स्वरचित दोहे

मरा मरा का जाप कर, डाकू बना महान।

राम राम मैँ नित जपूँ , कब होगा कल्यान।

रक्षक ही भक्षक बने, खीँच रहे हैँ खाल।

हे प्रभु! मेरे देश का, बाँका हो ना बाल।

आरक्षण के दैत्य ने, प्रतिभा निगली हाय।

देश रसातल जा रहा, अब तो दैव बचाय।

बेरोजगारी बढ. रही, जनसंख्या के साथ।

बीसियोँ पेट भर रहे, केवल दो ही हाथ।

भाईचारा मिट गया, आया कैसा दौर।

एक भाई छीन रहा, दूजे मुँह से कौर।

सोनचिरैया देश यह, था जग का सिरमौर।

महकाती सारा जहां, कहाँ गयी वह बौर।

यह सभ्यता! यह संस्कृति! यह वाणी! यह वेश!

कुछ भी तो अपना नहीँ, बचा नाम बस शेष!

पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैँ पाप।

प्रायश्चित का वारि तब, धोता उनकी छाप।

मुँह से निकली बात के, लग जाते हैँ पैर।

बात बतंगड. गर बने, बढ. जाते हैँ बैर।

माया महा पिशाचिनी, डाले मोहक जाल।

आकर्षण मेँ जो फँसे, होता है बेहाल।

डॉ. सीमा अग्रवाल

असिस्टेँट प्रोफेसर हिँदी विभाग

गोकुलदास हिँदू गल्स कालेज , मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,675 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress