शत प्रतिशत समस्याविहीन होने पर ही गांवों में आएगा सुराज

छत्तीसगढ़ की सरकार ने दो चरणों में ग्राम सुराज अभियान चलाकर प्रदेश के सूदूर ग्रामीण अंचलों में पहुंचकर जनता से संवाद किया। अभियान के पहले दिन 12 अप्रैल को ही सरकार के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने राज्य के दक्षिणी छोर में धुर नक्सली इलाके दोरनापाल, गंगालूर और बिंजली जैसे ग्रामों के आदीवासी नागरिकों के बीच चौपाल लगाकर ये जतला दिया कि ये इलाका सरकार की प्राथमिकता में है। ताड़मेटला कांड के एक सप्ताह के भीतर ही मुख्यमंत्री ने दक्षिण बस्तर के इन संवेदनशील ग्रामों में पहुंचकर यहां के ग्रामीणों का सम्बल बढ़ाने और उनके मन में व्याप्त नक्सलियों के भय को दूर करने की पहल तो की ही साथ ही नक्सलियों से लोहा लेने में सरकार की मदद करने वाले एसपीओ के वेतनवृद्धि करके भी एक अच्छा संकेत दिया।

ग्राम सुराज अभियान के दूसरे दिन भी मुख्यमंत्री ने प्रदेश के उत्तरी छोर के आदीवासी जिले कोरिया में बसे गांव भरदा और बिलासपुर जिले के आदीवासी बहुल ग्रामों का दौरा किया। अभियान के दौरान ही उन्होने 2009 के बड़े नक्सली हमले वाले गांव मदनवाड़ा जाकर वहां के ग्रामीणों और सुरक्षाबलों से भी मुलाकात की और उनकी परेशानियां पूछी और सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ाया। अभियान के दौरान कड़ी दोपहरी में मुख्यमंत्री ने कहीं गांव की चौपाल पर बैठकर और कहीं पेड़ की छांव तले खाट में बैठकर जनता की समस्याएं सुनीं और उन्हे हल करने के निर्देश दिये।

प्रदेश के ग्रामों में सुराज लाने की छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार की यह पांचवी पहल है लेकिन डॉ. रमन सिंह की दूसरी पारी का यह पहला ग्राम सुराज अभियान होने के कारण ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। गांवों में सुराज तभी आएगा जब गांव समस्याविहीन हो जाएंगे। प्रदेश के गांवों की समस्याओं का निराकरण कर उन्हे समस्याविहीन करने ही छत्तीसगढ़ का पूरा सरकारी अमला भीषण गर्मी में पूरे दस दिनों तक गांवों में डेरा डाले रहा।

आमतौर पर गांव की सीधी सादी जनता ही अपनी समस्याओं को लेकर जनप्रतिनिधियों और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाती रहती है लेकिन इस अभियान के माध्यम से पूरा सरकारी दफ्तर ही गांव की चौपाल कर आया। अभियान में जनप्रतिनिधि व अधिकारी जनता से उनकी मांगों और समस्याओं की जानकारी व निराकरण करने से लेकर गांव के विकास के लिए तीन सालों की कार्ययोजना बनाने में जुटे रहे। अभियान के दौरान ग्रामीणों द्वारा बिजली, पानी सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा संबंधी ही शिकायतें आम तौर पर सामने आई। किसानों ने भी अनेक स्थानों पर सरकार के मंत्रियों से कहा कि कृषक जीवन ज्योति योजना के तहत निशुल्क बिजली खपत की वार्षिक सीमा जो कि 6 हजार युनिट है उसे बढ़ाया जाए।

प्रदेश की सरकार ने जनता से मुंह चुराने की बजाय जनता के बीच जाने और उनकी बात सुनने साहस किया है। सरकार के ऐसे कदमों से जनप्रतिनिधियों, अफसरों और कर्मचारियों के बीच भी एक संदेश जाता है कि हर साल हमें ऐसे अभियान के माध्यम से जनता के बीच जाना पड़ेगा इसलिए बेहतर होगा कि जनता की मांगों और समस्याओं का निराकरण दफ्तर में आवेदन आते ही कर दिया जाए ताकि बाद में गांवों में जाकर चौपाल लगाते समय किसी अप्रिय स्थिति का सामना न करना पड़े जैसा कि मारवाही के ग्राम बरौर और बेेमेतरा के सिरवाबांधा में सुराज दल को बंधक बनाने, रायगढ़ के जुनवानी में दल के लोगों को दाखिल होने से रोकने और सक्ती के ग्राम जर्वे मेें ग्रामीणों द्वारा काली पट्टी लगाकर विरोध जताने वाले मामले हुए हालांकि प्रदेश के बीस हजार गांवों में से ऐसे गांव गिनती के दस बीस ही है जहां पर अपवादस्वरुप इस तरह की घटनाएं हुई है। ग्राम सुराज अभियान के दौरान बरौर, सिरवाबंधा, जुनवानी और जर्वे जैसे मामले भी एक तरह से अपने उपेक्षित गांव की ओर सरकार का ध्यानाकर्षण कराना ही है। ग्राम सुराज अभियान का यह एक अतिरिक्त लाभ है कि इस अभियान के चलते इन गांव वालों की नाराजगी सरकारी रिकार्ड में दर्ज हो गई अब सरकार को ऐसे कुछेक गांवों के निवासियों के मन में अपने प्रति विश्वास जागृत कर स्थिति को सुधारने का अवसर मिला है जिससे कि आगामी विधानसभा चुनाव के पहले तक उनकी नाराजगी को दूर की जा सके और उन्हे सरकार के पक्ष में किया जा सके।

दो चरणों में चले इस अभियान में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश के सभी 18 जिलों के 27 गांवों का औचक दौरा किया। प्रदेश सरकार के सभी मंत्री छापामार शैली में गांवों में जाकर जनता से उनकी मांगों और शिकायतों की जानकारी लेकर समाधान करते नजर आए। ऐसे अभियान जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों में जनता के प्रति अपनी जवाबदेही का भाव जगाते है और जनता में भी सरकार के प्रति विश्वास बढ़ाने में सहायक होते हैं।

निस्संदेह प्रदेश सरकार के मुखिया इस अभियान के प्रति बेहद गंभीर हैं, प्रदेश की सरकार को चाहिए कि वो ग्राम सुराज अभियान के दौरान आने वाली मांगों और समस्याओं के निराकरण हेतु ऐसे कदम उठाए कि तीन साल बाद ऐसे ग्राम सुराज अभियानों की आवश्यकता ही ना पड़े। राज्य का प्रत्येक ग्राम समस्याविहीन बनें और वहां सुराज स्थापित हो जाए।

-राजेन्द्र पाध्ये

4 COMMENTS

  1. राजेंद्र जी –डॉ. रमण सिंह्व के इस अनन्य और शायद (?) अद्वितीयसे अभिगमके, विवरणके लिए धन्यवाद। कुछ संकोच सेहि सही, पर, निम्न सुझाव देनेका मोह टाल नहीं सकता।
    -“सक्रिय संकेत/संदेश— जो ग्रामीणोंमे एक स्पष्ट संकेत देनेमें सहायक हो” वैसा देनेकी आवश्यकता है।” इसपर सोचा जाए।
    आपने कहा है–
    “अभियान के दौरान ग्रामीणों द्वारा(१) बिजली,(२) पानी(३) सड़क,(४) स्वास्थ्य,(५) शिक्षा संबंधी ही शिकायतें आम तौर पर सामने आई।”….. इन पांचोमेंसे मुझे लगता है।(४) स्वास्थ्य संबंधी कार्यवाही आवश्यक और सरल(?) और त्वरित की जा सकती है। पर्याप्त चलते फिरते दवाखाने काममें लाए जाए —तो एक संदेश जनतामें पहुंच जाएगा। और (५) शिक्षा के विषयमें भी —संध्याके समय छोटे सतसंग सोचे जा सकते हैं।और काम भी शीघ्रातिशीघ्र हो।
    फिरसे कहूंगा–” एकाध सक्रिय काम , संदेश पहुंचानेके लिए आवश्यक है।” जिससे कुछ नक्सली घटनाएं आपहि आप कम होगी। नरेंद्र मोदी, शिवराज इ.से परामर्षभी करें।

  2. janta se sedey sanvad ka ye autha safal paryas hai… aur easa sanvad ke liye sarkar ko kisi abhiyan ke daire mein nahi bandna chahiye…

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