कविता कहीं से काले बादल आही जाते हैं August 17, 2013 by बीनू भटनागर | 4 Comments on कहीं से काले बादल आही जाते हैं तेज़ चमकती धूप मे कहीं से, उमड़ धुमड़ कर काले बादल, आ ही जाते हैं। जैसे शांत मन मे अचानक, नकारात्मक संवेग कभी भी, छा ही जाते हैं। अंतर्मन पर धुंध सी छाने लगती है, जो वेदना का धुंआ सा बन जाती है। ये ज़हरीला धुंआ भीतर ही भीतर फैलता है…. धुटन ही धुटन देता […] Read more » कहीं से काले बादल आही जाते हैं