स्वामी विवेकानंद : भारत का कोहिनूर

ओ मेरे बहादुरों इस सोच को अपने दिल से निकाल दो की तुम कमजोर हो.तुम्हारी आत्मा अमर,पवित्र और सनातन है.तुम केवल एक विषय नहीं हो, तुम केवल एक शरीर मात्र नहीं हो.

ये कथन है महान चमत्कारिक विभूति स्वामी विवेकानंद का . स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन के संस्थापक थे. उन्होंने वेदांत और योग जैसे भारतीय तत्वज्ञान को यूरोप और अमेरिका में फैलाया. विवेकानंद को आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म के उद्धार के लिए एक बड़ी शक्ति के रूप में जाना जाता है.

जवाहर लाल नेहरु ने ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में लिखा है,

विवेकानंद दबे हुए और उत्साहहीन हिन्दू मानस में एक टानिक बनकर आये और उसके भूतकाल में से उसे आत्मसम्मान व अपनी जड़ों का बोध कराया.

11 सितम्बर 1893 को शिकागो में हुए धर्म संसद में दिए गए छोटे से भाषण ने ही दुनिया को विवेकानंद के प्रति आकर्षित किया.

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था. उनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था.सब उन्हें नरेन्द्र कहकर बुलाते थे.उनके पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय के प्रतिनिधि थे. उनकी माता शिवभक्त थीं.नरेन्द्र के विचार अपने पिता के विवेकी स्वाभाव और माता के धार्मिक स्वाभाव से प्रेरित थे. उनको बचपन से ही ध्यान और समाधी का अभ्यास था. उन्होंने किसी भी बात को बिना ठोस कबूलने से मना किया. रीति रिवाजों और जात पात को भी वे नकार चुके थे.

नरेन्द्र का परिवार 1877 में दो वर्ष के लिए रायपुर आ गया.यहाँ वे अक्सर अपने पिता से धार्मिक विषयों पर चर्चा करते थे.इन दो वर्षों में ही उनके मन में भगवान को जानने की इच्छा भी तीव्र हुई.ये वर्ष उनके जीवन के बदलाव के वर्ष साबित हुए. रायपुर को विवेकानंद की धार्मिक जन्मभूमि भी कहा जाता है.1884 में उन्होंने बी.ए. की डिग्री हासिल की. वे 5 वर्षों तक रामकृष्ण परमहंस के साथ रहे उन्होंने नरेन्द्र को अशांत,व्याकुल और अधीर व्यक्ति से एक शांत और आनंद मूर्ति में बदल दिया. जिसे ईश्वर के सत्य रूप का ज्ञान हो. 1886 में रामकृष्ण की मृत्यु(महासमाधि) हो गई.

1888 से 1892 तक स्वामी विवेकानंद भारत के अलग-अलग भागों में घूमते रहे और 31 मई 1893 में शिकागो के लिए रवाना हो गए. जापानियों को उन्होंने दुनिया का सबसे साफ़ सुथरा व्यक्ति बताया.11 सितम्बर को शिकागो के कला केंद्र में धर्म संसद प्रारंभ हुई. जब विवेकानंद की बोलने की बारी आई तो उन्होंने माँ सरस्वती का स्मरण करते हुए अपना भाषण शुरू किया. उन्होंने भाषण की शुरुआत ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ के संबोधन शुरू की. ये शब्द बोलते ही 2 मिनट तक 7 हजार लोग उनके लिए तालियाँ बजाते रहे.पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया था.

विवेकानंद ने कहा – मुझे उस धर्म से सम्बंधित होने  का गर्व है जिसने विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता का पाठ  पढाया.

उन्होंने भगवद्गीता की कुछ पंक्तियाँ पढ़ते हुआ कहा

भाइयों मैं  आपके सामने कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत  कर रहा हूँ जिसको मैं अपने बचपन से  दोहराता आया हूँ और जिसे करोड़ों भारतीय प्रतिदिन दोहराते हैं  जैसे विभिन्न  स्रोतों से उद्भूत विभिन्न धाराएँ अपना जल सागर में विलीन कर देती हैं  वैसे ही हे ईश्वर! विभिन्न प्रवित्तियों के चलते जो भिन्न मार्ग मनुष्य  अपनाते हैं, वे भिन्न प्रतीत होने पर भी सीधे या अन्यथा तुझ तक ही जाते  हैं.

उनके छोटे से भाषण ने ही संसद की आत्मा को हिला दिया. चारों तरफ विवेकानंद  की प्रशंसा होने लगी. अमेरिकी अख़बारों ने विवेकानंद को “धर्म संसद” की सबसे  बड़ी हस्ती के रूप में सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति बताया.  उन्होंने  संसद में कई बार हिन्दू धर्म और बौध मत पर व्याख्यान दिया.27  सितम्बर  1893  को संसद समाप्त हो गई. इसके बाद वे दो वर्षों तक पूर्वी और मध्य  अमेरिका, बोस्टन, शिकागो, न्यूयार्क, आदि जगहों पर उपदेश देते रहे. 1895  और  1896  में उन्होंने अमेरिका और इंग्लैंड में उपदेश दिए.

1897  में वे भारत वापस आ गए और उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की  स्थापना की. ये उनकी शिक्षा, संस्कृति, चिकित्सा और राहत कार्य द्वारा  धार्मिक सामाजिक आन्दोलन की शुरुआत थी. उसके बाद उन्होंने लोगों के उद्धार  के लिए अनेक कार्य किए.वे चारों और सिष का दीप जलाते रहे. उनके अनुसार हर  आत्मा पवित्र है. हमारा लक्ष्य बाहरी और भीतरी रूप से इस आत्मा कि पवित्रता  को बनाये रखना है.विवेकानंद के अनुसार, सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा जो उन्होंने  अपने गुरु से ग्रहण कि हर व्यक्ति भगवन का रूप है, किसी गरीब और  जरुरतमंद की सेवा भगवन की सेवा के समान है.

स्वामी विवेकानंद लगातार काम  करने के चलते बीमार होते जा रहे थे.  उन्हें अनेक बीमारियों ने घेर लिया था.  04 जुलाई 1902 के दिन स्वामी विवेकानंद चिर समाधी में लीन हो गए. इस विश्व  को प्रकाश देकर अपना शरीर छोड़ देने के बाद वे स्थायी प्रकाशपुंज बन गए  जिससे पूरी दुनिया हमेशा प्रकाशित होती रहेगी.

दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग उनसे प्रभावित हुए और आज भी उनसे प्रेरणा  प्राप्त कर रहे हैं. सी राजगोपालाचारी के अनुसार  “स्वामी विवेकानंद ने  हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा की”. सुभाष चन्द्र बोस के कहा  “विवेकानंद  आधुनिक भारत के निर्माता हैं”. महात्मा गाँधी मानते थे कि विवेकानंद ने  उनके देशप्रेम को हजार गुना कर दिया.

स्वामी विवेकानंद ने खुद को एक भारत के लिए कीमती और चमकता हीरा साबित किया  है. उनके योगदान के लिए उन्हें युगों और पीढियों तक याद किया जायेगा. 

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,239 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress