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बर्लिन अकादमी:*आदर्श-भाषा-स्पर्धा-(१७९४)* का इतिहास

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भाषा, उसके प्रयोगकर्ताओं की मानसिकता का दर्पण होता है। उस में, उस भाषा के प्रयोग-कर्ताओं का, बौद्धिक एवं नैतिक सार व्यक्त होता है। संक्षेप में, जंगली भाषाएं स्थूल और रूक्ष, होती हैं; और सभ्य भाषाएँ कोमल, और परिमार्जित होती है। (२)आगे कहता है, *क्षण-विशेष की माँग के अनुरूप अर्थ व्यक्त करने की क्षमता भाषा में होनी चाहिए। * उसी प्रकार *सूक्ष्म भाव एवं विचारों को भी अभिव्यक्त करे ऐसी भाषा ही आदर्श भाषा का पद प्राप्त कर सकती है।* (३) येनिश भाषा के चार गुण गिनाता है।

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