कविता कहाँ ये वादियाँ सदा होंगी ! November 1, 2018 / November 1, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८१०३० अ) कहाँ ये वादियाँ सदा होंगी, कहाँ आबादियाँ दर्श देंगी; कहाँ मिलने को कोई आएँगे, कहाँ हँस चीख़ चहक पाएँगे ! करेंगे इंतज़ार कौन वहाँ, टकटकी लगा कौन देखेंगे; आने वाले न वैसे सुर होंगे, तरंग और वे रहे होंगे ! भाव धाराएँ अलहदा होंगी, थकावट उड़ानों की मन होगी; तरावट हवाओं की […] Read more » आंखों उड़ानों कहाँ ये वादियाँ सदा होंगी ! नेत्रों