कविता कर के वे प्रगति अग्रगति आत्म कब लिये ! October 18, 2018 / October 18, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on कर के वे प्रगति अग्रगति आत्म कब लिये ! कर के वे प्रगति अग्रगति, आत्म कब लिये; उर लोक की कला के दर्श, कहाँ हैं किये ! वे अग्रबुद्ध्या मन की झलक, पलक कब रचे; नेत्रों से मन्त्र छिड़के कहाँ, विश्वमय हुए ! है द्रष्ट कहाँ इष्ट भाव, भास्वरी भुवन; कण-कण की माधुरी का रास, भाया कब नयन ! कर के सकाश चिदाकाश, चूर्ण […] Read more » ‘मधु’ घृत पियें जिए भाया कब नयन रास