राजनीति

सुशील कुमार शिन्दे के कहने का अर्थ –

shindeडा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

दिल्ली विश्वविद्यालय के अति प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में श्रीराम वाणिज्य महाविद्यालय का नाम गिना जाता है । समय समय पर यह संस्थान अपने क्षेत्र में स्थापित व्यक्तियों को अपने यहां निमंत्रित करता है ताकि छात्रों के साथ सार्थक संवाद किया जा सके । राजनीति से जुड़े लोगों को इस प्रकार के संवाद के लिये प्राय कम ही आमंत्रित किया जाता है । वैसे भी निमंत्रित किये जाने का काम प्रबन्धन की इच्छा पर निर्भर नहीं होता , उसके लिये छात्रों की राय ली जाती है और उसके आधार पर चयनित व्यक्तियों को ही निमंत्रित किया जाता है । बहुत से लोगों को तब आश्चर्य हुआ जब इस संस्थान के विद्यार्थियों ने भीतरी बहुमत से यह निर्णय किया कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बार संवाद के लिये निमंत्रित किया जाये । ऐसा भी कहा जाता है कि प्रस्तावित आमंत्रितों की सूची में रतन टाटा से लेकर राहुल गान्धी तक के नाम शामिल थे , लेकिन सबसे ज्यादा छात्र मोदी को बुलाने के पक्ष में निकले । लेकिन ज़्यादा हड़कम्प तो वाममार्गी खेमे में पैदा हुआ । इस खेमे का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी या इस परिवार से जुड़े लोग रूढ़ियों, मज़हब इत्यादि विषयों पर तो बातचीत करने के लिये व राय देने के लिये सक्षम माने जा सकते हैं लेकिन अन्य बौद्धिक क्षेत्रों में वे अपना आनुवांशिक अधिकार मानते हैं । इसी अधिकार के नाते वे अपने लिये प्रगतिवादी तख्खलुस का इस्तेमाल करते हैं । वाम खेमे के लिये राष्ट्रवाद ज़हर के समान है और भाजपा व संघ परिवार , उनके अनुसार , इसी ज़हर से भारतीय समाज को बाँट रहा है । इसलिये कामरेड भाजपा को पंजाबी में ” पिछांहखिच्चू” कहते हैं , जिसका अर्थ है सदा पीछे की ओर ही देखते रहने वाली पार्टी । हिन्दी में इसके लिये कौन सा शब्द इस्तेमाल हो सकता है , फ़िलहाल मेरे ध्यान में नहीं आ रहा । हां, पुरातनपंथी । श्रीराम महाविद्यालय को तो कामरेड भी पीछे की ओर देखने वाला नहीं कह सकते । वहाँ के विद्यार्थियों का तो काम ही आगे की ओर देखने से चलता है , पीछे की ओर देखने से नहीं । कामरेडों के लिये सचमुच यह इज़्ज़त का सवाल बन गया । बौद्धिक जगत में भाजपा की घुसपैठ ! श्रीराम कालिज में नरेन्द्र मोदी ! ऐसे मौक़े पर कामरेड के पास एक ही हथियार होता है । वह अपने झोले में से दस पन्द्रह अलग अलग संस्थाओं के नाम से छापे गये लैटरहैड निकालता है । संस्थाएँ अलग अलग नाम की ज़रुर होती हैं , लेकिन उन पर नाम उन्हीं दस लोगों के बदल बदल कर डाले जाते हैं । तब कामरेड विराट विरोध प्रदर्शन की चेतावनी जारी कर देता है । साम्राज्यवादी चेतना के ख़िलाफ़ लड़ने की कसमें खाने वाले वाममार्गियों के इस तथाकथित विराट प्रदर्शन की तूती की आवाज़ को नगाड़ा बनाने में साम्राज्यवादी चेतना के सबसे बड़े समर्थक अंग्रेज़ी के कुछ “राष्ट्रीय” अख़बार जुट जाते हैं । ये अखवार भी जानते हैं कि इस विराट प्रदर्शन में बीस से ज़्यादा लोग जुटने वाले नहीं हैं । लेकिन उनकी साम्राज्यवादी चेतना व वाममार्गी चेतना का घालमेल उन्हें इस मार्ग पर खींचे रहता है ।

वाममार्गियों ने दिल्ली विश्वविद्यालय को भी अपने इसी गुरिल्ला युद्ध तकनीक से डराना चाहा । भीतर भीतर से कांग्रेस भी इस लड़ाई में कामरेडों को कुमुद पहुँचा ही रही थी । उनका अपना घाव था । किसी को बुलाना था तो युवराज राहुल गान्धी को बुलाते । ख़ैर विरोध के इस वाममार्गी नाटक के बाबजूद नरेन्द्र मोदी श्रीराम कालिजों पहुँचे और उन्होंने वहाँ जो कुछ कहा वह कामरेडों की निराशा को और घनीभूत कर गया । मोदी भविष्य के भारत की बात कर रहे थे और देश के भविष्य को लेकर रोज़ मर्सिया पढ़ने वालों को ललकार रहे थे । सबसे बड़ी बात , वे किसी का लिखा पढ़ कर नहीं सुना रहे थे बल्कि वे दिल से बोल रहे थे । यही कारण था कि उनकी बातें श्रोताओं के मन को छू रही थीं । वे अपने अनुभव के आधार पर बोल रहे थे । वे स्वयं अपना बखान नहीं कर रहे थे , बल्कि देश की युवा शक्ति की छुपी हुई ताक़त का बखान कर रहे थे । यह दिल से दिल का संवाद था , इसीलिये देश की भावी पीढ़ी को नई उर्जा दे रहा था । सोने पर सुहागा यह कि मोदी देश की युवा पीढ़ी को देश की भाषा में ही सम्बोधित कर रहे थे । कामरेड , है न बड़ी बात ! राष्ट्र के भविष्य की बात राष्ट्र की भाषा में ही हो रही थी ।

दरअसल सोनिया कांग्रेस व वाममार्गी टोली ,जो रोज नरेन्द्र मोदी का विरोध कर रही है , उसका कारण उनके भीतर पैठ रही असुरक्षा की भावना है । उनको लगता है यदि इस बार भाजपा सत्ता में आती है तो वह गुजरात की तरह लम्बी देर कर सत्ता में रह सकती है । भाजपा के लम्बी देर तक सत्ता में रहने का अर्थ होगा कांग्रेस और कामरेडों की देश व समाज को विभाजित करने वाली राजनीति का अन्त । क्योंकि ये दोनों राजनैतिक समूह किसी जनाधार के बलबूते नहीं बल्कि प्रबन्धन के आधार पर सत्ता में भागीदारी करते हैं । इसी के चलते प्रशासन व राजनीति भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गई है । इसलिये ये सभी लोग मोदी को किसी न किसी तरह घेरने में लगे रहते हैं । कामरेड, निकालो माओ की लाल किताब , ऐसे संकट काल के लिये वे भी कोई युक्ति सुझा गये होंगे ? नहीं तो मुसोलिनी के पुराने ग्रन्थों को खंगाल डालो ।” श्रीराम” के आगे विरोध से तो जनता आप से और कट जायेगी ।