सुबह सुबह से ही रोजाना

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

हार्न‌ बजाकर बस का आना,
सुबह सुबह से ही रोज़ाना।

चौराहों पर सजे सजाये,
सारे बच्चे आँख गड़ाये,
नज़र सड़क पर टिकी हुई है.,
किसी तरह से बस आ जाये।
जब आई तो मिला खज़ाना।
सुबह सुबह से ही रोज़ाना।

सुबह सुबह सूरज आ जाता,
छत आँगन से चोंच लड़ाता,
कहे पवन से नाचो गाओ,
मंदिर में घंटा बजवाता।
कभी न छोड़े हुक्म बज़ाना।
सुबह सुबह से ही रोज़ाना।

सुबह सुबह आ जाता ग्वाला,
दूध नापता पानी वाला,
मम्मी पापा पूछा करते,
रास्ते में मिलता क्या नाला?
न ,न करके सिर मटकाना।
सुबह सुबह से ही रोज़ाना।

सात बजे दादा उठ जाते,
“भेजो चाय”यही चिल्लाते,
कभी समय पर नहीं मिली तो,
सारे घर को नाच नचाते।
बहुत कठिन है उन्हें मनाना।
सुबह सुबह से ही रोज़ाना।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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