पूंजीवादी अंधविश्वास और प्रौपेगैण्डा का संगम हैं निर्मल बाबा : जगदीश्वकर चतुर्वेदी


निर्मल बाबा के टीवी विज्ञापनों और बेशुमार सालाना आमदनी को लेकर हठात मीडिया ने ध्यान खींचा है। मीडिया में चल रही बहस के दो आयाम हैं, पहला, मीडिया का एक वर्ग निर्मल बाबा के धर्म के धंधे की आलोचना कर रहा है और उन्होंने जो दौलत कमाई है उसके अन्य कामों में इस्तेमाल करने पर आपत्ति कर रहा है। धर्म के धंधे में आमदनी है, साथ ही धर्म की आय का अन्य कामों में इस्तेमाल होना भी आम बात है।

मीडिया में चल रही बहस का एक दूसरा आयाम है बाबा के चमत्कारों की आलोचना का। बाबा का इन दोनों के संदर्भ में कहना है कि वे वैध ढ़ंग से कमाई कर रहे हैं, वे करदाता है, उनके यहां दौलत के आय-व्यय को लेकर पारदर्शिता है, और जो कुछ भी वे खरीदते हैं उसका पेमेण्ट चैक से करते हैं।

बाबा का यह भी कहना है उन्होंने कभी चमत्कार की बात नहीं की। उन्होंने कभी अंधविश्वासों का प्रचार नहीं किया, वे तो मात्र भगवान की कृपा बांट रहे हैं।

धर्म की अमीरी –

निर्मल बाबा की अमीरी की झलक लेने के पहले कुछ बातें दौलत के तर्कशास्त्र पर कहना चाहेंगे। लोकतंत्र में सबको धन कमाने का हक है यहां तक कि भगवान को भी धन कमाने का हक है। दौलत कमाना और सुख से रहना पूंजीवाद का आम लक्षण है। पूंजीवाद में दौलत कैसे कमाते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है दौलत।

दौलत कभी ईमानदारी से नहीं कमा सकते। ईमानदारी से पेट भर सकते हैं। सुख से सामान्य जीवन जी सकते हैं। लेकिन अकूत संपत्ति अर्जन के लिए अन्य का सरप्लस हजम करने की कला में पारंगत होना चाहिए। जो परजीवी लोग है वे बिना परिश्रम किए सरप्लस कमाते हैं और धर्म उनके विचरण का प्रधान क्षेत्र है। निर्मल बाबा इस धर्म के क्षेत्र के बड़े सरप्लस कमाने वाले व्यक्ति हैं।

सतह पर बाबा हो सकता है वैध ढ़ंग से ही कमा रहे हों,कानून का पालन करके कमा रहे हों,इसके आधार पर वे यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने कोई भी पैसा अवैध ढ़ंग से नहीं कमाया। सवाल यहां सवाल वैध-अवैध ढ़ंग से कमाई का नहीं है। पैसा वैध है या अवैध है यह देखने का काम आयकर विभाग और अन्य सरकारी संस्थान करेंगे। हमारे लिए महत्वपूर्ण सवाल है विचारधारा का। किस नजरिए से निर्मल बाबा अपने कामों के जरिए और किसकी वैचारिक सेवा कर रहे हैं? क्या वे जनता की सेवा कर रहे हैं ? या फिर अमीरों या पूंजीवादी व्यवस्था और पूंजीपतिवर्ग की सेवा कर रहे हैं ?

निर्मल बाबा के समूचे तंत्र का भगवान की कृपा और जनता की सेवा से कोई संबंध नहीं है। बल्कि निर्मल बाबा परवर्ती पूंजीवाद के अंधविश्वास उद्योग के बड़े प्रोडक्ट हैं। वे बड़े ही कौशल के साथ अंघविश्वास का प्रचार करके दौलत कमा रहे हैं और आम जनता की अति पिछड़ी भावनाओं का शोषण कर रहे हैं। पहले उन तथ्यों और खबरों को देखें जो उनके अर्थतंत्र के संबंध में अखबारों में आई हैं।

दैनिक भास्कर के अनुसार बाबा ने ‘आज तक’ को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि उनका सालाना टर्न ओवर 235-240 करोड़ रुपये का है और वह पूरी रकम पर इनक्मटैक्स देते हैं। लेकिन शनिवार को ‘प्रभात खबर’ ने उनके खातों से जुड़ी जो जानकारी सार्वजनिक की है, उससे बाबा की बात पूरी तरह सच नहीं लगती। इसके मुताबिक निर्मल बाबा के दो खाते हैं। एक निर्मल दरबार के नाम से (जिसका नंबर टीवी पर चलता रहता है) और दूसरा निर्मलजीत सिंह नरूला के नाम से। इस खाते का नंबर है 1546000102129694। यह खाता नंबर टीवी पर नहीं दिखाया जाता। इस खाते में चार जनवरी 2012 से 13 अप्रैल 2012 के बीच 123 करोड़ (कुल 1,23,02,43,974) रुपये जमा हुए। इस राशि में से 105.56 करोड़ की निकासी भी हुई। 13 अप्रैल को इस खाते में 17.47 करोड़ रुपए बचे थे।

निर्मल बाबा को विभिन्न प्रकार के जमा पर 13 मई 2011 से 31 मार्च 2012 तक के बीच ब्याज के रुप में 85.77 लाख रुपये मिले। यह खबर है कि उन्होंने अपने पैसों का विदेशी खातों में ट्रांसफर किया है । बाबा ने 25 करोड़ की एफडी भी करा रखी है।

प्रभात खबर’ की रिपोर्ट के मुताबिक निर्मल दरबार के नाम से आईसीआईसीआई बैंक में खुले खाते (संख्या 002-905-010-576) में शुक्रवार को सिर्फ 34 लाख रुपये जमा किये गये। पहले इस खाते में प्रतिदिन औसतन एक करोड़ रुपये जमा किये जा रहे थे। पहले औसतन चार से साढ़े चार हजार लोग प्रतिदिन निर्मल बाबा के खाते में राशि जमा कर रहे थे, लेकिन शुक्रवार शाम पांच बजे तक देश भर के 1800 लोगों ने ही बाबा के आईसीआईसीआई बैंक खाते में राशि जमा की थी। यानी 40 फीसदी कम।

हिन्दी के दैनिक अखबारों में यह भी छपा है कि बाबा अपने भक्तों से दो किस्म का शुल्क लेते हैं पहला है, निबंधन शुल्क ,यह एक प्रकार से समागम में आने की एंट्री फीस है, जिसमें 2 साल से ऊपर के बच्चे से भी दो हजार रुपए लिए जाते हैं।दूसरा है दसबंद शुल्क, जिसमें बाबा के भक्तों को पूर्णिमा से पहले अपनी आय का 10वां हिस्सा निर्मल दरबार को देना होता है।

मीडिया अनुमान के अनुसार बाबा के खाते में विगत तीन महीनों में 109 करोड़ जमा हुए हैं। एकण हिंदी अखबार ने बाबा के तीन बैंक अकाउंटों का खुलासा किया है। अखबार के मुता‌बिक पंजाब नेशनल बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और यस बैंकों में बाबा के खाते हैं, जिनमें से दो खातों को रिकॉर्ड हाथ लगा है। इनमें से एक खाते में केवल जनवरी 2012 से अप्रैल 2012 के पहले सप्ताह तक 109 करोड़ रुपए जमा किए गए हैं। यानि 1.11 करोड़ रुपए प्रतिदिन जमा किए गए।

वहीं दूसरे बैंक खाते में 12 अप्रैल 2012 को 14.93 करोड़ रुपए जमा हुए हैं। यह रकम सुबह 9.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक जमा की गई। शाम तक इस खाते में करीब 16 करोड़ रुपए जमा किए गए। इसके अलावा एक बैंक में बाबा के नाम से 25 करोड़ रुपए का फिक्स्डए डिपोजिट भी है। बाबा का एक खाता निर्मलजीत सिंह नरूला और दूसरा खाता निर्मल दरबार के नाम से है। निर्मल दरबार में भक्तों द्वारा जमा की रकम को बाद में बाबा अपने अकाउंट में ट्रांसफर कर लेते हैं।

एक अखबार ने यह भी लिखा है कि हाल के वर्षों में लोगों का झुकाव अध्यात्म व धार्मिक कार्यों की ओर पहले की अपेक्षा बढ़ा है। जिसके कारण चारों ओर धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जा रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन में सहभागिता करने की लोगों में होड़ सी मची हुई है। वहीं लोग धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागिता देकर अपनी किस्मत की रेखाओं को दुरूस्त करने में लगे हुए हैं। इस मामले में गिरिडीह के लोग भी पीछे नहीं है। टोटकों और पूजा बाजार में मिलने वाले आधुनिक यंत्रों की खरीदारी से लेकर धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन में ये दो कदम आगे हैं।

इस प्रतिस्पर्धा के युग में जीवन के प्रति असुरक्षा की भावना को देखते हुए लोगों का रुझान आध्यात्मिकता ही नहीं, बल्कि नए किस्म के धार्मिक अनुष्ठानों पर भी है।

अखबारों में छपे विवरण के अनुसार निर्मल बाबा उर्फ निर्मल जीत सिंह नरूला एक आध्यात्मिक गुरू है, जो दिल्ली की कैलाश कालोनी में रहते हैं। इससे पूर्व ये झारखंड के डाल्टनगंज में ठेकेदारी का काम करते थे। निर्मल बाबा के अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार निर्मल बाबा के पास छठी इंद्रिय (सिक्स्थ सेंस) है। कहते हैं कि इस रहस्यमयी छठी इंद्रिय के विकसित होने से मनुष्य को भविष्य में होने वाली घटना के बारे में पहले से ही पता चल जाता है।

बाबा का दावा है छठी इंद्री का कुंडलिनी से गहरा ताल्लुक है। कुंडलिनी जागृत करने के पश्चात मनुष्य त्रिकालदर्शी बन जाता है। लेकिन कुंडलिनी जागृत करने के लिये कठिन साधना की जरूरत होती है। ये एक सतत प्रक्रिया है, जब दैहिक शुद्धि के पश्चात, मानसिक शुद्धि अनिवार्य होती है। शास्त्रों में इस क्रिया में गुरू की असीम भागीदारी को भी जरूरी बताया गया है। इसका इस्तेमाल शास्त्रों में सिर्फ मानवीय हितों को साधने के निहित किया गया है। इन तंत्र-मंत्रों के बल पर मनुष्य अतीत, वर्तमान और भविष्य को आसानी से देख, सुन और समझ सकता है।

बाबा की वेबसाइट के अनुसार निर्मल बाबा 10 साल पहले साधारण व्यक्ति थे, लेकिन बाद में उन्होंने ईश्वर के प्रति समर्पण से अपने भीतर अद्वितीय शक्तियों का विकास किया। ध्यान के बल पर वह ट्रांस (भौतिक संसार से परे किसी और दुनिया में) में चले जाते हैं। ऐसा करने पर वह ईश्वर से मार्गदर्शन ग्रहण करते हैं, जिससे उन्हें लोगों के दुख दूर करने में मदद मिलती है। निर्मल बाबा के पास मुश्किलों का इलाज करने की शक्ति है। वे किसी भी मनुष्य के बारे में टेलीफोन पर बात करके पूरी जानकारी दे सकते हैं। यहां तक कि सिर्फ फोन पर बात करके वह किसी भी व्यक्ति की आलमारी में क्या रखा है, बता सकते हैं। उनकी रहस्मय शक्ति ने कई लोगों को कष्ट से मुक्ति दिलाई है।

ये सारी बातें निर्मल बाबा की ईश्वरीय इमेज बनाने और अंधविश्वासी इमेज बनाने वाली हैं।

निर्मल बाबा के अंधविश्वास-

निर्मल बाबा के प्रचार अभियान के जो टीवी कार्यक्रम बनाए गए हैं वे काफी मेहनत और कानूनी दांव-पेंच से बचने और तर्कवादियों के हमलों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। बाबा का यह कहना गलत है कि वह अंधविश्वास और चमत्कार का इस्तेमाल नहीं करते।

इस प्रसंग में पहली बात यह है कि बाबा की इमेज के पक्ष में जो तर्क दिए गए हैं वे सबके सब अवैज्ञानिक और काल्पनिक हैं। बाबा के पास दिव्यशक्ति जैसी कोई चीज नहीं है। संसार में दिव्यशक्ति जैसी कोई चीज अभी तक किसी ने नहीं देखी है ।बाबा के पास दिव्यशक्ति होने का दावा करना ही अपने आपमें अंधविश्वास फैलाना है और इसका प्रत्येक स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।

दूसरा अंधविश्वास यह कि बाबा के ऊपर ईश्वर कृपा है और वे अपने प्रवचनों से लेकर विज्ञापनों तक सिर्फ ईश्वरकृपा ही बांटते हैं। असल में, ईश्वरकृपा के नाम पर अंधविश्वासों का प्रचार किया जा रहा है। ये अंधविश्वास पुराने किस्म के अंधविश्वासों से भिन्न नए किस्म के हैं।

मसलन् ,एक व्यक्ति ने कहा मेरे बिजनेस में घाटा हो गया तो बाबा ने पूछा आपने कल दही खाया था तो उस व्यक्ति ने कहा नहीं, तो बाबा बोले आज रात को दही खाकर सोना सब ठीक हो जाएगा।

एक अन्य व्यक्ति ने कहा मेरे पैरों में दर्द हो रहा है किसी दवा से ठीक नहीं होता। बाबा ने कहा तेरे पास अलमारी में दस के नोटों की गड्डी है, उसने कहा नहीं, तो बाबा बोले जा अलमारी में एक दस के नोटों की गड्डी रख दे दर्द ठीक हो जाएगा।

समूचा प्रचार इस तरह के नॉनसेंस उपायों के आधार पर नए किस्म के अंधविश्वासों को संप्रेषित करता है। अंधविश्वास की खूबी है कि उसका कोई वैज्ञानिक और तार्किक आधार नहीं होता, वह संबंधित समस्या से हमेशा डिसकनेक्ट होता है। मसलन् किसी के पैर में दर्द है तो उसका दस के नोट की गड्डी से क्या संबंध है? इसी तरह बाबा कहने के लिए सतह पर ढोंगियों की भाषा और इमेज का इस्तेमाल नहीं करते। वे जिस चीज का दोहन करते हैं वह है लोगों का विश्वास।

बाबा के भक्त मानते हैं कि बाबा की बात पर विश्वास करेंगे तो समस्या हल हो जाएगी। आम लोगों के विश्वास का अंधविश्वास और धंधे के लिए इस्तेमाल सीधे ठगई है। इस ठगई को 40 टीवी चैनलों से अहर्निश विज्ञापन चलाकर वैधता प्रदान की जा रही है। यह काम वैसे ही किया जा रहा है जैसे कोई कंपनी अपने माल की बिक्री बढ़ाने के लिए झूठ का प्रचार करती है। मसलन क्रीम बनाने वाली कंपनी का यह दावा असत्य है कि उसकी क्रीम का प्रयोग करने से रंग गोरा हो जाएगा। सच यह है कि क्रीम लगाने से रंग गोरा नहीं हो सकता। रंग को किसी भी कॉस्मेटिक के जरिए बुनियादी तौर पर बदला नहीं जा सकता। हां,मेकअप के जरिए कुछ देर के लिए बदल सकते हैं लेकिन इससे बुनियादी रंग खत्म नहीं होगा।

निर्मल बाबा ने जिस कदर दौलत कमाई है उससे यह भी पता चलता है कि हमारे मध्यवर्ग-निम्न मध्यवर्ग में आज भी एक बड़ा तबका है जिसके मन के अंदर अंधविश्वासों की जड़ें गहरी हैं। जो मीडिया अहर्निश उपभोक्ता वस्तुएं के बारे में तरह तरह के अंधविश्वास फैलाता रहता है वह मीडिया कैसे निर्मल बाबा को चुनौती दे सकता है ?

निर्मल बाबा के अंधविश्वासों का फ्लो वस्तुतः मीडिया विज्ञापनों में प्रतिदिन छप रहे अंधविश्वासों के वैचारिक फ्लो में आ रहा है। ऐसी अवस्था में मीडिया में निर्मल बाबा के बारे में आप कुछ भी कहें वे और ताकतवर बनेंगे। निर्मल बाबा नए युग के उपभोक्ता मालों की दुनिया के अंधविश्वास उद्योग के बड़े ब्रॉँड हैं। इनकी जड़ें पूंजीवादी विज्ञापन कला के वैचारिक ताने-बाने से बनी हैं। इस वैचारिक तानेबाने को जब तक समग्रता में वैचारिक चुनौती नहीं मिलती,निर्मल बाबा जैसे लोग मसलन बाबा रामदेव,श्रीश्री रविशंकर,मुरारी बापू आदि फलते-फूलते रहेंगे। निर्मल बाबा का सवाल वैध संपत्ति का सवाल नहीं है बल्कि अंधविश्वास उद्योग से कैसे लड़ें, इसके परिप्रेक्ष्य से जुड़ा है।

निर्मल बाबा पूंजीवादी मालों के संसार में एक माल है। इसकी धुरी है विज्ञापन और आधुनिक अंधविश्वास। इसमें सिरों की गिनती का महत्व वैसे ही जैसे फ्रिज की बिक्री में सिरों की गिनती का महत्व है,बालों के रंग की बिक्री में जिस तरह सिरों की गिनती का महत्व है वैसे ही बाबा भी कह रहे हैं मेरे लाखों अनुयायी हैं। यानी महत्वपूर्ण है सिरों की गिनती। सिरों की गिनती के आधार पर नए पूंजीवादी युग का अंधविश्वासों से भरा तंत्र और उसकी विचारधारा काम कर रही है। आप जब तक इसकी विचारधारात्मक जड़ों पर हमले नहीं करेंगे इसका कुछ भी बाल बांका नहीं कर सकते।

इसकी विचारधारा का आधार है जो कहा जा रहा है उस पर विश्वास करो और मानो। सवाल न करो। उपभोग करो। अनुकरण करो। यह मूलतः विवेकहीन उपभोक्ता संस्कृति के निकृष्टतम तर्कों से रची विचारधारा है। इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है।इसका पूंजी के उत्पादन और पुनर्रूत्पादन से संबंध है। यह स्व-निर्मित विचारधारात्मक वातावरण में रमण करती है।

आप देखेंगे कि सभी रंगत के बाबा इन दिनों विज्ञापनों,टी चैनलों और इलैक्ट्रोनिक कम्युनिकेशन के रूपों से लेकर प्रिंट मीडिया के विज्ञापनों और जन-संपर्क एजेंसियों की मदद ले रहे हैं। यह स्व-निर्मित वातावरण है और कालान्तर में वे इसे समाज निर्मित वातावरण के नाम से प्रचारित करने लगते हैं।

वे इनदिनों फेसबुक और इंटरनेट आदि का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।एक अखबार ने लिखा है- निर्मल बाबा ट्विटर और गूगल पर ट्रेंडिंग टॉपिक बन गए हैं। गूगल पर ‘निर्मल बाबा फ्रॉड’ खूब सर्च किया जा रहा है। मीडिया में नकारात्मबक खबरें आने के बाद लगता है बाबा ने भी इंटरनेट को हथियार के रूप में इस्तेरमाल करने की ठोस पहल की है। उनके फेसबुक पेज से साढ़े तीन लाख से अधिक लोग जुड़े हैं और रोजाना हजारों नए लोग जुड़ रहे हैं। देश के सबसे बड़े फेसबुक पेज ‘इंडिया’ जिससे करीब 39 लाख लोग जुड़े हैं, पर हुई पोस्ट पर भी इतनी प्रतिक्रियाएं या ‘लाइक’ नहीं आते जितने बाबा के पेज पर आ रहे हैं।

हजारों भक्त बाबा के फेसबुक पेज पर कोटि-कोटि प्रणाम कर रहे हैं। कोई निर्मल बाबा में आपनी आस्था का वर्णन कर रहा है तो कोई उनसे बंगला और गाड़ी मांग रहा है। लेकिन dainikbhaskar.com ने तीन दिन तक निर्मल बाबा के फेसबुक पेज का गहन अध्ययन किया तो संदेह बढ़ाने वाली कुछ अलग ही कहानी समझ में आई।

बाबा के पेज पर मीडिया के खिलाफ भी खूब भड़ास निकाली जा रही है। शुक्रवार को ‘स्टार न्यूज’ पर जब निर्मल बाबा पर कार्यक्रम चल रहा था तब मात्र दो घंटे के भीतर करीब पांच हजार प्रतिक्रियाएं बाबा के फेसबुक पेज पर आईं। इनमें अधिकतर में बाबा की शक्तियों का गुणगान किया गया। ये अलग बात है कि बाबा के विरोध में पोस्ट हो रही प्रतिक्रियाओं को तुरंत हटाया भी जा रहा था। ‘आजतक’ पर जब निर्मल बाबा ‘प्रकट’ हुए तब भी उनके भक्त फेसबुक पेज पर सक्रिय हो गए और बाबा का जमकर गुणगान करने लगे।

अखबार ने लिखा है बाबा का गुणगान कर रहे सैंकड़ों प्रोफाइल ऐसे थे जो देखते ही फर्जी प्रतीत हो रहे थे। जब हमने और गहन पड़ताल की तो पता चला कि इनमें से अधिकतर प्रोफाइल मार्च के अंत में या अप्रैल के पहले सप्ताह (ध्यान दें, इसी दौरान बाबा ब्लॉगों की चर्चा से निकलकर मेनस्ट्रीम मीडिया की सुर्खी बने थे) में बनाए गए हैं। इन फर्जी लग रहे प्रोफाइलों से बाबा के फेसबुक पेज पर नियमित टिप्पणियां की जा रही हैं। उनकी कृपा बरसने से जुड़े के किस्से भी बारी-बारी से सुनाए जा रहे हैं। हमने ऐसे ही पचास से ज्यादा प्रोफाइलों की आईडी सेव भी की है। अधिकतर लड़कियों के नाम से बनाए गए इन प्रोफाइल में लोकेशन भी अलग-अलग शहरों की बताई गई है, ताकि ये संदिग्धा नहीं लगें। पर इनमें से किसी पर भी प्रोफाइल पिक्चशर पोस्ट नहीं है।हमने इनमें से कुछ प्रोफाइलों को संदेश भेजकर इनके अनुभव मांगे। लेकिन एक ने भी अपना अनुभव साझा नहीं किया। एक से जवाब आया भी तो उसने फोन पर बात करने से इनकार कर दिया।

बाबा के फेसबुक पेज से 3 लाख 57 हजार से अधिक लोग जुड़े हैं और इस पेज पर विजिट करने वाले प्रोफाइल में करीब 60 प्रतिशत महिलाएं हैं जिनमें से ज्यातार युवा और पढ़ी लिखी पेशेवर हैं। बाबा के पेज से छात्र भी भारी संख्या में जुड़े हैं। एक छात्र ने बाबा के पेज पर अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि कॉलेज उसे परीक्षा नहीं देने दे रहा था लेकिन उसने बाबा से प्रार्थना की तो उसे इम्तिहान में बैठने की अनुमति मिल गई।

एक अन्य अखबार ने लिखा फेसबुक पर बाबा के 32 लाख प्रशंसक हैं। टीवी और इंटरनेट के जरिए निर्मल बाबा पूरे भारत ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में भी रोज लोगों तक पहुंचते हैं। निर्मल बाबा के समागम का प्रसारण देश-विदेश के तकरीबन 39 टीवी चैनलों पर सुबह से लेकर शाम तक रोजाना करीब 25 घंटे अलग-अलग समय पर किया जा रहा है। भारत में विभिन्न समाचार, मनोरंजन और आध्यात्मिक चैनलों के अलावा विदेशों में टीवी एशिया, एएक्सएन जैसे चैनलों पर मध्य पूर्व, यूरोप से लेकर अमेरिका तक उनके समागम का प्रसारण हो रहा है। फेसबुक पर निर्मल बाबा के प्रशंसकों का पेज है, जिसे करीब 32 लाख लोग पसंद करते हैं। इस पेज पर निर्मल बाबा के टीवी कार्यक्रमों का समय और उनकी तारीफ से जुड़ी टिप्पणियां हैं। ट्विटर पर उन्हें 50 हजार लोग फॉलो कर रहे हैं।

मीडिया ने सवाल उठाया है कि आखिरकार निर्मल बाबा ने पिछले दस सालों में ऐसा क्या किया कि वे आज एक असाधारण रहस्यमय शक्ति के मालिआक बन बैठे है? इस रहस्यमय शक्ति की बदौलत करोड़ों रुपये प्रतिदिन की आमदनी अर्जित करने वाले निर्मल बाबा देश के उन गरीबों और लाचारों को अपना आशीर्वाद क्यों नहीं देते जिन्हें दो जून की रोटी के लिए रोज मशक्कत करनी पड़ती है।

2 COMMENTS

  1. आज निर्मल बाबा के खिलाफ सारे मिडिया वाले पड़ गए है पर एक दिन यही मिडिया वाले उनका गुणगान करते नहीं थक रहे थे स्टार न्यूज़ इसमें सबसे आगे बढ़ कर हिस्सा ले रहा है वह १२ मई तक उनके कार्यक्रम को दिखलायेगा .क्यों भाई ऐसा क्यों यही मिडिया की पाखंड सामने आती है आज की तारिख में मिडिया से बड़ा पाखंड से भरा कोई तंत्र है निर्मल बाबा की कमाई का तो खुलासा किया जाता है पर इन पत्रकारों की कमाई का चर्चा भी नहीं होती अभी कुछ नामीगिरामी पत्रकार २जी घोटाले में फंसे हुए पाए गए पत्रकारों की इस्तिथि तो वेश्या से भी निम्न तर है ऐसा परमगुरु ओशो ने कहा था निर्मल बाबा का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा क्यों की उन्होंने जनता को उसके बुरे मानसिक हालत में सहयोग दिया .लालची लोग उनके पास गए और असफल हो के लौटे.मार्क्स को लोग उध्ह्रित करते है कि धर्म जनता कि अफीम है .पर कैसे ? इस बात को लोग छोड़ देते है कि यह बेबस निरीह जनता का उच्छ्वास है .यदि बेबसी नहीं होती तो तथाकथित धर्म भी नहीं होते इसलिए जब तक शोषण है धर्म भी रहेगा क्यों कि वह उन लोगों के लिए आश्रय बना रहेगा .जहाँ कुठाराघात करना चाहिए वहां नहीं करेंगे यानि शोषण को समाप्त करने का प्रयास नहीं करेंगे और शिकायते करेंगे कि फलां उनकी आस्था से खिलवाड़ कर रहा है मै पुछता हूँ राजनीतिज्ञ अपने किये गए वायदे को न पूरा कर जनता कि भावना का खिलवाड़ नहीं करते उनकी संपत्ति दिन दुनी रत चौगिनी कैसे बढ़ रही है यह सवाल कोई क्यों नहीं उठाता यह भी सोचने जैसी बात है मिडिया भी साठ -गांठ किये रहती है .आखिरी बात कौन नहीं जनता को वेवकूफ बना रहा है
    बिपिन कुमार सिन्हा

  2. चतुर्वेदी जी बुरा मत मानिए तो मुझे तो निर्मल जीत सिंह नरूला और आप एक ही थैली के चट्टे बटे लगते हैं.तोड़ फोड़ करके आप जो भी निष्कर्ष निकाले ,पर निर्मल जीत सिंह जैसे लोगों का किसी साम्यवादी या पूंजीवादी व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है.निर्मल जीत सिंह जैसे लोग उस अंध विश्वास के बल पर अपना साम्राज्य आगे बढ़ा रहे हैं जो हमारे समाज का सबसे बड़ा कोढ़ है.किसी भी अन्य देश में यह कोढ़ इस व्यापक रूप में नहीं फैला हुआ है.यह भारत ही है,जहां आप जैसे साम्यवादी भी शास्त्रों में वर्णित उल जलूल बातों को भी महत्त्व पूर्ण करार देते हैं.यह भारत ही है,जहां साम्यवादी दुर्गा पूजा में अपने को सबसे आगे रखना चाहते हैं.हिन्दू लोग चिढ जाते हैं,जब कहा जाता है कि ऐसे निर्मल जीत सिंह बाबा या ईश्वर के रूप में इसलिए भी विख्यात हो जाते हैं,क्योंकियहाँ अनगिनत देवताओं की संख्या में एक आध वृद्धि से क्या अंतर पड़ता है? इसीलिये जब तक अंध विश्वास रहेगा,तब तक निर्मल जीत सिंह नरुला जैसे लोग अपना व्यापार चलाते रहेंगे.ऐसे भी बाबा लोगों के लिए अपना देश हमेशा बहुत उपजाऊ सिद्ध हुआ है.

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