कविता
हेमंत-ऋतु
/ by बीनू भटनागर
पल्लव भी बिखर गये, सुन्दर सुमन झुलस गये, पंखुड़ियाँ बिखर गईं, धूल मे समा गईं। बाग़ मे बहार थी, बसंत-ऋुतु रंग थे, धूल भरी आँधियों मे, रंग सब सिमट गये। मौसम अब बदल गये, धूप तेज़ हो चली, ठंड़ी बयार अब कुछ, गर्म सी है हो चली। होली का त्योहार भी , […]
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