आलोचना रामचरितमानस की काव्यभाषा में रस का विवेचन June 9, 2010 / December 23, 2011 by वंदना शर्मा | 5 Comments on रामचरितमानस की काव्यभाषा में रस का विवेचन -वंदना शर्मा कविता भाषा की एक विधा है और यह एक विशिष्ट संरचना अर्थात् शब्दार्थ का विशिष्ट प्रयोग है। यह (काव्यभाषा) सर्जनात्मक एक सार्थक व्यवस्था होती है जिसके माध्यम से रचनाकार की संवदेना, अनुभव तथा भाव साहित्यिक स्वरूप निर्मित करने में कथ्य व रूप का विषिष्ट योग रहता है। अत: इन दोनों तत्त्वों का महत्त्व […] Read more » Ramcharitmanas रामचरितमानस
आलोचना कार्ल मार्क्स के बहाने रामचरित मानस की यात्रा April 27, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 4 Comments on कार्ल मार्क्स के बहाने रामचरित मानस की यात्रा मार्क्सवादी नजरिए से प्राचीन साहित्य की यह सार्वभौम विशेषता है कि इसमें मनुष्य के उच्चतर गुणों का सबसे सुंदर वर्णन मिलता है। उच्चतर गुणों के साथ ही साथ मानवीय धूर्तताओं, कांइयापन और वैचारिक कट्टरता के भी दर्शन होते हैं। देवता की सत्ता के बारे में विविधतापूर्ण अभिव्यक्ति मिलती है। प्राचीन साहित्य की महान् कालजयी रचनाएं […] Read more » Karl Marx कार्ल मार्क्स रामचरितमानस
आलोचना मूल्यांकन के पोंगापंथी मॉडल के परे हैं तुलसीदास April 24, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on मूल्यांकन के पोंगापंथी मॉडल के परे हैं तुलसीदास परंपरा और इतिहास के नाम पर हिन्दी का समूचे विमर्श के केन्द्र में तुलसीदास के मानस को आचार्य शुक्ल ने और कबीर को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आधार बनाया। सवाल किया जाना चाहिए कि क्या दलित-स्त्री-अल्पसंख्यकों के बिना धर्मनिरपेक्ष आलोचना संभव है? कबीर के नाम पर द्विवेदीजी की आलोचना दलित साहित्य को साहित्य में […] Read more » Ramcharitmanas तुलसीदास रामचरितमानस
आलोचना रामचरितमानस के नए पैराडाइम की तलाश में April 23, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment रामचरितमानस लोक-महाकाव्य है। इसके उपयोग और दुरूपयोग की अनंत संभावनाए हैं।लोक-महाकाव्य एकायामी नहीं बल्कि बहुआयामी होता है, इसमें एक नहीं एकाधिक विचारधाराएं होती हैं। इसका पाठ संपूर्ण और बंद होता है किंतु अर्थ-संरचनाएं खुली होती हैं, इसके पाठ की स्वायत्तता पाठ की व्याख्या की समस्त धारणाओं के लिए आज भी चुनौती बनी हुई है। लोक-महाकाव्य […] Read more » Ramcharitmanas रामचरितमानस
धर्म-अध्यात्म रामचरितमानस में लोक मंगल की कामना – राजीव मिश्र February 19, 2010 / December 24, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on रामचरितमानस में लोक मंगल की कामना – राजीव मिश्र राम की कथा गोस्वामी तुलसीदास से पहले देववाणी संस्कृत में ही लिखीर् गई थी और जन साधारण के लिए यह केवल ‘श्रवणीय’ थी क्योंकि वह भाषा जिसमें रामकथा लिखि गयी थी, उसके लिए सहज ग्राह्य नहीं थी और भाषा की क्लिष्टता के कारण उसकी पठनीयता बाधित थी। बड़े ही साहस के साथ गोस्वामी तुलसीदास ने […] Read more » Ramcharitmanas रामचरितमानस