कविता साहित्य वाल बहु व्यस्त जगत विच रहता ! January 30, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment वाल बहु व्यस्त जगत विच रहता, निरीक्षण करना बहुत कुछ होता; जाना पहचाना पुरातन होता, परीक्षण करना पुन: पर होता ! समय से बदलता विश्व रहता, द्रष्टा भी वैसा ही कहाँ रहता; द्रष्टि हर जन्म ही नई होती, कर्म गति अलहदा सदा रहती ! बदल परिप्रेक्ष्य पात्र पट जाते, रिश्ते नाते भी हैं सब उलट […] Read more » वाल बहु व्यस्त जगत विच रहता !