ये नृशंस हत्याएं रोको : डॉ. प्रवीण तोगड़िया

जब हमारा देश और विश्व आर्थिक-सामाजिक प्रगति की नई दिशाएं खोज रहे हैं, तब हमारे ही देश में हमारी ही भारत सरकार के हाथों अपने ही देशवासियों की महाभयंकर हत्याओं का गंदा षडयंत्र रचा गया है। अनुसूचित जाति (एस.सी), ओबीसी, वनवासी सहित हिन्दुओं में अन्य गुणवान-इन सबकी हत्याओं का भीषण षडयंत्र रंगनाथ मिश्रा आयोग के माध्यम से भारत सरकार ने, मुख्यत: सोनिया गांधी ने रचा है।

पिछले कई दशकों से क्रिश्चियन यह प्रयास लगातार कर रहे थे कि धर्मांरित होकर क्रिश्चियन बने अनुसूचित जाति के लोग, ओबीसी और वनवासी इन सबको नीचा दिखाकर, हिन्दू धर्म के अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी इनकी जेबें काटकर नौकरियां छीनकर, चर्च की गर्हित कार्ययोजना को भारत में अमली जामा पहनाएं।

ब्रिटिश सरकार से लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री-सोनिया जी के पति-स्व. राजीव गांधी तक सबने इस षडयंत्र को सम्पूर्णत: नकारा। 1930 में पहली गोलमेज परिषद में ब्रिटिशों ने यह मांग टुकराई। फिर क्रिश्चियन प्रिवी काउंसिल के पास अपील में गये। उन्होंने भी यह गन्दी मांग ठुकराई। पुनश्च स्वतंत्र भारत में पं. जवाहरलाल जी के पास यही मांग लेकर क्रिश्चियन और मुस्लिम दोनों गए- नेहरू जी ने भी 1956 में यह मांग नकारी। 1980 में ये भारतीय समाज के हत्यारे इन्दिरागांधी के पास वही मांग दोहराने गए। उन्होंने तो इस मामले में कुछ भी सुनने तक से इनकार कर दिया। 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के पास अपनी मांग लेकर ये लोग गए कि हमारे धर्म में हिन्दू धर्म से आने वाले अनूसूचित, ओबीसी और वनवासी से आने वाले इनको शिक्षा, नौकरी, सेना, पुलिस, कर्जा, कम्पनियों में नौकरी-इन सबमें आरक्षण मिले। स्व. राजीव जी ने भी यह मांग सिरे से खारिज कर दिया।

अंग्रेजों के समय से राजीवजी तक हमारे देश के अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी इनके मुंह का निवाला और हाथ की नौकरी और सर का छप्पर छीनने का चर्च का और मस्जिदों का यह प्रयास कई और गलतियां करने वाले शासनकर्ताओं ने भी सफल नहीं होने दिया था। क्योंकि उन्हें इसके महाभयंकर परिणामों का पता था।

अब जो अपनी सासूमाँ इन्दिरा जी ने नकारा, जो अपने पतिदेव राजीव ने नकारा, वही बहुत ही ठसक से करने जा रही हैं श्रीमती सोनिया जी गांधी। धर्म के नाम पर देश बांटने का आरोप यही सोनिया जी हम सबपर जोर-जोर से गलत हिन्दी में आजतक लगाती रही हैं, आज यही सोनिया मायनो-गांधी हमारे देश को धर्म और जाति दोनों के नाम पर एक ही वार में ऐसे तोड़ने जा रही हैं जिससे अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी सहित हिन्दुओं के अन्य गुणवान-इनकी जीवन यात्रा ही खत्म हो जाय, दूसरा कोई चारा उनके पास रहेगा ही नहीं! यह धोखाधड़ी ”महत्वाकांक्षी” सोनिया क्यों कर रही है?

क्या सासूमाँ व पति के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को अब वह बाहरी स्वरूप दे रही है? नहीं? एक ही कारण है – ऐसा सोनिया मायनो गांधी केवल चर्च के इशारे पर और मुसलमान वोटों को पाने लिए कर रही है।

रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट, यह आयोग गठित करना, पहले मीडिया और बाद मे संसद में रिपोर्ट के अंश प्रस्तुत करना, यहां तक ही यह षडयंत्र सीमित नहीं है। इनके दुष्परिणाम समझने के लिए हम यह समझ लें कि (1) हमारे देश में मोटामोटी अनुसूचित 7 प्रतिशत, वनवासी 13 प्रतिशत, ओबीसी 65 प्रतिशत (2) भारत के संविधान में मजहब आधारित आरक्षण की मनाही की हुई है। (3) भारत के संविधान में 1950 में और बाद में अनुसूचित, वनवासी, ओबीसी को आरक्षण इसलिए – और यह कहकर दिये थे कि हिन्दू समाज के अन्तर्गत जाति व्यवस्था और कुछ समाजों में सामाजिक-आर्थिक कमजोरी है। इसलिए जो धर्मान्तरण करके क्रिश्चयन और मुसलमान बने। यह लागू हो ही नहीं सकता है। (4) हमारे संविधान में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नामंजूर किया गया है।

अब इतने सारे नियम, संविधान सबको ताक पे रखकर देश को तोड़ डालने का यह घिनौना षड्यत्र हो रहा है तो आज की परिस्थितियां भी देखते हैं! जब वनवासी क्रिश्चियन होते हैं तब उन्हें कहां से आरक्षण मिलता है। ये क्रिश्चियन वनवासियों का 19 प्रतिशत हैं। लेकिन हिन्दू वनवासियों को रखा गया आरक्षण 80 फीसदी यह क्रिश्चियन खा बैठते हैं और हिन्दू वनवासी वैसे ही भूखे, बेरोजगार और अशिक्षित रह जाते हैं।

इतना ही प्यार सोनिया को हमारे देश के अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी इसके प्रति है तो उन्होंने इनके अपने आरक्षण में बढ़ोतरी क्यों नहीं की? इसमें रंगनाथ मिश्र के ‘धर्मान्तरित’ आरक्षण की जरूरत सोनिया को क्यों पड़ी? देश के प्रति प्यार जताने में। क्रिश्चियनों में, मुसलमानों में अनुसूचित ओबीसी वनवासी कहां से आये? हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था में तुम्हें बराबरी का दर्जा नहीं मिलता, इसलिए हमारे धर्म में आये, हम तुम्हें बराबरी का दर्जा देंगे, यह कहकर बरगलाकर, झूठ बोलकर हिन्दू अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी – इनको क्रिश्चियनों और मुसलमानों ने अपने धर्म में खींचा। अब अचानक इन मजहबों में जाति व्यवस्था कहां से पैदा हो गयी? चर्चों में जाने वाले क्रिश्चियन अन्य सब देशों में कम हुए। संख्या बढ़ाने का आदेश चर्च से मिला है-वह पूरा करने के लिए क्या भारत के अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी-इनको भूखा मार डालोगे?

कहां से दोगे यह ज्यादा आरक्षण?

सीधी बात आज अनुसूचित, ओबीसी और वनवासियों को हिन्दू धर्म में रहकर जो आरक्षण मिल रहा है। वही ये खा जायेंगे, यानी कि हिन्दुओं-तुम अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी हो या हिन्दू गुणवान हो-तुम्हें जीने का, खाने का,नौकरी का अब अधिकार नहीं, तुम केवल मरो। इस प्रस्तावित आरक्षण का क्या इसके अलावा और कोई मतलब है।

इस षडयंत्र का एक और काला या हरा चेहरा देखिए-रंगनाथ मिश्र आयोग कहता है कि वनवासियों में कुछ समूह ऐसे भी है जो वनवासी न होते हुए भी वनवासियों के क्षेत्र में लम्बे समय से रहते हैं। वे समूह भी वनवासी आरक्षण के लिए पात्र माने जायेंगे। असम में कारबी आंगलांग, बोडो इनकी निर्मम हत्याएं कर उनको अपनी जमीनों से भगाकर वहां बांगलादेशी मुसलमान कब्जा किये हुए हैं, उन्हें यह आरक्षण क्यों मिले? तमिलनाडु की पहाड़ियों में, उनके जंगलों में, पाण्डिचेरी के पास, अण्डमान के सागर के पास, जंगलों में रहने वाले, उड़ीसा के जंगलों में बसने वाले वनवासियों की जमीन हड़पकर, चर्च का क्रॉस वहां ठोंककर आये क्रिश्चियनों को यह आरक्षण क्यों मिले? इनपर केवल स्थानीय क्षेत्र के वनवासियों का ही अधिकार है। इस आरक्षण का उल्लेख रंगनाथ मिश्र आयोग रिपोर्ट में करने के पहले इस सरकार ने जंगल अधिग्रहण कानून लागू किया, हिन्दू वनवासियों को जंगलों से हटाया, अपने क्रिश्चियन और मुसलमान वोटरों को वहां बैठाया और अब उनको न केवल यह आरक्षण बल्कि जमीन क्षेत्र भी देने जा रहे हैं।

इसके अलावा मुसलमानों को 10 फीसदी और अन्य अल्पसंख्यकों को 5 फीसदी आरक्षण देने जा रहे है। कहां से देंगे?

-संविधान की 50 फीसदी सीमा भी लांघने के लिए संविधान में फेरबदल करने का इरादा ये रखते हैं।

– इन्होंने देश के टुकड़े मजहब के आधार पर 1947 में कर ही दिये। उस समय भी जिन्ना और चर्च साथ-साथ मिलकर देश तोड़ने में लगे थे। इसी कांग्रेस ने यह कुकर्म किया। अब 2009 पूरा होने को आया, 2010 में भी देश को हजारों हिस्सों में धर्म और जाति में बांटकर हिन्दू अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी सहित अन्य गुणवानों की जेबें काटकर, उनकी थालियों में से निवाला छीनकर, उनकी जमीनें हड़पकर उन्हें मरवाने का यह महाभयंकर षडयंत्र है।

– मुसलमान-क्रिश्चियनों में जो अनुसूचित, ओबीसी और वनवासी गये, क्या उनके प्रति ये सम्मानजनक व्यवहार करते हैं? केरल में बराबरी के लिए दलित और वनवासी चर्च के साथ झगड़ रहे हैं। क्या इनके पादरी कर्ल्जी अनुसूचित हैं? क्या वेटिकन का पोप कभी भारत से अनुसूचित होते हुए क्रिश्चियन बने व्यक्ति को बनाया ? इसलिए अगर ये कहते हैं कि रंगनाथ मिश्र आयोग के कारण मुसलमान और क्रिश्चियन बने पिछडे वर्गों को सम्मान और समान हक मिलेगा तो वह हिन्दू अनुसूचित, ओबीसी,वनवासी इनका हक छीनकर मिलेगी! इनका खर्चा भारत क्यों उठाए? वेटिकन दे या मक्का वाले दें, भारतवासी क्यों दें?

विश्व भर में क्रिश्चियन और मुसलमानों की संख्या बढ़ाने का और ऊपर से उनको खाना-पीना, कपड़ा, नौकरी, छोकरी, कर्जा, घर ये सब देने का जिम्मा हिन्दुओं का, हिन्दू अनुसूचित ओबीसी और वनवासियों का क्यों? सोनिया मायनो अपने रोम के चर्च से ये सब करवायें। जो मजहब धर्मान्तरितों के पूर्वजों को नहीं मानते, वे मजहब उनकी समाज व्यवस्था को लूटने के लिए अब ‘जाति व्यवस्था’ भी मानने लगे क्या?

हमारे देश के हिन्दू अनुसूचित, ओबीसी, वनवासी और हिन्दू गुणवानों का थोड़ा भी अधिकार छीनने का कोई भी प्रयास चलने नहीं दिया जाएगा। पाठशालाओं, महाविद्यालयों के भी सब लोग लोकतांत्रिक आन्दोलन में सड़कों पर उतरेंगे। इन्होंने संविधान की तोड़मरोड़ शाहबानो से लेकर आज तक बहुत कर ली। अब बस!

‘Enough is enough’. बम जेहाद, धर्मान्तरण, क्रूशेड, पेट्रो जेहाद, मंहगाई क्रूशेड, जनसंख्या जेहाद सब झेल लिया, लेकिन अब हिन्दू यह आरक्षण जेहाद और आरक्षण क्रूशेड नहीं सहेगा। सोनिया मायनो का चर्च के इशारे पर भारतीयों और उनकी सरकार का मुसलमानों के सामने घुटने टेककर हिन्दुओं को नेस्तनाबूत करना अब भारत नहीं सहेगा।

ऐसे किसी भी प्रयास के विरुद्ध देश के सभी हिन्दुओं को साथ लेकर विहिप पूरी ताकत से देशव्यापी लोकतांत्रिक आन्दोलन छेड़ेगी जिन्हें इसमें सम्मिलित होना हो, सहयोग करना हो, वे आगे आएं-समय बहुत कम है।

सलमान खुर्शीद हमारे देश की प्रगति करने वाले कम्पनियों-सीईओ को वल्गर कहते हैं, अब यह आरक्षण वल्गर नहीं तो और क्या है, इस महाभयंकर षड्यंत्र रोकने के लिए हम सब कटिबध्द हों, यही आज की आवश्यकता है।

-डॉ. प्रवीण तोगड़िया

-वैभवपूर्ण जीवन को भारतमाता के श्रीचरणों की सेवा में समर्पित करने वाले लेखक ख्यातलब्ध कैंसर सर्जन तथा विहिप के अंतरराष्‍ट्रीय महामंत्री हैं।

5 COMMENTS

  1. दर असल अपने आप को सेकुलर कहने वाला मीडिया और उनके आका यानी राजनीतिक दल समेत मिशनरी और मुल्ले यही चाहते हैं कि हिन्दुओं को सेकुलरवाद की अफीम खिलाकर सुला रखो. ताकि वह एक होकर अपने हक़ की बात ना करे. सेकुलर पासवान, मुलायम, लालू, मायावती जहां उत्तर भारत में जातिवादी विषबेल पोस रहे हैं वही सेकुलर शरद पंवार महाराष्ट्र में अपने मराठा महासंघ के जरिए क्षत्रीय मराठो को ब्राह्मणों के खिलाफ भड़का रहा है. तो दूसरी और वह मराठो और ओबीसी को आपस में लड़ा रहा है. कोंग्रेस और एन सी पी द्वारा पाले गए गुंडे राजठाकरे के बारे में सब जानते हैं. उसके जरिये सेकुलर लोग उत्तरभारतीय और मराठी हिन्दुओं में जहर दाल रहे हैं. मध्यप्रदेश में हार चुके सेकुलर दिग्विजय सिंह जैनों को ब्राह्मणों के खिलाफ भड़का रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर कोंग्रेस और कम्युनिस्ट सहित उनके राग दरबारी बुद्दीजीवी, साहित्यकार, पत्रकार हिन्दू समाज की कथित उच्च जातियों के खिलाफ कथित निम्न जातियों को पिछले साठ साल से भड़काकर सत्तासीन होती रही हैं. कोंग्रेस ने दिल्ली में कुछ सिख नेता पाल रखे हैं जो आये दिन सिखों और हिन्दुओं के बीच दूरी पैदा करने में जुटे हुए हैं. तमिलनाडू में सेकुलर नेता करुणानिधी भी आये दिन हिन्दू समाज में उंच-नीच की खाई खोदने में लगे रहते हैं. उड़ीसा में चर्च माओवादियों से मिलकर कथित दलितों और निम्न जातियों को भड़काकर हिन्दू धर्म से अलग करने में लगा है. राजस्थान में भी गहलोत ने गुज्जर-मीना का जातिवादी कार्ड खेला और सत्ता हासिल की. गुजरात में कोंग्रेस प्रायोजित शबनम हाशमी ने अपनी संस्था ‘अनहद’ के माध्यम से वनवासी इलाको में डेरा डाला और वनवासियों को कथित उच्च जातियों के खिलाफ भड़काया. जिसमे उन्हें आंशिक सफलता भी मिली. इसे क्रूर मजाक ही कहा जाएगा कि ये नेता / बुद्धीजीवी (?)/ सामाजिक कार्यकर्ता/मिशनरीज आदि हिन्दू-विभाजन के इस अभियान को ही सेकुलरवाद का नाम देते हैं. इस तरह हिन्दू खुद अपनी कौम का दुश्मन बना हुआ है. आज जरूरत है जातिवाद के खात्मे की और सेकुलर चालो से सावधान रहने की. वरना हिन्दू समाज (चाहे कथित उच्च हो या कथित निम्न) की आनेवाली पीढ़ियों को सर छिपाने के लिए भी जगह नहीं मिलेगी.

  2. ( टिप्पणी एक )–
    कुछ पुराना (शायद २००४ या २००५ का) आंकडा है। करीब २९९ मिलियन डॉलर यहां अमरिकासे (N G O के लिए)– भेजे गए थे। इसका बडा हिस्सा मिशनरीयोंके काममें माना जाता है। अब इतने धनका क्या उपयोग होता होगा? यह अनुमानका विषय हो सकता है। देशको परवश (अ) धर्मांतरणसे जनसंख्या में बदलाव लाकर, लोकतंत्र द्वारा (आ) धनके बलपर संसदोंको खरीद कर (इ) समाचार माध्यमोंको, स्तंभ लेखकोंको, और समाचार पत्रोंको खरीदकर, या भ्रष्ट करते हुए (ई)धनके बलपर राजनीतिको प्रभावित करके (उ) मंदिरोंके परिसरकी भूमि खरीदकर (ऊ) एकबार एकहि संतके पीछे पडकर, बदनाम करते हुए —इत्यादि इत्यादि, प्रकारोंसे देशको दुर्बल बनानेका सतत प्रयास चल रहा है। और कुछ लोग इन प्रलोभनोंसे खरीदेभी जाते हैं।

    इस तकनिक के विषय में “Politics Among Nations” कहती है, ३ प्रकारसे साम्राज्यवाद अपना प्रभाव जमाता है (१) सैन्यबलसे–युद्धसे {जो आजकल कुछ (विलुप्त है) और असभ्य समझा जाता है}। (२) सांस्कृतिक पश्चिमी प्रभाव बढाकर (३) धनबल द्वारा धर्मांतरणसे। उदा. Rev. Pat Robertson को एक Native को ( Robertson उसे छिपानेके लिए, हिंदू नहीं कहता) धर्मांतरित करनेके लिए कुछ ८००० डॉलर लगते हैं। यह Robertson नेहि, lectureमें उसके अनुयायीयोंको बताया हुआ(मुझे ज्यादा लगा) आंकडा है।लेकिन उसे तो ज्यादासे ज्यादा चंदा इकठ्ठा करना था। और पापीयोंके उद्धारके उदात्त(?) हेतुसे, और पुण्य कमाकर स्वर्ग जानेके लिए, लोग चंदा देते हैं। सोचिए इसका बडा हिस्सा किसीकी जेबमेहि जाता है। और कुछ राष्ट्रीय संस्थाए और संत इसका विरोध करते हैं, तो उनको कानूनके सकंजेमें, जैसे, लक्ष्मणानंद सरस्वती, कांची कामकोटि शंकराचार्य, प्रकाशानंद सरस्वती, बाबा रामदेव, महेश योगी; इत्यादिको फंसाया गया, वैसे फंसाया जाता है। जनतंत्रके सहारेहि, जनतंत्र(?) को समाप्त करनेका, और धर्मांतरणसे देशको परतंत्र करनेका, यह षड्‍यंत्रतो नहीं(?) ऐसा प्रश्न खडा होता है। हिंदू धर्मकी विशालतामेंहि इस र्‍हासकी जड तो नहीं? सर्व धर्म समभाव वाला हिंदू क्या जाने, कि उसी “समभाव”के अंतर्गत , “एकहि धर्म सर्वोच्च” भाव(This is the only way)में मानने वाले उसे, और समूचे देशको हडप करनेका सामर्थ्य रखते हैं। क्या, हमारा जनतंत्र, या हमारी सर्व समन्वयी वृत्ति ही हमारे देशकी शत्रु सिद्ध होगी? धर्मांतरण कहीं राष्ट्रांतरण तो नहीं? प्रश्न हो, तो जानकारीके आधारपर उत्तर दूंगा

  3. हिन्दू धर्म अपने पुराने स्वरुप में विघटित होगा ही ,अतः हिन्दू धर्म ग्रहण करने वाले नए साथियों को शुद्र ही न मान कर ब्राह्मन,छत्रिय या वैश्य का दर्जा उनके संस्कारों के आधार पर दिया जाना चाहिए .

  4. हिन्दू धर्म फिर अपने स्वरुप मैं वापस आएगा, जरूरत है एक ऐसे नेतृत्व की जो बिखरे समूहों विभिन्न समाज के संगठनो के बीच एक व्यापक नेटवर्किंग का काम करे. यह सोगंध लें की अब किसी एक भी महिला और पुरुष को दुसरे धर्म मैं जाने नहीं देंगे. वर्तमान समय मैं संचार यानि communication एक बहुत बड़ा अस्त्र है. अन्य धर्म इसका बहुत शातिर तरीके से उपयोग कर रहे हैं. हमें यह समझना होगा. फिल्मो के माध्यम से हमारे किशोर बच्चों के दिमाग मैं ऐसे लोगो की छवि को चमकाया जा रहा है जो किसी भी प्रकार से उसके काबिल नहीं हैं. इन कुत्सित प्रयासों को समझकर उन पर प्रहार करना होगा. फिल्म माध्यमो का उपयोग कुछ धर्मों की छवि चमकाने के लिए किया जा रहा है.

  5. आदरणीय डॉ. प्रवीण भाई तोगड़िया जी, जरा शांत चित्त हो कर चिंतन मनन कीजिए. आप डाक्टर हैं – चिकित्सक हैं. मैं चिकित्सक तो नहीं परन्तु एक निष्णात चिकित्सक का पुत्र हूँ. वैद्यक शाष्त्र में लक्षण का नहीं अपितु रोग के कारण की चिकित्सा करने का विधान है. हिन्दू पिछले २००० वर्षों से आक्रांत है और अरण्य रोदन किये जा रहा है. क्यों हिन्दू समाज ऐरे गैरे, तुच्छ, बर्बर आक्रान्ताओं से पद दलित होता आ रहा है ? सीधी सी बात है – आक्रान्ता भले ही अल्प संख्या में हो – वे संगठित हैं – उनका ध्येय एक है – उनमें उद्येष्य के प्रति पूर्ण समर्पण भाव है ऐवम प्राणोत्सर्ग के लिए भी आतुर हैं. इसके सर्वथा विपरीत हिन्दू समाज खंड खंड विघटित है और प्रतिदिन अपने ही विघटन के नए नए तरीके खोजता है. किसी भी लूट मार कर जीवन यापन करने वाली संस्कृति के लिए भारत से अच्छा शिकार कोई हो ही नहीं सकता. आज तक का इतिहास तो यही कह रहा है. इसलिए हिन्दुओं को आवश्यकता है कि वे अरण्य रोदन का त्याग कर स्थिर चित्त हो कर इस बात पर गहन चिंतन करें कि इस रोग कि जड़ – विघटनवाद – मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना – से कैसे उबरें. इस अनुवांशिक रोग के वटवृक्ष की फुनगी की पत्ती काटने से कुछ नहीं होगा – सीधे जड़ पर प्रहार करना होगा. और ये जड़ कहाँ है – आपको नहीं ज्ञात हो तो आज्ञा कीजिये – बिना आज्ञा किये लिखना घृष्टता होगी.

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