कविता वरूण ने बिछाया श्वेत जाल April 2, 2017 by डॉ. मधुसूदन | 7 Comments on वरूण ने बिछाया श्वेत जाल डॉ. मधुसूदन बाहर था हिमपात निरंतर, उदास मन,बैठा था घरपर, पढी आप की काव्य पंक्तियाँ। उडा ले गयींं कहीं पंखों पर। अचरज अचरज अपलक अपलक पल में हिम भी रुई बन गया। और रुई का फूल हो गया। श्वेत पँखुडियाँ होती झर-झर॥ अब,श्वेत पँखुडियाँ झरती बाहर। शीतकाल,बसंत बन गया॥ “आ गया ऋतुराज बसन्त मधुऋतु लाई […] Read more » वरूण ने बिछाया श्वेत जाल