गजल अज्ञान में जग भासता ! July 3, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on अज्ञान में जग भासता ! अज्ञान में जग भासता, अणु -ध्यान से भव भागता; हर घड़ी जाता बदलता, हर कड़ी लगता निखरता ! निर्भर सभी द्रष्टि रहा, निर्झर सरिस द्रष्टा बहा; पल पल बदल देखे रहा, था द्रश्य भी बदला रहा ! ना सत रहा जीवन सतत, ना असत था बिन प्रयोजन; अस्तित्व सब चित से सृजित, हैं सृष्ट सब […] Read more » अज्ञान में जग भासता