अंधकार की नहीं चलेगी

sunमां बोली सूरज से बेटे,सुबह हुई तुम अब तक सोये|

देख रही हूं कई दिनों से,रहते हो तुम खोये खोये|

जब जाते हो सुबह काम पर,डरे डरे से तुम रहते हो|

क्या है बोलो कष्ट तुम्हें प्रिय,साफ साफ क्यों रहते हो|

सूरज बोला सुबह सुबह ही, कोहरा मुझे ढांप लेता है|

निकल सकूं कैसे चंगुल से,कोई नहीं साथ देता है|

मां बोली हे पुत्र तुम्हारा ,कोहरा कब है क्या कर पाया|

उसके झूठे चक्रव्यूह को ,काट सदा तू बाहर आया|

कवि कोविद बच्चे बूढ़े तक, लेते सदा नाम हैं तेरा|

कहते हैं सूरज आया तो, भाग गया है दूर अंधॆरा|

निश्चित होकर कूद जंग में,विजय सदा तेरी ही होगी|

तेरे आगे अंधकार या ,कोहरे की न कभी चलेगी|

 

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

1 COMMENT

  1. सुन्दर सादगी से भरी कविता के लियें कवि को बधाई।

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