मुलायम को सराहौं या सराहौं अमर सिंह को

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अमर सिंह की मीडिया के लिए क्या अहमियत है यह देखना हो तो 6 जनवरी,2010 की शाम के खबरिया चैनलों का स्वर देखें। वहां सिर्फ अमर सिंह थे, उनकी लीलाएं थीं और उनकी वाचालताओं के स्वर थे। अमर सिंह की भारतीय राजनीति में महत्पूर्ण उपस्थिति का इससे पता चलता है। वे दिल्ली के राजनीतिक गलियारों का एक अपरिहार्य नाम हो गए हैं। यह ऐसा ही है कि आप उन्हें चाहें, न चाहें पर नजरंदाज नहीं कर सकते। वे सही मायने में राष्ट्रीय राजनीति में समाजवादी पार्टी का चेहरा बन चुके है। अमर सिंह टीवी मीडिया के प्रिय हैं क्योंकि टीवी के लिए पूरा मसाला उनके पास है। वे साफ बोलने, शेरो-शायरी मिश्रित टिप्पणियों और सिनेमा व बिजनेस जगत के सघन रिश्तों के साथ होते हैं। जाहिर तौर पर उनके पास हर विषय पर न सिर्फ बोलने के लिए होता है बल्कि विवादित मामलों पर भी अमर सिंह टिप्पणी से नहीं बचते। मीडिया और अमर सिंह दोनों के रिश्ते इसी बेहतर बुनियाद पर टिके हैं।

मुलायम सिंह की पार्टी का दिल्ली में वे एकमात्र चेहरा हैं। क्योंकि चाहे-अनचाहे मुलायम सिंह ने बड़ी जिम्मेदारियां देकर उन्हें महत्वपूर्ण तो बना ही दिया है। मुलायम सिहं की आत्मा उप्र में बसती है। वे केंद्र में रक्षामंत्री रहने के बावजूद उप्र की राजनीति में ही अपनी मुक्ति ढूंढते हैं। लगातार सांसद रहने के बावजूद दिल्ली उन्हें कभी रास नहीं आयी। अब जबकि मुलायम सिंह यादव का लगभग पूरा कुनबा ही राजनीति में उतर चुका है तो भी अमर सिंह अकेले ऐसे नेता हैं जो दल में अपनी अहमियत बनाए हुए थे। वे ही मुलायम सिंह के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और मीडिया के संपर्कों के असली सूत्रधार बन हुए थे।

मुलायम सिंह खांटी राजनेता हैं, जमीन की राजनीति ने उन्हें उप्र जैसे विशाल राज्य में न सिर्फ लोकप्रिय बनाया वरन वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक भी पहुंचे। इसका एक बड़ा कारण यह था कि मुलायम सिंह रिश्तों को सींचने और समय देने वाले नेता थे। समाजवादी धारा से जुड़े लोग इसीलिए चौधरी चरण सिहं की मृत्यु के बाद पूरी तरह मुलायम के साथ आए। जनेश्वर मिश्र, कपिलदेव सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, जयशंकर पाण्डेय, बृजभूषण तिवारी, रधु ठाकुऱ, राज बब्बर, मधुकर दीधे कहीं न कहीं मुलायम सिंह, केसी त्यागी, सत्यप्रकाश मालवीय, आजम खांन जैसे नेता मुलायम सिहं में बड़ी संभावनाएं देखते रहे और साथ चले। आज ज्यादातर समाजवादी साथी मुलायम का साथ छोड़ चुके हैं। जिनमें राज बब्बर, रधु ठाकुर, बेनी वर्मा, आजम खान का नाम उल्लेखनीय है। अमर सिहं ने मुलायम की राजनीति की कैमेस्ट्री ही बदल दी। यह आंतरिक तौर पर होता तो भी चलता पर सारा कुछ इतना दृश्यमान था कि समाजवादी आस्था से जुड़े कार्यकर्ता बेहद कातर दिखने लगे थे। गैरकांग्रेसवाद के आधार पर अपना एक मजबूत आधार बनाने वाले समाजवादी नेता जब परमाणु करार मुद्दे पर सारी हदें तोड़कर कांग्रेस सरकार को बचाने के लिए सौदे करते दिखे तो इसे सैद्धांतिक जामा पहनाना कठिन हो गया। मुलायम सिंह इसे अपनी बड़ी भूल मानने भी लगे हैं। आज हालात यह हैं अपनी विश्वसनीयता गंवाकर भी कांग्रेस की सरकार में सपा को जगह नहीं मिली। रही सही कसर राजबब्बर ने मुलायम सिहं यादव की बहू को हराकर पूरी कर दी। फिरोजाबाद के इस उपचुनाव की हार ने सही मायने में सपा का आत्मविश्वास हिलाकर रख दिया। जाहिर तौर पर सिर्फ जनसंपर्क ही नहीं पार्टी के सारे बड़े फैसलों में अमर सिंह खासे प्रभावी हो चले थे। इसके चलते मुलायम सिंह पर संकट बढ़ते गए। उनकी राजनीति का अपना तेवर रहा है। संधर्ष की राजनीति ने सही मायने में मुलायम का व्यक्तित्व गढ़ा है। सपा आज पूरी तरह एक कारपोरेट चेहरे के साथ जनता में जा रही है। मुलायम का जनाधार सही मायने में उप्र के पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों में ही रहा है। नई कारपोरेट छवि और सितारों के बीच मुलायम की मौजूदगी से जो छवि बनती उससे सपा के कार्यकर्ताओं का मोहभंग हो रहा है। जिसके परिणाम चुनावों में भी देखने को मिले। अभी हाल में उप्र में हुए 12 विधानसभा सीटों के उपचुनावों में भी समाजवादी पार्टी का खाता भी नहीं खुला। जाहिर तौर पर पार्टी के भीतर इसे लेकर खासा असंतोष है। क्योंकि दल के लगभग सभी फैसलों में अमर सिंह ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं सो उनपर ठीकरा फूटना बहुत स्वाभाविक है। बताया जाता है मुलायम के बेटे अखिलेश यादव और भाई रामगोपाल यादव अमर की शैली से नाखुश हैं और चुनावों में हार, कांग्रेस को समर्थन, कल्याण सिंह को समर्थन जैसे फैसलों का ठीकरा अमर पर ही फोड़ा जा रहा है। बावजूद इसके मुलायम सिंह, अमर सिंह को आसानी से छोड़ देगें यह कहना कठिन है। अमर सिंह अपनी कुछ बहुज्ञात कमियों के बावजूद सपा के लिए बेहद उपयोगी राजनेता हैं। दिल्ली में उनकी सक्रियता और संपर्कों की जरूरत आज भी मुलायम सिंह यादव के लिए जरूरी है। देखना है कि अमर सिंह कब अपनी सेहत के साथ पार्टी की सेहत को सुधारने के लिए मैदान में उतरते हैं। इसके साथ ही कुछ दिन अमर सिंह के बिना सपा को देखना भी रोचक होगा।

-संजय द्विवेदी

3 COMMENTS

  1. किसी भी दल को चलाने के लिए धन और सम्पर्क की जरुरत पड़ती है, और अगर सम्पर्क कारपोरेट सेक्टर के साथ बालिवुड मे भी हो तो बात ही क्या है। अमर सिंह के पास ये दोनो चीज है। सपा को राष्ट्रीय पार्टी बानने में उनकी बड़ी भूमिका रही है, इसके साथ ही वह मुलायम के काफी करीब रहे हैं। इन्ही कारणों से मुलायम तमाम विवादों के बाद भी उनको साथ रखना चाहते हैं, लेकिन बात अब उनके परिवारिक सदस्यों के साथ अमर सिंह के तालमेल की है। अब देखना यह है कि मुलायम कौन सा रुख अपनाते हैं
    और क्या अमर सिंह अपने पुराने घर यानि कांग्रेस में जाते हैं या वाकई बिमारी के बाद अराम करने के मूड में हैं

  2. na jaane ku mai amar singh ko neta hi nai manta…wo mmujhe sirf aur sirf smajwadi party k khzanchi bhar hi lage…….shayad media me bane rahna RAKHI SAWANT ne AMAR SINGH se hi sikha ho………..

  3. शायद संजय जी ने भूषन के सवैये से शिर्षंकित किया है इस इस आलेख को…लोकतंत्र के विभीषणों के लिए यह अच्छी बात नहीं…वैसे काफी जानकारी एवं तथ्यपरक सुलेख… त्वरित प्रतिक्रिया में संजय जी का जबाब नहीं. और बात जब अपने जन्म भूमि की हो तब तो माशा-अल्लाह….! पता नहीं लोकतंत्र को ऐसे भी परिभाषित किया जा सकता है क्या कि ऐसा तंत्र जिसमें अमर और मुलायम, मायावती जैसे लोगों के लिए जगह हो…इसको लोकतंत्र कहे तो फिर गुंडा-मवाली तंत्र किसको कहें….बस्ती को बस्ती कहोऊ तो काको कहोऊ उजाड़?

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