कविता
खोया है गाँव मेरा !
by डॉ. मधुसूदन
डॉ. मधुसूदन (१) सीढीपर बैठा बालवृन्द, मस्ती से,आवाजाही निरखता हो. बरखा की शीतल खुशी, हथेली पर झेलता हो. —मिल जाएँ ऐसा गाँव, तो लौटाना ना भूलना, मेरा गाँव कहीं खोया है. (२) जहाँ घडी नहीं, पर पेडों की, छाया से,समय नापा जाता हो. और छाया न हो तो,समय भी ठिठक कर रुक जाता हो. —जी […]
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