कविता
मैं देवदार का घना जंगल
/ by अरुण तिवारी
अरुण तिवारी मैं देवदार का घना जंगल, गंगोत्री के द्वार ठाड़ा, शिवजटा सा गुंथा निर्मल गंग की इक धार देकर, धरा को श्रृंगार देकर, जय बोलता उत्तरांचल की, चाहता सबका मैं मंगल, मैं देवदार का घना जंगल…. बहुत लंबा और ऊंचा, हिमाद्रि से बहुत नीचा, हरीतिमा पुचकार बनकर, खींचता हूं नीलिमा को, मैं धरा के […]
Read more »