पल्लव भी बिखर गये,
सुन्दर सुमन झुलस गये,
पंखुड़ियाँ बिखर गईं,
धूल मे समा गईं।
बाग़ मे बहार थी,
बसंत-ऋुतु रंग थे,
धूल भरी आँधियों मे,
रंग सब सिमट गये।
मौसम अब बदल गये,
धूप तेज़ हो चली,
ठंड़ी बयार अब कुछ,
गर्म सी है हो चली।
होली का त्योहार भी ,
अब आस पास है,
बंसत फिर हेंमत ,
ग्रीष्म आगाज़ है।
हेमंत-ऋतु का अब,
एक और भी नाम है,
मौसम परीक्षाओं का है,
परीक्षा-ऋतु नाम है।
BINU BHATNAGAR JI KO UNKEE PYAAREE – PYAREE KAVITA KE LIYE BADHAEE AUR
SHUBH KAMNA .
बहुत ही अच्छी अभ्व्यक्ति है।
विजय निकोर