ; सपने में भी आवाज आती है तेरा क्या होगा कालिए ?

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डॉ. अरुण कुमार दवे
राजस्थान के एक कॉलेज में शिक्षक पद पर कार्यरत | कविता, ग़ज़ल, लघुकथा व व्यंग्य लेखन में रुचि. फक्कड़ाना अंदाज में फक्कड़वाणी लिखकर विषमताओं एवं विद्रूपताओं के कारक तत्वों को खरी-खरी सुनाने का शगल | लेखक के शब्‍दों में- मेरी वाणी अपना धर्म निभाती है, अत्याचारी को औकात दिखाती है, लोकविमुख बेजान शिलाओं में हरकत जोशीली वाणी से मेरी आती है, मैं युग का चारण हूँ अपना धर्म निभाता हूँ, जनमन के भावों को अपने स्वर में गाता हूँ.

3 COMMENTS

  1. बहुत खूब , मजा आ गया | आज के नेताओं की सही स्थिति बयान की है | धन्यवाद |

  2. यह व्यंग्य है या नेताओं के अंतर की आवाज.जब नेता कहता है की “डर लगता है कहीं जनता न उमेठे मेरे कान; ठप्प न पड़ जाय कहीं सियासत की दुकान” तो दिल में यही उभरता है की नेता की बात सच हो जाए.

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