कविता
काश कि तुम विषपायी होते शिव के जैसे
/ by विनय कुमार'विनायक'
—विनय कुमार विनायककल तक जो पानीपी-पीकरकोस रहे थेदलित आदिवासी पिछडे़जन कोमत दो,शिक्षा और नौकरी में आरक्षण,वही आजआरक्षण का अमृत पान कर चुप क्यों हैं? काश कि तुम विषपायीहोते शिव के जैसे,एक शिव हीहैं जो बिना वर्ण-जाति विचारेसबको वरदान देते, खुद कालकूटपी लेते,सबको अमृत पिलाने वाले, खुद नहीं पीते! आरक्षण तबतक बुरा जबतकनहीं मिला,आरक्षण नहीं, आरक्षित […]
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