समाज कुरीतियों से लड़ते जीत गई ‘माँ’ December 10, 2018 / December 10, 2018 by अनिल अनूप | Leave a Comment अनिल अनूप एक बार जब मेरी मां कोलकाता से मुंबई मुझसे मिलने आयी, तो उन्होंने मुझसे पूछा, ‘ये कंप्यूटर-इंटरनेट पर कितने सारे लोगों की तस्वीरें आती हैं, तूने मेरी फोटो क्यों नहीं लगाई?’उन्हें लगा कि मैंने उनसे शर्मिंदा होकर उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर नहीं की है, लेकिन मैंने इस बारे में कभी सोचा […] Read more » (समाज की भाषा कंप्यूटर-इंटरनेट कुरीतियों से लड़ते जीत गई ‘माँ’ घुँघरू तबला बाजा
कविता रक्तिम – भँवर July 24, 2018 / July 24, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment रक्तिम – भँवर आलोक पाण्डेय भर – भर आँसू से आँखें , क्या सोच रहे मधुप ह्रदय स्पर्श , क्या सोच रहे काँटों का काठिन्य , या किसी स्फूट कलियों का हर्ष ? मन्द हसित , स्वर्ण पराग सी , विरह में प्रिय का प्रिय आह्वान , या सोच रहे किस- क्रुर प्रहार से छुटा […] Read more » उर निकुंज कुंकुम कुसुम - कलेवर घुँघरू प्रणय के आस बिन्दी रक्तिम - भँवर रोली विलुलित आँचल सब कुछ डूब भँवर जाने दो ; सान्ध्य-रश्मियों का विहार
गजल जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है June 7, 2011 / December 11, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है। सुबह और होती है शाम कुछ और गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है। कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ कभी कोई भी सजा दिला देती है। चादर ओढ़ लेती है आशनाई की हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है। चलते […] Read more » life घुँघरू जिंदगी