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धर्म-अध्यात्म

मनुष्य जीवन का उद्देश्य

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मनुष्य जीवन का उद्देश्य संसारस्थ ईश्वर, जीव व प्रकृति के स्वरूप को यथार्थतः जानना है। ईश्वर को जानकर ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करनी है। भौतिक सुखों का त्यागपूर्वक उपभोग करना है। परसेवा, परोपकार, सत्पात्रों को दान, ब्रह्म ज्ञान वा वेदप्रचार, यज्ञ व अग्निहोत्र कर्मों को करना कर्तव्य है। दान के लिए सत्पात्रों का चयन अति कठिन व दुष्कर कार्य है। ऋषियों ने जो पंचमहायज्ञों का विधान किया है उसे जानकर सब मनुष्यों को श्रद्धापूर्वक करना है। यह सब करने के लिए वेदाध्ययन व विद्वानों की संगति आवश्यक है। यदि करेंगे तो मिथ्या आचरण से बच सकते हैं अन्यथा काम, क्रोध व लोभ आदि से ग्रस्त व त्रस्त हो सकते हैं। इन पर नियंत्रण पाने के लिए सन्ध्या व यज्ञ सहित सभी वैदिक विधानों को करना है। तभी हम सभी बुराईयों से बच सकते हैं। महर्षि दयानन्द व उनके बाद के प्रमुख आर्य विद्वान नेताओं के जीवनों का अनुकरण कर भी हम अपने जीवन को श्रेय मार्ग पर चला सकते हैं।

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