प्रो. (डॉ.) मधुसूदन जी अमेरिका में रहते हैं और प्रारंभ से ही प्रवक्ता डॉट कॉम से जुड़े हुए हैं। अपनी सारगर्भित टिप्पणियों से लेखकों का उत्साह बढ़ाने में सबसे आगे रहनेवाले मधुसूदन जी हिंदी भाषा के अनन्य भक्त हैं। भाषा विज्ञान को लेकर प्रवक्ता पर लिखे उनके लेख काफी सराहे गए। पिछले दिनों उनके लेख पर अन्तरराष्ट्रीय हिंदी समिति, अमेरिका के अध्यक्ष रहे हिंदी के हितचिंतक श्री सुरेन्द्र नाथ तिवारी की टिप्पणी आई, प्रवक्ता के लिए यह सौभाग्य की बात है। हम यहां उनकी टिप्पणी को अलग से प्रकाशित कर रहे हैं (सं.) :
आदरणीय मधु भाई,
सादर नमस्कार।
प्रवक्ता डॉट कॉम में आपके आलेख पढ़ता रहा हूं। ”खिचड़ी भाषा अंग्रेजी” तथा शब्द-वृक्ष” बड़े ही चिन्तनपरक और प्रेरणाप्रद आलेख हैं। इनके अतिरिक्त भी आपकी कई रचनाएं मैंने पढ़ी है। आपकी प्राय: सभी रचनाएं ऐसी ही शोधपरक और प्रेरणाप्रद हैं। आपके बहु-भाषा ज्ञान तथा आपकी विद्वता से उद्भूत ये आलेख पठनीय ही नहीं अपितु चिंतनीय भी हैं। ऐसी बेबाक और सारगर्भित रचनाओं के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें।
आपसे कुछ वर्षों पूर्व हुई एक बातचीत में आपने कहा था कि आप वे सारे तर्क संकलित कर रहे हैं जो हिंदी को बढ़ावा नहीं देने के लिए भारत का तथाकथित संभ्रान्त और अधिकारी वर्ग दिया करता है; जैसे सारी दुनिया अंग्रेजी बोलती है तो हिंदी की क्या आवश्यकता है, आदि, आदि। और आप इन सारे मूर्खतापूर्ण तर्कों के जवाब में शोधपरक तर्क, एक पुस्तक के रूप में, प्रस्तुत करने वाले थे। आशा है आपका वह प्रयास चल रहा होगा। यह एक अनुपम प्रयास होगा और इससे उन सारे प्रयत्नों को बल मिलेगा जो हिंदीहित में किए जा रहे हैं।
आपकी लेखनी, आपका चिन्तन, यूं ही चलता रहे, ताकि हम जैसों को आपके शोध और आपकी विद्वता का प्रसाद तथा प्रेरणा मिलती रहे।
भवदीय,
(सुरेन्द्र नाथ तिवारी)
(टिप्पणीकार अन्तरराष्ट्रीय हिंदी समिति, अमेरिका के अध्यक्ष रहे हैं)
अपनी माँ भाषा भारती की सेवा, प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है, धर्म है; उस भाषा भारती के गौरव को ही स्वीकार कर सकता हूँ|
तेरा वैभव अमर रहे माँ,
हम दिन चार रहे न रहें|
महा मंगले पुण्य भूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते|
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सुरेन्द्रनाथ तिवारी जी की अपेक्षाएं पूर्ण करने के लिए भी इश्वर क्षमता दें –यही मेरी प्रार्थना है|
वास्तव में तिवारी जी स्वयं एक सिद्ध हस्त कवि हैं| आप की “उठो पार्थ गांडीव चढाओ” और अन्य रचनाओं को, प्रवक्ता में प्रकाशित करवाने की इच्छा रोक नहीं नहीं सकता| अतः अनुरोध|
साथ अंतर राष्ट्रीय हिंदी समिति के सदस्यों में “प्रवक्ता” का प्रचार हिंदी हित में हो, यह अभिलाषा|
संजीव जी कृतज्ञता सहित धन्यवाद|
सम्पादक का कठिन काम आप निर्वाह कर रहें हैं| मैं तो अनुमान ही कर सकता हूँ|
उनके कमेन्ट को ही मेरा भी कमेन्ट समझा जाये