व्यंग्य/ हम जिंदा हैं मेरे भाई!

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सौ चूहे खाकर शान से पास बैठी बिल्ली ने नजरें मटकाते कहा, ‘हज करने जा रही हूं। हैप्पी जरनी नहीं कहोगे?’ तो मैंने मन ही मन मुसकाते कहा, ‘एक तो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने नहीं जा सकती और जाएगी तो हज में नहीं पहुंच पाएगी। कहीं और ही पहुंचेगी।’

‘क्यों?’

‘उसका पेट भारी नहीं हो जाएगा?’

‘जब देश में किसीका नहीं हो रहा तो मेरा क्यों कर होगा? सभी तो मजे से कुंभ नहाने जा रहे हैं,’ कि तभी बीच में पत्नी का फोन आ गया। सारा गुड़ गोबर हो गया। सच कहूं! एक उम्र के बाद पत्नी का फोन सुनना बड़ा भार लगता है। पत्नी चाहे सती सावित्री ही क्यों न हो। सो पत्नी बार बार फोन किए जा रही थी और मैं उसे हर बार अनसुना कर रहा था। मुझे पत्नी की ओर से यों विरक्त होते देख बिल्ली टेढ़ी टेढ़ी अपने रास्ते हो ली। पत्नी का फोन अटेंड करूं कि न, अभी इसी उधेड़बुन में था कि विपक्षी जी आ धमके। परेशान से। खुद से ही बके जा रहे थे,’ या रब्ब, कोई हादसा दे दे। कितने महीने हो गए मुहल्ले में कोई हादसा नहीं हुआ।’ सच्ची को,बिन हादसे के विपक्ष की तो राजनीति खटाई में पड़ जाती है। कहीं कोई हादसा न हो तो ऐ खुदा लगता है जैसे विपक्ष ही चुक गया हो। सत्ता में रहने वालों की तो पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में ही रहता है जब तक वे सत्ता में रहते हैं। काम चाहे विकास का हो चाहे विनाश का। भूंकप आया तो चांदी, बाढ़ आई तो चांदी। तूफान आया तो वारे न्यारे, सूखा पड़ा तो पौबारह। पर विपक्ष के पास तो चीखने -चिल्लाने के लिए ले देकर हादसे ही तो होते हैं। सत्ता में रहने वाले दिनरात पेट पर हाथ फेरते हुए मदमाते रहते हैं तो विपक्ष बेचारा चीख चिल्ला कर बनवास के दिन काटता रहता है।

इधर मुहल्ले में कोई हादसा न होने की वजह से वे सूख कर कांटा हुए जा रहे थे। गले में चर्बी जम गई थी। कपड़े ऐसे जैसे धूल में पलटियां खा कर आ रहे हों। मुझे देखते ही उनका रोना निकल आया। एक तो सत्ता से अलग होने का गम,ऊपर से मुहल्ले में कोई हादसा नहीं। बंदा एक साथ दो- दो गम झेले तो कैसे? आते ही ईष्वर पर बरस पड़े, ‘तुम कहते हो कि ईष्वर है?’

‘हां तो!’

‘ईश्‍वर दुख में सभी का साथ देता है?’

‘हां तो!’

‘तो कहां है तुम्हारा ईश्‍वर? इतने दिनों से मुहल्ले में कोई हादसा नहीं हो रहा। अगर ऐसे ही चलता रहा न तो लगता है अब और नहीं जी पाऊंगा।’ कहते हुए उन्होंने मेरी जेब से रूमाल निकाला और अपने आंसूं पोंछने लगे।’

‘कमाल है गुरू! हम मर गए भगवान से गुजारिश करते कि खुदा के लिए हमारे मुहल्ले को हादसों से दूर रखो। अगर गलती से उसने हमारी सुन ही ली तो आपके पेट में क्यों मरोड आने लगे? जनता के हित में सोचना सरकार ही काम नहीं होता, विपक्ष की भी नैतिक जिम्मेदारी होती है।’

‘तो अपने हित में सोचने का मौका तो दो! बिन हादसे के तुम्हारे हित में सोचूं तो कैसे?’

‘मतलब??’

‘कहीं कोई हादसा होगा तभी तो विपक्ष सक्रिय होगा न!’

‘हादसा चाहे कैसा भी हो, चलेगा?’

‘हां! बिन हादसे के मैं जनता के हित में चीखूं कैसे? या मेरे रब्ब! कोई हादसा दे दे इस मुहल्ले को या मुझे उठा ले।’ कह उन्होंने दोंनों हाथ आसमान में रहने वाले रब्ब की ओर किए तो मैं डरा कि अगर सच्ची को रब्ब ने बंदे की सुन ली और इसे उठा लिया तो हमने तो खो दिया न एक सच्चा लोकतांत्रिक विपक्षी। सो मैंने उन्हें बताया, ‘मुहल्ले में हादसा हुआ है।’

‘कब??? कैसे???’ वे बल्लियां उछलने लगे।

‘चार दिन हो गए। कुत्ते कुतिया को लेकर आपस में भिड़ पडे।’

‘मतलब दंगा! प्रेमायिक दंगा!! हीर रांझा के देश में प्रेम पर एक और प्रहार? मुहल्ले में प्रेमायिक दंगा हो गया और प्रशासन कुर्सी पर पड़ा पड़ा ऊंघता रहा!!जो सरकार एक कुत्ते की जान माल की रक्षा नहीं कर पाई वह देश की जनता की रक्षा क्या खाक कर पाएगी? खुल गई न सरकार की मुस्तैदी की पोल!! हद है यार! मुझे बताया नहीं। अब देखना विपक्ष की भूमिका। सरकार के दांत खट्टे न करा दिए तो मेरा नाम भी…’कह उन्होंने अपने खद्दर के कुरते में बट्ट देना षुरू किया, ‘क्या हो गया खुदा कि दया से हमारे मुहल्ले में…….आगे बोल? आषिक की हत्या हो गयी न?’

‘हुड़दंग में कुत्ता मर गया। कमेटी वाले भी नहीं उठाने आ रहे। कह रहे हैं पहले हादसों में एकाएक मरने वालों के महीनों से पेंडिंग मृत्यु प्रमाण- पत्र जारी हो जाएं तो कुत्ते की बारी आए। उनको बिना प्रमाण -पत्र के यमराज उन्हें यमलोक से बाहर धकेल रहे हैं।’

‘तो क्या हो गया! इस देश की जनता को तो धक्के खाने की आदत है। अब देखना विपक्ष की भूमिका।’

और दूसरे दिन अखबार में मरे हुए कुत्ते के साथ उनका फोटो। अखबार में विपक्षी जी ने सरकार को खूब आड़े हाथों लिया था। उन्होंने कहा था कि कुत्ते की हत्या, हत्या नहीं, सरकार के चाक चौबंदपने की हत्या है। दु:ख की बात है कि सरकार सौ सौ हाथों से बटोर रही है और देश- समाज के प्रति अनादिकाल से वफादार रहने वाले आज प्रेम कर मर रहे हैं। यह कुत्ते की हत्या नहीं सरकारी तंत्र की हत्या हैं। देश में प्रेम की हत्या है। यह व्यवस्था की हत्या है। यह सरकार के खोखले दावों की हत्या है। जो सरकार कुत्तों के प्रेम की हिफाजत नहीं कर सकती वह जनता की क्या करेगी? ऐसी सरकार को बने रहने का कोई हक नहीं। हम कुत्ते की हत्या की न्यायिक जांच की मांग करते हैं। उससे भी हम संतुष्‍ट नहीं हुए तो सीबीआई जांच की मांग करेंगे। विपक्ष को सरकार मरा हुआ न समझे। ‘दूसरी ओर कुत्ते की आत्मा बराबर विपक्षी जी के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ती रही, हे परमादरणीय विपक्षी जी! मेरी मौत की न्यायिक जांच की मांग मत करिए। मुझे कुत्ता योनि से बड़ी मुष्किल से मुक्ति मिली, यही क्या कम है? अब तो यहां कुत्तों का टुकड़ा भी संभ्रांत चट कर जाने लगे हैं।’

‘चल परे हट! मुक्ति तो अब तब मिलेगी जब विपक्ष चाहेगा। कल से विपक्ष इस हादसे को लेकर संसद का घेराव करेगा। विपक्ष तेरी हत्या के हर पल का हिसाब सरकार से लेकर रहेगा। सरकार को या तो तेरी हत्या पर ष्वेतपत्र जारी करना होगा या त्याग पत्र देना होगा….. हे कुत्ते! तेरी हत्या पर सरकार को नचा न दिया तो मैं भी सशक्त विपक्ष नहीं। जब तक तुझे न्याय न दिलाया तब तक विपक्ष चैन से नहीं बैठेगा। वह इंसाफ के लिए सरकार की ईंट से ईंट बजा देगा। इस देश में विपक्ष अभी लाचार नहीं हुआ है। अभी वह जिंदा है मेरे भाई! तुझे न्याय जरूर मिलेगा।’

-अशोक गौतम

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