कविता कलियुग April 17, 2021 / April 17, 2021 by प्रभात पाण्डेय | Leave a Comment सब खेल विधाता रचता हैस्वीकार नहीं मन करता हैबड़ों बड़ों का रक्षक कलियुगयहां लूट पाट सब चलता है ||जो जितना अधिक महकता हैउतना ही मसला जाता हैचाहे जितना भी ज्ञानी हो ,कंचन पाकर पगला जाता हैचोरी ही रोजगार है जहाँअच्छा बिन मेहनत के मिलता हैबड़ों बड़ों का रक्षक कलियुगयहां लूट पाट सब चलता है ||हर […] Read more » कलियुग
समाज कलियुग, मानव और व्यवस्था April 4, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment ऐसा नही है कि समाज में व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य ही ऐसा होता है। आज की सारी व्यवस्था ही इसमें लिप्त है। जब धर्म को खुलेआम सडक़ों पर बेचा जा रहा हो, तब न्याय की अपेक्षा व्यवस्था से नही की जा सकती। अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र और राज्य सरकारों को फटकार लगायी है कि केन्द्र और प्रांतों की सरकारें समय पर सरकारी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण करने वालों पर कठोर कार्यवाही नही करातीं। जबकि बहुत से धार्मिक स्थलों को लोग जानबूझकर सार्वजनिक मार्गों में बना लेते हैं। Read more » Featured कलियुग कलियुग और मानव व्यवस्था मानव और व्यवस्था