कविता पीड़ा August 19, 2014 by बीनू भटनागर | 1 Comment on पीड़ा -बीनू भटनागर- पीड़ा के खोल कर द्वार, बहने दो अंसुवन की धार। धैर्य के जब खुल गये बांध, पीड़ा ही पीड़ा रैन विहान। पीड़ा तन की हो या मन की, सुध ना रहती किसीभी पलकी। पीड़ा सहने की शक्ति भी, पीड़ा ही लेकर आती है, पीड़ा बिना कहे आ जाती, जाने को है बहुत सताती। […] Read more » पीड़ा हिन्दी कविता