युवाओं का काल बन रही हैं सुपरबाइक!

हमारी कि्रकेट टीम के पूर्व कप्तान मौ0 अज़हरूददीन ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जो स्पोर्ट बाइक वह अपने बेटे अयाज़ुददीन को र्इद के तोहफे के तौर पर खुश करने को दे रहे हैं वही सुपर बाइक उनके बेटे की जान की दुश्मन बनकर उनके लिये गम का पहाड़ बन जायेगी। सुपर बाइक ख़रीदना और चलाना आज के नौजवानों के शौक़ में शुमार है लेकिन मानकों को तोड़कर उसकी रफ़तार पर कंट्रोल खो देने का क्या नतीजा हो सकता है? यह हमने पिछले दिनों कि्रकेटर अज़हर के बेटे और भांजे की ऐसी ही एक बाइक दुर्घटना में हुयी दुखद मौत की शक्ल में देखा। आमतौर पर यह माना जाता है कि सुपरबाइक नहीं बलिक इनको चलाते समय बरती गयी लापरवाही ही अकसर हादसों की वजह बनती है।

सुपरबाइक या स्पोटसबाइक अपने आप में एक्सीडेंट की वजह नहीं मानी जाती लेकिन इन पर सवार होने के बाद युवाओं के सर पर अनलिमिटेड स्पीड का जो भूत सवार होता है और उसके चलते जब यह उनके सावधानी न बरतकर काबू से बाहर हो जाती हैं तो उसके बाद कोर्इ न कोर्इ बुरी ख़बर जरूर सुनने को मिलती है। इसलिये युवा अगर इन बाइकों को चलाने का लोभसंवरण नहीं कर सकते तो उनको चाहिये कि वे सख्ती से इनको चलाने के नियम कानूनों का पालन करें। जहां तक सरकार का सवाल है उससे तो यह उम्मीद की जाती है कि वह ट्रेफिक नियमों का कड़ार्इ से पालन करायेगी, लेकिन उसकी नियम कानून लागू करने वाली मशीनरी इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि वह या तो ऐसे मामलों को अनदेखा करती है या फिर जेब भरकर नियम कानून न मानने वालों को चलता कर देती है। इसका परिणाम यह होता है कि वे किसी के ट्रेफिक कानून तोड़ने पर अगर पकड़कर चालान काटने का कोर्इ प्रयास करते भी हैं तो उसकी पहुंच और बड़ी सिफारिश आ जाती है जिससे चोरी और सीनाजोरी की कहावत लागू करते हुए उसका हौसला और भी बढ़ जाता है। पहले तो नौसीखिये बाइक चालक रोड पर दौड़ते यमदूतों की तरह लोगों की जान के लिये ख़तरा हुआ करते थे लेकिन अब कुछ लोगों ने बाकायदा ग्रुप बनाकर ऐसे करतब दिखाने शुरू कर दिये हैं कि देखने वालों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। अजीब बात यह है कि न तो पुलिस और न ही समाज इस तरह की हरकतें शुरू होने से पहले सजग होता है और न ही एक दो दिन शोर या हंगामा करने से अधिक ऐसी समस्याओं का कोर्इ ठोस हल करने की कोशिश की जाती है। आमतौर पर देखा जाता है कि बच्चा बालिग भी नहीं होता कि मांबाप उसको लाड प्यार में बाइक दिला देते हैं। नौजवान जोश में बाइक पर बैठकर इतनी तेज़ स्पीड में उसको दौड़ाते हैं कि न तो उस पर उनका कंट्रोल रहता है और न ही वे अचानक किसी के सामने आने पर बे्रक लगा पाते हैं बलिक बौखलाकर कर्इ बार ब्रेक की जगह स्पीड और बढ़ा देते हैं जिससे एक्सीडेंट की भयावहता और बढ़ जाती है।

यह बात समझ से बाहर है कि जो माता पिता अपने बच्चे से इतना प्यार करते हैं कि अगर उसके चेहरे पर ज़रा सी शिकन देखते हैं तो किसी कीमत पर भी उसकी परेशानी दूर करना चाहते हैं वे ही उसे बाइक दिलाते हुए यह कैसे भूल जाते हैं कि ऐसा करके वे न केवल कानून की अनदेखी कर रहे हैं बलिक अपने बच्चे के साथ ही राहगीरों की जान को भी ख़तरे में डाल रहे हैं। अगर वे वास्तव में जि़म्मेदार पेरेंट और समझदार नागरिक हों तो अपने बच्चे के बालिग होने का इंतज़ार करें और वयस्क होने के बाद भी बाइक तभी उसके हवाले करें जब वह ड्राइविंग लाइसेंस न केवल हासिल करले बलिक बाकायदा बाइक चलाना सीखले। पिछले दिनों देहरादून में ऐसे ही एक परिवार ने हार्इस्कूल पास करके 11वीं में आये अपने 17 साल के बेटे को पास होने की खुशी में केनरा बैंक से लोन लेकर बाइक दिलादी। नतीजा वही हुआ जिसका डर था। बेटे ने खुशी में बाइक को हैलीकाप्टर बना दिया। अगर दो क़दम पर भी किसी काम से जाना तो बाइक से जाना। उूपर से अपने दोस्तों को हर वक्त साथ रखना। बाइक चलाते हुए बातें करना। मोबाइल पर काल अटैंड करना और इयरफोन से गाने सुनना एक ही सप्ताह मेें उस बच्चे ने बाइक के साथ ढेर सारे एक्सपेरिमेंट कर डाले , बस किसी बात पर अगर èयान नहीं गया तो वह था उसकी और सड़क पर चलने वालों की सुरक्षा। परिणाम बहुत दुखद हुआ। एक सप्ताह में ही यह परिवार अपने इकलौते और प्रतिभाशाली पुत्र से हाथ धो बैठा। अब सिवाय पश्चाताप और दुख के क्या हो सकता है। ऐसे मामलों में पुलिस भी जेब गर्म कर या किसी बड़े आदमी की सिफारिश पर नाबालिग बच्चों को बाइक चलाते हुए पकड़कर चालान करने की बजाये यूं ही छोड़ देती है और कभी कभी कुछ पुलिसवाले चिढ़कर कह भी देते हैं कि जब इनके मांबाप को ही इनकी जान की कोर्इ चिंता नहीं है तो हम क्या कर सकते हैं ?

पुलिस के साथ साथ समाज और परिवार जब तक अपनी जि़म्मेदारी नहीं समझेंगे तब तक ऐसे हादसे पेश आते रहेंगे जिससे जागरूकता ज़रूरी है। आज हालत यह हो गयी है किसी भीड़ वाले स्थान पर किसी के साथ कोर्इ वारदात हो जाये तो कोर्इ आदमी भी अपराधियों को ललकारने की चुनौती स्वीकार करना तो दूर सब कुछ देखने के बावजूद गवाह बनने के झंझट से बचना चाहता है। आसपास के कर्इ दुकानदार घटना के बाद अपनी अपनी दुकानें बंद कर या तो चुपचाप घर चले जाते हैं या फिर बहाना बनाकर कह देते हैं कि हादसे के समय वे तो कहीं गये हुए थे। इसका नतीजा यह होता है कि हादसे में घायल होने वाले को वक़्त पर मेडिकल एड भी नहीं मिल पाती है। ज़रूरत है पुलिस, प्रशासन और नागरिक मिलजुलकर ऐसा प्रयास करें जिससे ऐसी घटनायें कम से कम हों और अगर हो भी जायें तो उनका कारगर इलाज हो। आमतौर पर यह देखने में आता है कि किसी भी सुपरबाइक के खास तौर तरीकों और तकनीक को गहरार्इ से जाने बिना ही युवा शौक शौक में उसको बेतहाशा दौड़ाने लगते हैं। जानकार बताते हैं कि एक साधारण बाइक के मुकाबले सुपरबाइक चलाते समय अतिरिक्त सावधानियां बरती जानी चाहिये। मिसाल के तौर पर बहुत कम नौजवान जानते हैं कि सुपरबाइक स्टार्ट करते समय 100 मीटर दूरी तक सड़क ख़ाली होनी चाहिये। उसके टायर और ब्रेक बिल्कुल ठीक होने चाहिये क्याेंकि बाइक चलाते समय इनके फिट न होने से भयंकर दुर्घटना होना तय है। तेज़ रफ़तार का अपना एक समीकरण होता है जो युवाओं को उनके तेज़ी के जुनून की पहचान देती है। एक तरह से अंदर की उूर्जा बाहर निकालने का यही स्पीड एक साधन बन जाती है। यही रफ़तार कामयाबी की नर्इ राहें खोलने का भी काम करती है। यही सोच युवाओं की उनके कैरियर और जीवन को लेकर भी बन जाती है। एक तरह से देखा जाये तो इसमें कोर्इ विशेष बुरार्इ भी नहीं है लेकिन जब यही स्पीड काबू से बाहर जाकर बाइक के मामले में भी मौत और जिं़दगी के बीच झूलने का कारण बन जाये तो असली मुसीबत तब खड़ी होती है। आज हम देख रहे हैं कि 20 से 30 साल के युवा न जाने कितनी ही कम्पनियों के सर्वेसर्वा बनकर कामयाबी और साहस के रिकार्ड बना रहे हैं। खेलों और जंग से लेकर आतंकवादियों से हिम्मत के साथ निबटने वाले नौजवान कमांडो पता नहीं क्यों सुपर और स्पोटस बाइक के मामले में मात खा जाते हैं। हमारा मशवरा तो यही है कि अज़हर भार्इ ने तो अपना होनहार बेटा खो दिया जिसका सभी को दुख है लेकिन अव्वल तो हम अपने नाबालिग बेटों को सादी बाइक भी नहीं दें और सुपर बाइक देनी हो तो अच्छी तरह नियम कानून सिखाने के साथ बतादें कि जिं़दगी कितनी बेशकीमती है। साथ ही सरकार 90 कि.मी. प्रतिघंटा से अधिक की सुपरबाइक कानूनन प्रतिबंधित होने के बावजूद क्यों आयात करने दे रही है, यह पूछने की ज़रूरत कोर्इ महसूस नहीं कर रहा है।

0 आरजुओं को घटाने में ही भला है दिल का,

कम हो सरमाया तो नुकसान भी कम होता है ।।

 – इक़बाल हिंदुस्तानी

नोट-लेखक तीन दषक से पत्रकारिता से जुड़ें हैं।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

1 COMMENT

  1. सर अपने जो लिखा सही है…आजकल युवा ताज रफ़्तार बीके चला रहे है…… जिसे उनके जिन्दगी के साथ दुसुरे के भी जन का दर है……..

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