कविता हर हुस्न का जो जश्न था April 12, 2015 / April 12, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हर हुस्न का जो जश्न था, एक रोशनी में ढ़ल गया; हर अहं का जो बहम था, परमात्म में मिल घुल गया । बिन बात के जीवन तरी, थी उछलती नदिया रही; सब कुछ गँवा उसमें समा, वह समुन्दर समगे रही । हर अंग की जो थी उमंग, बस चन्द रातों की रही; अनुराग की […] Read more » Featured हर हुस्न का जो जश्न था