व्यंग्य

व्यंग्य/ हिम्मत, संयम बनाए रखें बस

अशोक गौतम

 

आदरणीय परिधानमंत्री जी को सादर प्रनाम! मुझे न आशा है न विश्‍वास कि इन दिनों आप स्वस्थ और सानंद होंगे। कारण, कुछ दिनों से अपने देस के अखबार छपते बाद में हैं आपके खिलाफ कुछ न कुछ ऐसा वैसा छपा अनपढ़ जनता पढ़ पहले लेती है। ऊपर से विपक्ष को पता नहीं आजकल क्या हो गया है कि आठों पहर चौबीसों घंट चातक की तरह आपके त्याग पत्र की रट लगाए रहता है। कल अपने मुहल्ले में मुहल्ले का एक विपक्ष का स्वयंभू नेता पगलाया सा घूम रहा था। मैंने पूछा,’ क्यों नेता जी! ऐसी क्या खुशी मिल गई जो…. क्या आपकी नेतागीरी से तंग हो मायके गई बीवी लौट आई?’ तो वह बौराया सो बोला, ‘नहीं, मैंने सपने में देखा कि वे त्याग पत्र दे गए,’ कई बार तो ये सब देख कर लगता है कि इनको इन पांच शब्दों से अधिक कुछ और बोलना आता ही नहीं।

हे विपक्षियो! ये किस कानून की किताब में लिखा है कि करे कोई और भरे कोई! इस देस की तो यह रीत रही है कि यहां करने के बाद भी लोग भरते नहीं। शान से सीना चौड़ा कर दिन में चार चार बार सफेद कुरता पाजामा बदलते हैं।

नलके में पानी नहीं आया तो विपक्ष की मांग आप पद से त्याग पत्र दें। स्ट्रीट लाइट के खंभे में बिजली नहीं आई तो आप त्याग पत्र दें। गली की सड़क खराब तो आप त्याग पत्र दें। पता नहीं ये विपक्ष ये क्यों नहीं समझता कि आपको बस एक काम क्या त्याग पत्र देने का ही है! अरे आप तो इस देस के इकलौते परिधान मंत्री जी हैं। दो चार होते तो विपक्ष की त्याग पत्र की मांग को हम जायज मान लेते।

अब लो जी, फिर विपक्ष चिल्ला रहा है कि विकिलीक्स के खुलासे के बाद आप नैतिक आधार पर इस्तीफा दे ही डालें और उनका मुंह बंद कर दें।

हद है साहब! इस लोक में बिना खरीद के किसका गुजारा हुआ है? विपक्ष में हिम्मत हो तो किसी एक का नाम बता दे जो अपने बूते पर बिना कुछ खरीदे जी रहा हो। कल मैंने बाजार में अपने को बचाए रखने के लिए भगवान तक को भक्तों को खरीदते देखा। साहब! इसमें बुरा है भी क्या! बाजार में वही तो कुछ खरीद सकता है जिसके पास पैसा हो। मेरे जैसा नंगा क्या खरीदे, क्या सरकार बनाए! यहां तो दो जून की रोटी नहीं बन रही।

देस की जनता के पास अपना है ही क्या! आटा दाल को लात मार बेईमानी से लेकर लाज शरम तो सभी कुछ सीना चौड़ा कर खरीद खा रहे हैं। किसलिए? कि देस की इज्जत बनी रहे। इस देस में सभी कुछ तो खरीद कर ही चल रहा है! प्यार भी खरीदा हुआ तो यार भी खरीदा हुआ! रही बात खरीदने की हिम्मत की! तो जिसकी मनी पावर जितनी अधिक सो उतना ही माल तो खरीदेगा न!

रही बात विकिलीक्स के खुलासे की! ये विकिलीक्स मुझे अपने मुहल्ले के विक्की से अधिक कुछ नहीं लगता । उसके पास अपने मुहल्ले के विक्की की तरह कोई और काम धाम तो है नहीं, बस! गप्पें मार कर मुहल्ले वालों का मनोरंजन करता रहता है।

आपको परेषान देख आपका परम हितैशी होने के चलते मैंने आपकी कुंडली बताई थी अपने मुहल्ले के लल्ले ज्योतिशी से। बोल रहा था आपकी कुंडली में कलमाड़ी और राजा एक साथ बैठे हैं। इनके साथ ही साथ अगल बगल दूसरे छोटे छोटे क्रूर उल्कापाती अभी आपको और परेषान करवाएंगे। पर आपकी राजनीतिक कुंडली के केंद्र में माई निवास होने से विपक्ष आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। फिर भी अगर आप मेरे मुहल्ले के ज्योतिशी के धंधे का ख्याल रखते हुए हर शनिवार को चाय पीने से पहले बिना टीवी का मुंह देखे काले कौवों को पानी पिलाएं तो विपक्ष की आपके त्याग पत्र की प्यास षांत हो। आपके पास समय न हो तो मैं आपकी ओर से अपने मुहल्ले के कौवों को पानी पिला दिया करूं। कौवे तो सरकार एक से होते हैं क्या दिल्ली के तो क्या मेरे मुहल्ले के।

वह यह भी की कह रहा था कि संकट की इन घड़ियों में अगर आप हिम्मत और संयम बना कर रखेंगे तो आप कमाल कर सकते हैं। आपकी कुंडली को देख कर उसने यह भी बताया कि वैसे आपमें हिम्मत और संयम की कोई कमी नहीं है। शेष जाको राखे माइयां, हटा सके न कोय! बाल न बांका कर सके, सब जग विपक्षी होय!!