दोहे झरने की हर झरती झलकी! October 7, 2020 / October 7, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment झरने की हर झरती झलकी,पुलकी ललकी चहकी किलकी;थिरकी महकी कबहुक छलकी,क्षणिका की कूक सुनी कुहकी! कब रुक पायी कब देख सकी,रुख़ दुख सुख अपना भाँप सकी;बहती आई दरिया धायी,बन दृश्य विवश धरिणी भायी! कब पात्र बनी किसकी करनी,झकझोर बहाया कौन किया;कारण था कौन क्रिया किसकी,सरका चुपके मग कौन दिया! प्रतिपादन आयोजन किसका,क्या सूत्रधार स्वर सूक्ष्म […] Read more » झरने की हर झरती झलकी!