धर्म-अध्यात्म शख्सियत स्वामी श्रद्धानन्द का पावन चमत्कारिक व्यक्तित्व November 28, 2015 / November 28, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य स्वामी श्रद्धानन्द (1856-1926), पूर्वनाम महात्मा मुंशीराम, महर्षि दयानन्द के प्रमुख शिष्यों में से एक थे जिन्हें अपने धर्मगुरू के शिक्षा सम्बन्धी स्वप्नों को साकार करने के लिए हरिद्वार के निकटवर्ती कांगड़ी ग्राम में आर्ष संस्कृत व्याकरण और समग्र वैदिक साहित्य के अध्ययनार्थ गुरूकुल खोलने का सौभाग्य प्राप्त है। आर्यसमाज के इतिहास में […] Read more » Featured स्वामी श्रद्धानन्द
धर्म-अध्यात्म जन्मना जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था और स्वामी श्रद्धानन्द May 1, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment स्वामी श्रद्धानन्द महर्षि दयानन्द के अनुयायी, आर्य समाज के नेता, प्राचीन वैदिक शिक्षा गुरूकुल प्रणाली के पुनरुद्धारक, स्वतन्त्रता संग्राम के अजेय सेनानी, अखिल भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा के प्रधान थे। हिन्दू जाति को संगठित एवं शक्तिशाली बनाने के लिए आपने एक पुस्तक ‘हिन्दू संगठन – क्यों और कैसे?’ का प्रणयन किया था। यह पुस्तक प्रथववार […] Read more » Featured जन्मना जाति व्यवस्था वर्ण व्यवस्था स्वामी श्रद्धानन्द
धर्म-अध्यात्म गुरूकुल प्रणाली November 30, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment ‘ महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द और गुरूकुल प्रणाली’ महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) आर्य समाज के संस्थापक हैं। आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल, 1875 को मुम्बई के काकडवाड़ी स्थान पर हुई थी। इसी स्थान पर संसार का सबसे पुराना आर्य समाज आज भी स्थित है। आर्य समाज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य वेदों का प्रचार […] Read more » importance of gurukul system in spread of knowledge गुरूकुल प्रणाली’ महर्षि दयानन्द सरस्वती स्वामी श्रद्धानन्द
लेख हनुमान बने श्रद्धानन्द December 26, 2011 / July 5, 2012 by विनोद बंसल | 1 Comment on हनुमान बने श्रद्धानन्द विनोद बंसल उन महापुरुषों में से एक थे जिनका जन्म ऊंचे कुल में होने के बावजूद प्रारंभिक जीवन की बुरी लतों के कारण बहुत ही निक्रस्ट किस्म का था। मुंशी राम से स्वामी श्रद्धानन्द तक का सफ़र पूरे विश्व के लिए प्रेरणा दायी है। स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई एक भेंट तथा पत्नि के पातिव्रत […] Read more » swami shraddhanand स्वामी श्रद्धानन्द हनुमान बने श्रद्धानन्द